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मंगलवार, 30 जून 2015

तेरे संग भगवान है घोटू

  तेरे संग भगवान है घोटू

समय बड़ा  बलवान है घोटू
तू कितना   नादान  है  घोटू
वो ही इसको शांत  करेगा,
लाया जो  तूफ़ान है घोटू
जीवनपथ में कई अड़चने ,
सफर न ये आसान है घोटू
आज यहाँ तक जो तू पहुंचा,
ये उसका  अहसान है घोटू
वही करेगा एक दिन पूरे  ,
तेरे जो अरमान है घोटू
कल क्या होगा ,कोई न जाने ,
हर कोई अनजान है घोटू
उसके आगे सब है   बेबस,
कुछ भी ना इंसान है घोटू 
साथ नहीं कुछ भी जाएगा ,
दिखा रहा क्यों शान है घोटू 
तेरी  नैया पार करेगा ,
तेरे संग भगवान है घोटू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'






देवी महिमा

                    देवी महिमा

जो भागदौड़ करती दिनभर और जिसके बल चलता है घर
छोटी छोटी सब बातों में  ,सारा घर भर ,जिस  पर  निर्भर
वह अन्नपूर्णा  है घर की  ,वह ज्ञानदायिनी , शिक्षक   है
पति की सुखदायक  रम्भा है और सास ससुर की सेवक है
वह रूप लिए कितने सारे ,है दिन भर ही खटती रहती
हर एक सदस्य के मन माफिक ,थोड़ा थोड़ा बंटती रहती
दे ससुर साहब को गरम दूध,सासू घुटनो पर तेल मले
और पतिदेव की फरमाइश पर चाय,पकोड़े गरम  तले
सबके सुख दुःख की साथी है,अपना कर्तव्य निभाती है
कोई को भी हो कुछ  पीड़ा   ,झट भागी भागी  जाती है
बच्चों को करवा होमवर्क, बाज़ार जाए,सौदा  लाये
देखे बिखरा और अस्त व्यस्त ,घर की सफाई में जुट जाए
वह टूटे हुए बटन टाँके ,और फटे  वस्त्र कर ठीक, सिये
दिन भर मशीन सी काम करे ,अपने मुख पर मुस्कान लिए
वह सरस्वती है ,लक्ष्मी है , देवी दस हाथों वाली है
वह शक्तिशालिनी दुर्गा है,उसकी हर बात निराली है
वह सेवाव्रती  ,सुशीला है ,जिसके मन में है भरा प्यार
उस जग जननी ,माँ,देवी को ,है मेरा शत शत नमस्कार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पहली बरसात

              पहली बरसात

है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में
उस भीगे भीगे मौसम में भी आग लग गयी थी तन में
लहराता आँचल पागल सा था तेरे तन  से  चिपक गया
थे भीगे भीगे  श्वेत वस्त्र ,तेरा निखरा था  रूप नया
उस मस्त मचलते  यौवन ने,  कुछ ऐसा जादू ढाया था
तू भी थोड़ी पगलाई थी,मैं भी थोड़ा   पगलाया था
तू अमृतघट ले पनघट पर आयी थी प्यारी पनिहारन
मैंने निज प्यास बुझाई थी ,कर घूँट घूँट रस आस्वादन
तेरे गालों को सहला कर ,लब चूम रहे थे  जो मोती
मैंने हौले से निगल लिए थे एक एक कर सब मोती
और जी भर रसपान किया  ,बौराये दीवानेपन में
है हमें याद ,हम भीगे थे ,बारिश की पहली रिमझिम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बरसात के रंग

            बरसात के रंग
                     १
रसिकलाल बरसात में तर होकर  घर जाय
पत्नी जी चिंता करे  ,  सर्दी  ना  लग जाय
सर्दी ना लग जाय  ,वस्त्र  जब  भीगे सारे
अपने हाथों झट  पत्नी जी  उन्हें   उतारे,
पोंछे उनका बदन  ,अगन तन में सुलगाये
तभी भीगने में आनन्द ,दोगुना   आये 
               २
उस भीगी बरसात में ,कितनी गर्मी आय
गरम गरम हो पकोड़े ,गरम गरम हो चाय
गरम गरम हो चाय ,हाल कुछ बिगड़े ऐसे
हो ऐसा  माहोल , कोई  फिसले  ना  कैसे
कह घोटू कविराय ,लगे हर चीज  सुहानी
रोज रोज यूं ही  बरसो ,तुम बरखा  रानी
                     ३
दुखीराम कहने लगे ,बड़े तुम्हारे ठाट
हम भीगें ,घर पर मिले ,पत्नीजी की डाट
पत्नीजी की डाट,बड़ी होती है फजीहत
बीबी कहती क्यों करते हो बच्चों सी हरकत
बड़े हो गए इतने   ,अकल ज़रा  ना आई
आज सुबह ही कपड़ों पर थी प्रेस  कराई

घोटू
 

काटा काटी

             काटा काटी
                      १
चाकू से फल सब्जियां ,काटकाट सब खाय
कैंची  टांगों  बीच जो ,  आये सो  कट  जाय
आये सो कट जाए ,  काटते दांत   कटीले
काटे कटे न रात ,काट मच्छर  खूं    पीले
कह घोटू कविराय ,जानता है मेरा  दिल
तनहाई की रात काटना कितना मुश्किल
                       २
कहते है जो  भौंकता , ना काटे  वो  'डॉग'
बुरा शकुन यदि जाय जो,बिल्ली रस्ता काट  
बिल्ली रस्ता काट  ,कटीले उनके  नयना
समय न कटता ,पड़े दूर जब उनसे रहना
'घोटू' उन संग सात ,अगन के काटे चक्कर
आगे पीछे काट रहे ,  चक्कर  जीवन भर
                           ३
मुफलिसी में कट रहे ,जनता के दिन रात
नेता  चांदी    काटते ,जब सत्ता  हो   हाथ
जब सत्ता हो हाथ  , काटते दिन मस्ती में
सर कढ़ाई में और उँगलियाँ  पाँचों घी में
कह 'घोटू'कविराय ,चरण तुम्हारे छूता
पदरक्षक कहलाय,,काट लेता पर जूता
                        ४
खाते थे जो   दांत  की काटी रोटी , मित्र
अब है कन्नी काटते ,क्या व्यवहार विचित्र
क्या व्यवहार विचित्र ,रहे आपस में कट कर
एक दूसरे  के  जो  रोज  काटते  चक्कर
कह घोटू जब स्वार्थ आदमी पर है छाता
तो फिर भाई से भाई भी है कट  जाता
                           ५
चूना ज्यादा पान में ,खाओ ,कटे जुबान
पत्नीजी की बात ना ,काट सके  श्रीमान
काट सके श्रीमान, बात कर प्यारी प्यारी
पति की काटे जेब ,पत्नियां बड़ी निराली
प्यार जता कर ऐसा काटे और फुसलाये
अब तक उसका काट ,देव तक जान न पाये
                       ६
'घोटू' तुम उड़ते रहो ,बंधे डोर के संग
वरना कट हो जाओगे ,जैसे  कटी पतंग
जैसे कटी पतंग  ,कटे ना जीवन  रस्ता
कटे कटे से रह कर होगी हालत   खस्ता
कह घोटू कविराय ,उमर भर काटा स्यापा
संकट काटो प्रभू ,चैन से    कटे  बुढ़ापा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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