पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?
फंसे रह कर मोहमाया जाल में ,
मैंने बस यूं ही बिता दी जिंदगी
बीते दिन पर डालता हूँ जब नज़र ,
मुझे खुद पर होती है शर्मिंदगी
कितने दिन और कितने ही अवसर मिले ,
मूर्ख मैं अज्ञानवश खोता रहा
वासना के समंदर में तैरता ,
बड़ा खुश हो लगाता गोता रहा
अब कहीं जा आँख जब मेरी खुली ,
वक़्त इतना कम बचा है क्या करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूँगा
सुनते चौरासी हजारों योनियां ,
भोगने उपरांत मानव तन मिले
पुण्य कर ना तरा योनि फेर से ,
शुरू होंगे फिर से वो ही सिलसिले
मैं अभागा ,मूर्ख था ,नादान था ,
राम में ना रमा पाया अपना मन
दुनिया के भौतिक सुखों में लीन हो ,
भुला बैठा मैं सभी सदआचरण
नहीं है सद्कर्म संचित कोष में ,
पार बेतरणी भला कैसे करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका
पता ना अगले जनम में क्या बनूंगा
मदन मोहन बहती 'घोटू '
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूगा ?
फंसे रह कर मोहमाया जाल में ,
मैंने बस यूं ही बिता दी जिंदगी
बीते दिन पर डालता हूँ जब नज़र ,
मुझे खुद पर होती है शर्मिंदगी
कितने दिन और कितने ही अवसर मिले ,
मूर्ख मैं अज्ञानवश खोता रहा
वासना के समंदर में तैरता ,
बड़ा खुश हो लगाता गोता रहा
अब कहीं जा आँख जब मेरी खुली ,
वक़्त इतना कम बचा है क्या करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका ,
पता ना अगले जनम में क्या बनूँगा
सुनते चौरासी हजारों योनियां ,
भोगने उपरांत मानव तन मिले
पुण्य कर ना तरा योनि फेर से ,
शुरू होंगे फिर से वो ही सिलसिले
मैं अभागा ,मूर्ख था ,नादान था ,
राम में ना रमा पाया अपना मन
दुनिया के भौतिक सुखों में लीन हो ,
भुला बैठा मैं सभी सदआचरण
नहीं है सद्कर्म संचित कोष में ,
पार बेतरणी भला कैसे करूंगा
इस जनम में तो नहीं कुछ बन सका
पता ना अगले जनम में क्या बनूंगा
मदन मोहन बहती 'घोटू '
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
16/02/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
जवाब देंहटाएंआदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना
इसी कर्म में ग़ालिब साब ने क्या खूब फरमाया.
अच्छा लिखा है.
आइयेगा- प्रार्थना
इंसान की फिदरत ही ऐसी होती है। पहले टी अपना जीवन मौज मस्ती में गवां देता हैं और फिर जिंदगी के आखरी पड़ाव पर सोचता हैं कि अगले जन्म में क्या बनूंगा? इंसान की मनोदशा का बहुत ही सुंदर चित्रण।
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