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सोमवार, 2 मार्च 2020
【SEAnews】 Review:The baptism of the Holy Spirit (Aramaic roots III)-E
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020
१
कूकर सारे दिवस में ,अक्सर रहते शांत
भौंका करते रात भर ,जब होता एकांत
जब होता एकांत ,भीड़ में ना भौंकेंगे
वर्ना लोग मार कर डंडा चुप कर देंगे
किन्तु रात में सूनी सड़क कोई ना टोके
तब अपना साम्राज्य चलाते ,कुत्ते भौंके
२
रेशम डोरी से बंधा ,साहब जिसे टहलाय
भौके भी डिसिप्लीन में ,वो 'डॉगी 'कहलाय
वो डॉगी कहलाय ,लाडला मैडमजी का
खाये बिस्किट टोस्ट ,नाश्ता दूध दही का
कह घोटू कविराय ,समझ बस इतना लेना
कभी भूल से उसको कुत्ता मत कह देना
घोटू
मिले पथ में कई पत्थर ,जूझ सबसे ,
जिंदगी की हर जटिल पीड़ा सही है
हुआ ना पथभ्रष्ट पर मैं रहा चलता ,
धार मेरी पर सदा सीधी बही है
मिले मुझमे कई नाले ,मैल वाले ,
कई पावन नदियों संग ,हुआ संगम
दिन ब दिन ,पर रहा बढ़ता पाट मेरा ,
और मेरी गति भी ना पड़ी मध्यम
लगा डुबकी आस्था और भावना की ,
कामना ले पुण्य की फिर लोग आये
उनके भक्तिभाव से पावन हुआ मैं ,
पूर्ण श्रद्धा लिए जो मुझमे ,नहाये
चाह ये है काम मैं आऊं सभी के ,
सभी को मैं प्यार बाटूं इस सफर में
क्योंकि मालूम है मुझे कि एक दिन तो ,
मुझको जा मिलना है खारे समंदर में
घोटू
ये मत पूछो कि जिंदगी,
कैसे बिता रहा हूँ
संतोष का फल बड़ा मीठा होता है ,
आजकल वो ही खा रहा हूँ
और जिंदगी की आपाधापी में ,
विवशता के आंसू पी रहा हूँ
बस इसी तरह खाते पीते ,
जिंदगी जी रहा हूँ
मेरा जीवन ,
खोमचे में सजे हुए खाली गोलगप्पों की तरह ,
इन्तजार में है उस हसीना के ,
जो इनमे प्यार का चटपटा पानी भर ,
चटखारे ले लेकर गटकाती जाये
जो जीवन की भूलभुलैया में ,
मेरी ऊँगली पकड़ ,खुद भी भटके,
और मुझे भी भटकाती जाए
मैं कंटीली झाड़ियों में खिला हुआ ,
गुलाब का वो फूल हूँ ,
जिसे प्रतीक्षा है उस रूपसी की ,
जो उसे तोड़ ,अपने केशों में सजा ले
मैं कश्मीर की पश्मीना शाल की तरह ,
दूकान में सिमटा बैठा ,
इन्तजार में हूँ कि कोई सुंदरी ,
आये और मुझे ओढ़ कर ,
सर्दी में गर्मी का मजा ले
तन्हाई ,
जिसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है ,
वो भी मुझे काटने को दौड़ रही है और ,
मेरा अकेलापन मुझे कचोटता रहता है
औरों की भरी पूरी खिलती बगिया के रौनक देख ,
मेरे सीने पर सांप लोटता रहता है
इस तरह की बेबसी के आलम में ,
खून के घूँट पी रहा हूँ
बस आजकल इसी तरह जी रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020
कभी कभी मन चिंतित पर मुस्काना पड़ता है
सूनेपन में डर लगता ,तो गाना पड़ता है
कर मनुहार खिलाये जब वो अपने हाथों से ,
भूख नहीं होती है फिर भी खाना पड़ता है
भले पड़ोसन ,बहुत सुंदरी ,तुम्हे सुहाती है ,
घरवाली से लेकिन काम चलाना पड़ता है
कितनी चीजें होती जो हमको ललचाती है ,
खाली जेब,मगर मन की समझाना पड़ता है
यूं तो हम झगड़ा करते है ,रौब दिखाते है ,
दुश्मन भारी हो, पीछे हट जाना पड़ता है
घटघट में भगवान बसे है फिर भी भक्तों को
प्रभु के दर्शन करने मंदिर जाना पड़ता है
रोज रोज झगड़ा होता है ,पति से ना पटती ,
पर व्रत करके ,करवा चौथ मनाना पड़ता है
नई कार साइलेंट देख कर ,कहा फटफटी ने ,
क्या रईस को मुंह ताला लगवाना पड़ता है
'घोटू 'देख हुस्न को मन में कुछ कुछ होता है ,
लेकिन मन मसोस कर ही रह जाना पड़ता है ,
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जल बिच मीन पियासी रे, मोहे आये हांसी रे
पति दफ्तर में साहब ,इज्जत अच्छी खासी रे
घर में पत्नी ,उन्हें समझती ,एक चपरासी रे
खाये परांठे खुद, पति को दे ,रोटी बासी रे
घर की मुर्गी ,दाल बराबर ,बात जरा सी रे
पत्नी का व्यवहार देख कर ,छाई उदासी रे
करे बुराई सबसे ,मुख पर ,मीठी मासी रे
वोट न दे पत्नी भी ,हम है ,वो प्रत्याशी रे
ऐसा हम पर,आया बुढ़ापा ,सत्यानाशी रे
सांप छुछन्दर गति ,मुसीबत अच्छी खासी रे
जल बिच मीन पियासी रे ,मोहे आये हांसी रे
घोटू
सुनो बुढ़ापा जब आता है
बार बार है नींद उचटती ,बेचैनी भी बढ़ जाती है
अपने सुनते नहीं जरा, ये बात हृदय में गड़ जाती है
आती काया में जर्जरता ,बढ़ती औरों पर निर्भरता
सहमा सहमा डरता डरता ,रोज आदमी जीता ,मरता
वाणी में आता विकार है ,सारा ओज बिखर जाता है
सुनो बुढ़ापा जब आता है
थोड़ा चलते ,सांस फूलती ,और होती महसूस थकन है
जाती फिसल जवानी तन से ,और भटकता रहता मन है
काम नहीं कुछ ,पड़े निठल्ले ,कुछ करते तो थक जाते है
पार उमर जब करती सत्तर ,तब हम थोड़े पक जाते है
सब रंग ढंग बदल जाते है ,अंग अंग कुम्हला जाता है
सुनो बुढ़ापा जब आता है
घोटू
यही कामना ,सबके मन में , ज्यादा जिये
सुखमय जीवन बीते ,यूं ही ,बिना कुछ किये
,
जो आया है ,वो जाएगा ,सच शाश्वत है
सबकी ही साँसों की संख्या ,पूर्व नियत है
फिर भी हम कोशिश करते है कहाँ कहाँ से
लम्बी उमर हमे मिल जाय यहाँ वहां से
कैसे भी अमृत मिल जाए ,उसको पियें
यही कामना ,सबके मन में ,ज्यादा जियें
जितनी लम्बी उमर ,बुढ़ापा उतना लम्बा
तन जर्जर ,इच्छा जीने की ,यही अचम्भा
जितने भी दिन जियें ,चैन से ,हंसी ख़ुशी से
प्रेमभाव और मेलजोल हम रखें सभी से
स्वस्थ रहें, निरोग,प्रेम से ,खाएं, पियें
यही कामना सबके मन में ,ज्यादा जियें
घोटू
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रविवार, 16 फ़रवरी 2020
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है
नज़र बचा दुनिया की हमने ,
जो चुपचाप सिये है
जब जब भी व्यवहार तुम्हारा ,
था काँटों सा गड़ता
हम रोते तो दुनिया हंसती ,
फर्क तुम्हे क्या पड़ता
कैसे हृदय चीर दिखलायें ,
हम किस तरह जिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है
तुमने सब आशायें तोड़ी ,
हमको तडफाया है
कितनी ही रातें जागे हम ,
मन को समझाया है
अब तो बहना बंद हो गए ,
इतने अश्रु पिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है
बस दो मीठे बोल प्यार के ,
और इज्जत थी मांगी
तुममे अपनापन ना जागा ,
हमने आस न त्यागी
एक दिन शायद भूल सुधारो ,
ले ये आस जिये है
तुम क्या जानो तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मुश्किलों से लड़ ,निपट कर
जिंदगी के कठिन पथ पर
कर लिया है पार मैंने ,
मील का एक और पत्थर
उम्र अब मेरी अठहत्तर
हुआ मैं जब जब त्रसित ,
पीड़ाग्रसित ,तुमने संभाला
कदम जब भी डगमगाये ,
दिया बाहों का सहारा
पड़ा मैं कमजोर जब जब ,
तुम मेरा संबल बनी तब
तुम्हारी ही प्रेरणा से ,
पहुँच पाया मंजिलों पर
उम्र अब मेरी अठहत्तर
हम बहुत कुछ चाहते पर ,
चाहने से कुछ न मिलता
मगर मेहनत और चाहत
ने तुम्हारी ,दी सफलता
साथियों ने साथ दे कर
मुश्किलों को मात दे कर
निखारा ,मुझको संवारा ,
और दिनोदिन किया बेहतर
उम्र है मेरी अठहत्तर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अठहत्तरवें जन्मदिवस पर
—————————-
मन मदन,मस्तिष्क मोहन,मद नहीं और मोह भी ना
और मै बहती हवा सा,सुगन्धित हूँ,मधुर, भीना
कभी गर्मी की तपिश थी,कभी सर्दी थी भयंकर
कभी बारिश की फुहारों का लिया आनंद जी भर
कभी अमृत तो गरल भी,मिला जो पीता गया मै
विधि ने जो भी लिखा उस विधि जीता रहा मै
कभी सुख थे ,कभी दुःख थे,कभी रोता,कभी हँसता
कई जीवन रंग देखे, हुआ अठहत्तर बरस का
मदन मोहन बहेती 'घोटू '
शनिवार, 15 फ़रवरी 2020
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?
फंसे रह कर मोहमाया जाल में ,
मैंने बस यूं ही बिता दी जिंदगी
बीते दिन पर डालता हूँ जब नज़र ,
मुझे खुद पर होती है शर्मिंदगी
कितने दिन और कितने ही अवसर मिले ,
मूर्ख मैं अज्ञानवश खोता रहा
वासना के समंदर में तैरता ,
बड़ा खुश हो लगाता गोता रहा
अब कहीं जा आँख जब मेरी खुली ,
वक़्त इतना कम बचा है क्या करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूँगा
सुनते चौरासी हजारों योनियां ,
भोगने उपरांत मानव तन मिले
पुण्य कर ना तरा योनि फेर से ,
शुरू होंगे फिर से वो ही सिलसिले
मैं अभागा ,मूर्ख था ,नादान था ,
राम में ना रमा पाया अपना मन
दुनिया के भौतिक सुखों में लीन हो ,
भुला बैठा मैं सभी सदआचरण
नहीं है सद्कर्म संचित कोष में ,
पार बेतरणी भला कैसे करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका
पता ना अगले जनम में क्या बनूंगा
मदन मोहन बहती 'घोटू '
दुधारू पशु जिस तरह है घास खाते
बैठ कर के शांति से है पुनः चबाते
इस तरह की उनकी ये जीवन प्रणाली
आम भाषा में जिसे कहते 'जुगाली '
दूध में देती बदल है एक तृण को
हम भी अपनाये अगर इस आचरण को
काम जो दिन भर किये ,मन से ,वचन से
पूर्व सोने के विचारे ,शांत मन से
भला किसका किया और किसको दी गाली
अपने हर एक कर्म की करके जुगाली
आत्मआलोचक बने ,खुद को सुधारे
बहेगी जीवन में सुख की दुग्ध धारें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020
【SEAnews:India Front Line Report】 February 12, 2020 (Wed) No. 3939
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वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
आप ये क्यों भूलती है
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
सांस मेरी फूलती है
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा
,हम खुद ही टेडी बियर है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै अठोत्तर,तुम तिहत्तर,प्यार अपना जस का तस है
मनायें वेलेन्टाइन ,प्यार का ये तो दिवस है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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अनूठा रहस्य प्रकृति का... - रात भर जागकर हरसिंगार वृक्ष उसकी सख्त डालियों से लगे नरम नाजुक पुष्पों की करता रखवाली कि नरम नाजुक से पुष्प सहला देते सख्त वृक्ष के भीतर सुकोमल...3 वर्ष पहले
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उद्विग्नता - जीवन की उष्णता अभी ठहरी है , उद्विग्न है मन लेकिन आशा भी नहीं कर पा रही इस मौन के वृत्त में प्रवेश बस एक उच्छवास ले ताकते हैं बीता कल , निर्निमे...3 वर्ष पहले
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क्षणिका - हां सच है देहरी पार की मैंने वर्जनाओं की रुढ़िवाद की पाखंड की कुंठा की .... ओह सभ्य समाज ....! तुम्हारी ओर से सिर्फ घृणा .? कहो इतने नाजुक कब से हो लि...3 वर्ष पहले
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महिला दिवस - विशेष - मैंने माँ से पहचाना एक स्त्री होना कितना दुसाध्य है कोई देवता हो जाने से पहचाना अपनी बहिनों से कैसे वो जोड़े रखती हैं एक घर को दूसरे से सीख पाया अपनी बेटियो...3 वर्ष पहले
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चुप गली और घुप खिडकी - एक गली थी चुप-चुप सी इक खिड़की थी घुप्पी-घुप्पी इक रोज़ गली को रोक ज़रा घुप खिड़की से आवाज़ उठी चलती-चलती थम सी गयी वो दूर तलक वो देर तलक पग-पग घायल डग भर प...3 वर्ष पहले
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गलती से डिलीट हो गए मेरे पुराने पोस्टों की पुनर्प्राप्ति : इंटरनेट आर्काइव के सौजन्य से - दो वर्ष पहले ब्लॉग का टेम्पलेट बदलने की की कोशिश रहा था। सहसा पाया कि कुछ पोस्ट गए। क्या हुआ था, पूरा समझ में नहीं आया। बाद में ब्लॉगर वालों को भ...3 वर्ष पहले
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Pooja (laghukatha) - पूजा " सुनिये ! ", पत्नी ने पति से कहा " जी कहिये", पति ने पत्नी की तरह जवाब दिया तो पत्नी चिढ़ गयी. पति को समझ आ गया और पत्नि से पूछा कि क्या बात है...3 वर्ष पहले
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अलसाई शाम तले - यूँ ही एल अलसाई शाम तले बैठें थे कभी दो चार जब पल मिले मदहोश शाम ढल गयी यूँ ही आलस में तकदीर में जाने कब हों फिर ये सिलसिले ..4 वर्ष पहले
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लाॅकडाउन 2 - मोदी जी....सुनो:- धीरे धीरे ही सही बीते इक्किस वार सोम गया मंगल गया कब बीता बुधवार कब बीता बुधवार हो गया अजब अचंभा लगता है इतवार हो गया ज्यादा लंबा दाढ़ी भी ...4 वर्ष पहले
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Gatyatmak Jyotish app - विज्ञानियों को ज्योतिष नहीं चाहिए, ज्योतिषियों को विज्ञान नहीं चाहिए।दोनो गुटों के झगडें में फंसा है गत्यात्मक ज्योतिष, जिसे दोनो गुटों के मध्य सेतु ...4 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (अट्ठाईसवां) - खत्म होनेवाला है हमारा इस साल का सफ़र। 2020 अपनी गुनगुनी,कुनकुनी आहटों के साथ खड़ा है दो दिन के अंतराल पर। चलिए इस वर्ष को विदा देते हुए कुछ बातें कहती...4 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...5 वर्ष पहले
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गुड्डू आओ ... गोलगप्पे खाएँ .... - गुड्डू आओ ... चलें .. गोलगप्पे खाएँ कुछ खट्टे-मीठे .. तो कुछ चटपटे-चटपटे खाएँ चलो .. चलें ... अपने उसी ठेले पे .. स्कूल के पास ... आज .. जी भर के ... मन भ...5 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes di kelamin - *cara mengobati herpes di kelamin* - Penyakit herpes genital baik pada pria maupun pada wanita kerap menjadi permasalahan tersendiri, karena resiko yang le...5 वर्ष पहले
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आइने की फितरत से नफरत करके क्या होगा - आईने की फितरत से नफरत करके क्या होगा किरदार गर नहीं बदलोगे किस्सा कैसे नया होगा हर बार आईना देखोगे धब्बा वही लगा होगा आईने लाख बदलो सच बदल नहीं सकते ज...6 वर्ष पहले
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शर्मसार होती इंसानियत.. - *इंसानियत का गिरता ग्राफ ...* आज का दिन वाकई एक काले दिन के रूप में याद किया जाना था. सबेरे जब समाचार पत्रों में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस समाचा...6 वर्ष पहले
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कूड़ाघर - गैया जातीं कूड़ाघर रोटी खातीं हैं घर-घर बीच रास्ते सुस्तातीं नहीं किसी की रहे खबर। यही हाल है नगर-नगर कुत्तों की भी यही डगर बोरा लादे कुछ बच्चे बू का जिनपर...6 वर्ष पहले
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता - घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ नाम बचे है बाकी तीज त्योहार कहाँ ...7 वर्ष पहले
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लिखते रहना ज़रूरी है ! - पिछले कई महीनों में जीवन के ना जाने कितने समीकरण बदल गए हैं - मेरा पता, पहचान, सम्बन्ध, समबन्धी, शौक, आदतें, पसंद-नापसंद और मैं खुद | बहुत कुछ नया है लेकिन...7 वर्ष पहले
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इन आँखों में बारिश कौन भरता है .. - बेतरतीब मैं (३१.८.१७ ) ` कुछ पंक्तियाँ उधार है मौसम की मुझपर , इस बरस पहले तो बरखा बरसी नहीं ,अब बरसी है तो बरस रही ,शायद ये पहली बारिशों का मौसम...7 वर्ष पहले
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सवाल : हम आपदाओं में फेल क्यों? जवाब में यह हकीकत पढि़ए - राजस्थान के एक हिस्से में बाढ़ का कहर है और लोग आपदा से घिरे हैं। प्रशासनिक अमला इतना असहाय नजर आ रहा है। आपदाएं हमेशा आती है और सरकारी तंत्र लाचार नजर आ...7 वर्ष पहले
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ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...3 - पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदा...7 वर्ष पहले
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गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो - *गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो * लगभग दो वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् परम श्रद्धेय स्वामीजी संवित् सोमगिरि जी महाराज के दर्शन करने (अभी 1 जुलाई) को गया तो मन भ...7 वर्ष पहले
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जिन्द्गी - जिन्दगी कल खो दिया आज के लिए आज खो दिया कल के लिए कभी जी ना सके हम आज के लिए बीत रही है जिन्दगी कल आज और कल के लिए. दोस्तों आज मेरा जन्म दिन भ...7 वर्ष पहले
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हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे - *हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगेहाँ ! चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे* जो रात होगी तो जमी से चाँदी बटोर लेंगे चाँदी की फिर पायल बना लम्हों ...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...7 वर्ष पहले
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गीत अंतरात्मा के: आशा - गीत अंतरात्मा के: आशा: मैं एक आशा हूँ मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में ताकि हर मन जीवित रह सके मुझे खुद को बचाए ही र...8 वर्ष पहले
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'जंगल की सैर ' - मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें http:matrubharti.com/book/5492/8 वर्ष पहले
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पानी की बूँदें - पानी की बूँदे भी, मशहूर हो गई । कल तक जो यूँही, बहती थी बेमतलब, महत्वहीन सी यहाँ वहाँ, फेंकी थी जाती, समझते थे सब जिसके, मामूली सी ही बूँदें, आज वो पहुँच स...8 वर्ष पहले
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खोया बच्चा..... - आज एक हास्य कविता एक बच्चा रो रहा था , मेले में अनाउंसमेंट हो रहा था , जल्दी आएं जिन का बच्चा हो ले जाएँ | तभी सौ से ज्यादा लोग वहां आते है जल्दी से बच...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...8 वर्ष पहले
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विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग - *विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग* हममें से अधिकांश लोगों को टंकण करना काफी श्रमसाध्य एवं उबाऊ कार्य लगता है और हम सभी यह सेाचते हैं कि व्यक...8 वर्ष पहले
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Happy Teacher's Day - “गुरु का हाथ” - *पिसते… घिसते… तराशे जाते…* *गिरते… छिलते… लताडे जाते…* *मांगते… चाहते… ठुकराए जाते…* *गुजर जाते हैं चौबीस या इससे ज्यादा साल…* *लगे बचपन से… बहुत लोग फरिश...9 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...9 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी का गणित - कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...10 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...10 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...10 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...10 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...11 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...11 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...12 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...12 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...12 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...12 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...13 वर्ष पहले
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