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शनिवार, 1 सितंबर 2018

क्यों इतना कठिन बुढ़ापा है 

उगता सूरज सुन्दर होता ,बचपन भी होता है सुन्दर 
है दोपहरी में सूर्य प्रखर ,यौवन भी होता है मनहर 
होती मनमोहक स्वर्णकिरण ,जब सूरज ढलने को आता 
तो फिर क्यों ढलती हुई उमर ,होती  दुखकर इतनी ज्यादा 
सूरज ढलता ,आती रजनी ,छा जाता नभ में अँधकार 
वृद्धावस्था के बाद मृत्यु ,यह क्रम चलता है बार बार 
सूरज चलता ,बादल ढकते  ,व्यवधान हमेशा आता है 
लेकिन मानव के जीवन में ,क्यों इतना कठिन बुढ़ापा है 

घोटू 
देखो मुझको डाटा न करो 

देखो मुझको डाटा न करो ,चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 
वरना हम तुम की नोकझोंक ,के किस्से होंगे घर घर में 

ऑफिस में  करते कद्र सभी ,
            तुम मुझे समझती हो बेढब 
पर बात और बिन बात मुझे ,
           तुम डाटा करती हो जब तब 
होंगे डिस्टर्ब पडोसी सब , 
                गाली दे देकर  कोसेंगें 
क्या असर पड़ेगा बच्चों पर ,
                 मम्मी पापा क्या सोचेंगे 
पर तुम्हे कोई परवाह नहीं ,
                 थोड़ा धीरज ना धर पाती 
मन माफिक जो कुछ नहीं हुआ ,
                 बस डंडा लेकर चढ़ जाती 
तुम सीखो धीरज धरना भी 
ऊपरवाले से डरना भी 
इस रोज रोज के झगड़े से ,हो गया तंग हूँ डियर  मैं 
देखो मुझको डाटा न करो ,चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 

है ये भी बात नहीं कि है
                  बोली में तुम्हारे तीखापन 
है बहुत मधुर स्वर तुम्हारा ,
                  पढ़ती जब गीता ,रामायण 
वह मधुर तुम्हारी बोली थी ,
                   जिसने मोहा था मेरा मन 
अब भी बच्चों और महरी से 
                तुम मीठी बात करो हरदम 
फुसफुसा बात करती मुझसे ,
               तुम हंसकर ,बहुत मधुर स्वर में 
जब मूड प्यार का होता है ,
                 हम तुम होते है बिस्तर में 
वो मीठे स्वर मुंह पर लाओ 
इस तरह डाट मत चिल्लाओ 
पुचकार कहो,सब काम करू,बन कर तुम्हारा नौकर मैं 
देखो मुझको डाटा न करो , चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 
हस्बेण्डों का क्या होगा ?


जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
             तो क्या होगा इन बेचारे  हस्बेंडों का  
जो बात बात में उन पर हुकुम चलाते है ,
           क्या होगा उन आलस डूबे मुस्टंडों का
 
ना सुबह मिलेगी चाय,नाश्ता गरम नहीं ,
         ना चड्डी ना बनियान ,तौलिया ना सूखा 
ना कपड़े प्रेस किये ऑफिस को जाने को ,
       ना टिफिन मिलेगा पैक ,पड़े रहना भूखा 
 ना तो मुस्कराती 'बाय बाय' ऑफिस जाते ,
      ना कोई वेलकम मिले तुम्हे जब घर आओ 
मुंह फुला तुम्हारी प्रिया तुम्हे देखे भी ना ,
         तो फिर तुम पर कैसी गुजरेगी ,बतलाओ 
सॉरी सॉरी कह कर उनसे मांगो माफ़ी 
                होता आया है बेड़ा गर्क घमंडों का 
जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
              तो क्या होगा इन बेचारे हस्बेंडों का 

दिन किसी तरह भी जैसे तैसे गुजरेगा ,
           पर मुश्किल होगी बहुत ,रात जब आएगी 
बीबी पलंग पर खर्राटे भर सोयेगी,
            और तकिया दे, सोफे पर तुम्हे सुलायेगी 
ना बात सुनेगी ,ना तुमसे कुछ बोलेगी 
               उसकी यह चुप्पी दिल तुम्हारा तोड़ेगी 
ना आने देगी पास न छूने ही देगी ,
               तुमसे वह घुटने झुकवा कर ही छोड़ेगी 
उसकी हर बात ख़ुशी से मानोगे हरदम ,
                 ना कोई तोड़ है बीबी के हथकंडों  का 
जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
                    तो क्या होगा इन बेचारे हस्बेंडों का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '             

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

खुद का धंधा 


तुमने बी ए ,एम् ए ,करके ,पायी पगार बस कुछ हज़ार 
दफ्तर जाते हो रोज रोज , और साहेब  डाटते  बार  बार 
और गला सूखता नहीं कभी ,यस सर ,यस सर ,यस सर कहते 
मजबूरी में तुम सब ये सहते ,और सदा टेंशन में रहते 
और साथी एक तुम्हारा था ,जो था दसवीं में फ़ैल किया 
उसने एक चाट पकोड़ी का ,ठेला बाज़ार में लगा लिया 
था स्वाद हाथ में कुछ उसके ,थोड़ी कुछ उसकी मेहनत थी 
लगने लग गयी भीड़ उसके ठेले पर उसकी किस्मत थी 
प्रॉफिट भी  दूना  तिगना था ,और धंधा सभी केश से था 
उसकी कमाई लाखों में थी और रहता बड़े ऐश से था 
अब वो निज मरजी  का मालिक ,है उसके सात आठ नौकर 
बढ़िया सी कोठी बनवा ली ,उसने है मेट्रिक फ़ैल होकर 
और तुम लेने दो रूम फ्लैट ,बैंकों के काट रहे चक्कर 
छोटा मोटा धंधा खुद का ,है सदा नौकरी से बेहतर 
सरकारी सर्विस मिल जाए ,कुछ लोग पड़े इस चक्कर में 
क्यों खुद का काम नहीं करते ,बैठे बेकार रहे घर में 
अंदर के 'इंटरप्रेनर 'को ,एक बार जगा कर तो देखो 
छोटा मोटा धंधा कोई ,एक बार लगा कर तो देखो 
मेहनत थोड़ी करनी होगी ,तब सुई भाग्य की घूमेगी 
जो आज नहीं तो कल लक्ष्मी ,आ कदम तुम्हारे चूमेंगी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 


तुम भी कुत्ते हम भी कुत्ते 
आपस में भाई भाई हम ,फिर क्यों होते गुत्थमगुत्थे
तुम भी कुत्ते हम भी कुत्ते 
तुम्हारी गली साफ़ सुधरी ,देखी जब इसकी चमक दमक  
मुझको उत्सुकता खींच लाइ देखूं  कैसी इसकी  रौनक 
देखा अनजान अजनबी को ,तुम सबके सब मिल झपट पड़े 
चिल्लाये मुझ पर भोंक भोंक ,मेरे रस्ते में हुए खड़े 
इस तरह शोर मत करो यार ,मारेंगे लोग हमें जुत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 
तुमको ये डर  था ,मैं आकर ,तुम्हारी सत्ता छीन न लूँ 
जो पड़े रोटियों के टुकड़े ,मैं आकर उनको बीन न लूँ 
भैया मेरा रत्ती भर भी ,ऐसा ना कोई इरादा था 
बस रौनक देख चला आया ,बंदा मैं सीधासादा था 
पर तुमने मुझे नोच डाला ,फाड़े मेरे कपड़े लत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 
तुम भी भोंके ,हम भी भोंके ,जब शोर हुआ ,सबने रोका 
हम रुके नहीं तो डंडे ले ,सबने मिल हमें बहुत  ठोका 
तुम पूंछ दबा ,मिमियाते से ,अपने दड़वे की ओर भगे 
मैं समझ गया ये मृगतृष्णा थी ,दूरी से देखो,तुम्हे ठगे 
डंडे ही मिलते खाने को ,मिल पाते नहीं मालमत्ते 
तुम भी कुत्ते ,हम भी कुत्ते 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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