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गुरुवार, 19 जनवरी 2012

आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

  आठवीं मंजिल से  भोंकता हुआ कुत्ता
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गली में पट्टा
पर मन में,
स्वच्छंद विचरने की विकलता
रेलिंग से बंधा हुआ,
आठवीं  मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता
मन में छटपटाहट है
या शायद मालिकिन के आने की आहट है
दर्द है या ख़ुशी है
या कोई पीड़ा छुपी है
या जमीन का निरीह प्राणी ,
इतनी ऊँचाई पर पहुँच कर चौंक रहा है
और नीचे वालों को देख कर भोंक रहा है
सुबह ही तो मालकिन ने टहलाया था
अपने नरम नरम हाथों से,
उसके रेशमी बालों को सहलाया था
और खिलाये थे दूध और बिस्कुट
तो चुपचाप उसी प्रेम से अभिभूत
अपनी मालकिन को निहार रहा था
जाने क्या क्या विचार रहा था
प्यार  के उन चंद पलों ने,
उसे बना दिया है उम्र भर का गुलाम
पूंछ हिलाता रहता है ,सुबह शाम
क्या होगी उसकी मानसिकता
किसी अनजान को देख कर झपटता
आठवीं मंजिल से भोंकता हुआ कुत्ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वीरानियों में है कहीं आबाद कोई 
खामोशियों से दे रहा आवाज़ कोई 

हाँ मर गया दिल और दिल की ख्वाइशें
मुझमे मगर जिंदा रहा अहसास कोई 

टहलीं सड़क पर रात भर रानाइयां यूं
निकला बदन पर ओढ़ कर आकाश कोई

फिर ताजदारों से बगावत कर उठा दिल
दिल पर हुकुमत कर रहा बेताज कोई

फिर से दिल में ख्वाहिशें उगने लगी हैं
आँखों ने मेरी फिर से देखा ख्वाब कोई .......



रचनाकार :- कवि पंकज अंगार

ललितपुर, ऊ.प्र.)

परी मेरी अब सोयेगी


रात ये कितनी बाकि है,
पुछ रहा हूँ तारों से;
पवन सुखद बनाने को,
अब कहता हूँ बहारों से ।

चाँद को ही बुलाया है,
निद्रासन मंगवाया है;
परी मेरी अब सोयेगी,
भँवरों से लोरी गवाया है ।

डैडी की सुन्दर गुड़िया है,
मम्मी की जान की पुड़िया है;
क्यों रात को पहरा देती है,
ज्यों सबकी दादी बुढ़िया है ।

स्वयं पुष्पराज ही आयेंगे,
खुशबू मधुर फैलायेंगे;
निद्रादेवी संग चाकर लाकर,
मिल गोद में सब सुलायेंगे ।

परी मेरी न रोयेगी,
परी मेरी अब सोयेगी ।

बुधवार, 18 जनवरी 2012

मै

       मै
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कभी नदिया की तरह कल कल बहता हूँ
कभी सागर की लहरों सा उछालें भरता हूँ
कभी बादल की तरह आवारा  भटकता हूँ
कभी बारिश की तरह रिम झिम बरसता हूँ
कभी भंवरों की तरह गीत गुनगुनाता हूँ
कभी तितली की तरह फूलों पे मंडराता हूँ
कभी फूलों की तरह खिलता हूँ,महकता हूँ
कभी पंछी की तरह उड़ता हूँ,चहकता हूँ
कभी तारों की तरह टूट टूट जाता हूँ
कभी पानी के बुलबुलों सा फूट जाता हूँ
कभी सूरज की तरह तेज मै चमकता हूँ
कभी चंदा की तरह घटता और बढ़ता हूँ
मगर ये बात मै बिलकुल न समझ पाता हूँ
मै कौन हूँ,क्या हूँ और क्या चाहता हूँ

मदन मोहन बाहेती;घोटू;

बेटी का मेल

ड़ैड़ी,
इस बार टूर से लौटते वक्त
भले ही गिफ्ट मत लाना
पर इस मेल को पढ़ कर
यह वादा जरुर करना कि
मेरी इन सभी बातों को पूरा करेंगे
पहली बात
आप मेरा नाम उस स्कूल मे लिखायेंगे
जहां बहुत ज्यादा होम वर्क नही दिया जाता हो
और बहुत ज्यादा मार्क्स लाने के लिये
बच्चों को प्रेस न किया जाता हो


सच पापा ज्यादा ये ज्यादा मार्क्स लाने की टेंसन में
मै स्कूल आवर को ईटरटेन नही कर पाती
और पापा स्कूल घर से ज्यादा दूर भी नहो
क्योंकि जरा सी देर होने पर मम्मी परेसान होने लगती हैं
कि कहीं मेरे साथ कोई हादसा तो नही हो गया।
इसके अलावा ड़ैड़ी
अपना नया मकान उस जगह लेना
जहां पड़ोस के अंकल
अंकल जैसे ही हों
न कि बात करते करते गाल और पीठ छूने की कोशिश करते हों


और पापा अगल बगल के भइया लोग भी ऐसे न हों
जो मम्मी को सामने तो आंटी या भाभी जी कहते हों
और पीठ पीछे गंदी गंदी बातें कहते हों
डैडी एक बात और
मेरा स्कूल मे कोई भी ब्वाय फ्रेंड नही है
मुझे सभी लड़के खराब लगते हैं
वे अभी से सिगरेट और बियर पीते हैं
और गंदी गंदी बातें भी करते हैं
मै तो उन सबसे दूर रहती हूं


मेरा तो बस एक दोस्त है
पर डैडी वह बहुत सीधा है
ज्यादातर चुप ही रहता है
डसके ड़ैडी किसी औरत के साथ घूमते रहते हैं
और उसकी मम्मी नेट पर पता नही किससे किससे
चैट करती रहती है
यह सब उसे अच्छा नही लगता
पर वह छोटा है इसी लिये कुछ नही कह सकता |


पर मेरे प्यारे डैडी आपतो ऐसे नही है।
और मम्मी भी ऐसी नही हैं
पर आजकल मम्मी को भी नेट पे चैटिंग का शौक लग रहा है
यह मुझे भी अच्छा नही लगता
पापा आप उन्हे अपनी तरह से समझा दीजियेगा
मै उनकी शिकायत नही कर रही
पर मम्मी को क्या पता कि अक्सर जेंट्स लोग ही
फेमनिन नेम से आई डी खोल कर औरतों से
चैट करते रहते हैं
डैडी आपतो बहुत अच्छे हैं और यह सब जानते भी है।


डै़डी आप नया मकान उस जगह लीजियेगा
जंहां रोज रोज बम न फटते हों
और लोग एक दूसरे से मिलजुल कर रहते हों
और मेरा स्कूल भी घर के पास हो
ताकि देर होने पर मम्मी चिंता न रहे
ड़ैड़ी अब मै चाह कर भी छोटी मिडी नही पहनती
लोग मुझे कम मेरी टांगो को ज्यादा देखते हैं |


ड़ैड़ी मुझे नही मालुम आप यह मेल पढ़ कर क्या सोचेंगे
पर मै ये बाते कहूं भी तो किससे ?
क्योंकि मेरी तो काई दीदी भी नही है
और दादी भी नही है अगर
मम्मी से कहो तो वह झिडक देती हैं
कहती हैं तुम अपने आपमे सही रहो
दूसरो से मतलब क्यों रखती हो
पर ड़ैड़ी, आदमी अकेले तो सही नही रह सकता
जबतब कि दूसरे भी सही न हों
पापा यह बात मम्मी को आप समझाइयेगा
और मेरी इन सब बातों को पूरा करना भूल मत जाइयेगा
भले ही आप मेरे लिये गिफट लाना भूल जायें

आपकी अच्छी बेटी





रचनाकार:-मुकेश इलाहाबादी 


(मुकेश जी की यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है |)

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