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रविवार, 16 फ़रवरी 2020

जख्म

तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म  दिये है
नज़र बचा दुनिया की हमने ,
जो चुपचाप  सिये  है

जब जब भी व्यवहार तुम्हारा ,
था काँटों सा गड़ता
हम रोते तो दुनिया हंसती ,
फर्क तुम्हे  क्या पड़ता
कैसे हृदय चीर दिखलायें ,
हम किस तरह जिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये  है

तुमने सब आशायें तोड़ी ,
हमको तडफाया है
कितनी ही रातें जागे हम ,
मन को समझाया है
अब तो बहना बंद हो गए ,
इतने अश्रु पिये है
तुम क्या जानो ,तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है

बस दो मीठे बोल प्यार के ,
और इज्जत थी मांगी
तुममे अपनापन ना जागा ,
हमने आस न त्यागी
एक दिन शायद भूल सुधारो ,
ले ये आस जिये  है
तुम क्या जानो तुमने हमको ,
कितने जख्म दिये है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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