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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

         ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
                   बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
                   कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
                    बरसा  करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा   ने आसमान  से , ला मैं  तेरे  आंसू  पी  लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
                         जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
                         मेरे आँगन  को चमकाएं
मेरी माटी,पिये  प्रेम रस,
                         सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान   से  ,ला ,मैं  तेरे   आंसूं   पी लूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 9 अगस्त 2015

हार का दर्द

           हार का दर्द

मिली शिकस्त ,हुआ पस्त ,बड़ा त्रस्त दुखी,
            हो गया अस्त व्यस्त ,ऐसा लगा झटका है
बड़ी बेदर्द , बड़ी बेवफा  ,ये   पब्लिक है ,
            अर्श से फर्श पर लाकर के कहाँ  पटका है
कभी पुश्तैनी जो होती थी कुर्सी सत्ता की ,
           ध्यान पी एम की कुर्सी पे अब भी अटका है
हार का दर्द क्या  ,पूछे ये कोई राहुल से ,
          मन में मोदी का सदा ,बना रहता  खटका है

घोटू

छुवन

           छुवन

नन्हा बच्चा जब रोता है ,
माँ उसे थपथपाती है
माँ के हाथों की छुवन ,
उसे चुप कर,सुलाती है
बड़ा होने पर ,जब भी माता पिता के,
चरण छूकर , सर नमाता है
ढेरों आशीर्वाद पाता  है
और जवानी में किसी लड़की की छुवन
कर देती है उसके पूरे तन में सिहरन
इस छुवन के भी कई रंग है ,कई ढंग है
हाथ ,जब गालों को छूकर सहलाता  है ,
तो मन में भरता  उमंग है
वो ही हाथ जब तेजी से,
 गालों पर पड जाता है  
तमाचा कहलाता है
कई बार एक दूजे को छू
लोग करीब आते है
 कबड्डी के खेल में ,ज़रा सा छूने पर ,
आउट हो जाते है
गुरूजी के ज्ञान की ऊर्जा ,
उनके चरण छूने पर ,
हमें प्राप्त होती है,जीवन संवारती है
तो बिजली के तारों में ,प्रभावित ऊर्जा ,
जरा सा छूने पर,करंट मारती है
कलम कागज़ को छूकर जब चलती है,
महाकाव्य रचा करती है
और कलाकार की तूलिका ,
जब कैनवास को छूती है
तो अनमोल पेंटिंग सजा करती है
कई बातें ,बिना स्पर्श किये ही,
दिल को छू जाती है
आँखे भी बिना छूए ही ,
एक दूसरे से मिल जाती है
इस छुवन का भी ,
बड़ा अजीब चलन होता है
हाथ को हाथ छूते  है तो दोस्ती होती है,
होंठ को होंठ छूते है तो चुम्बन होता है
दूर क्षितिज में,आसमान ,
धरती को छूता  हुआ नज़र आता है
पर क्या धरती और आसमान  का,
कभी मिलन हो पाता है 
आकाश की ऊंचाइयों को छूने का ,
मन में लेकर अरमान
जब सच्ची लगन से कोशिश करता इंसान
तो उसके कदमो को छूती  सफलता है
छुवन से ही जीवन है,जगती है ,प्रकृति है,
छुवन के बिना कुछ काम नहीं चलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

संवदेनशीलता

        संवदेनशीलता

थोड़ी सी बारिश हुई,और हम भीग गए ,
      थोड़ी सी सर्दी पडी ,और हम ठिठुराये
थोड़ी सी गर्मी में ,पसीने में तर हुए,
       लू के थपेड़ों से ,हम झट से कुम्हलाये
थोड़ी सी पीड़ा ने ,विचलित हमें किया ,
       आँखों ने नम होकर ,आंसू भी बरसाए
खबर कोई अच्छी सी ,अगर कहीं से आयी ,
      हुआ मन आनंदित  ,खुश हो हम  मुस्काये
हम उनको पाने की,कोशिशें करते है ,
      वो हमको हो जाते ,जब तक हासिल  नहीं
नहीं अगर वो मिलते ,टूट टूट जाता दिल,
          और तुम कहते हम,संवेदनशील   नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेसबुक स्टेटस

       फेसबुक स्टेटस

गोल चेहरा
रंग गहरा
मेरा फेसबुक स्टेटस
जस का तस
मजबूर और बेबस
फिर भी कभी कभी,
लेता हूँ हंस
मंहगाई के मौसम के ,
थपेड़े सहता हूँ
मैं बूढा बरगद पर,
हरा भरा रहता हूँ
मेरी शाखाओं पर
पंछियों ने ,
बसा रखे है अपने घर
सुबह शाम,
 जब वो चहकते है,
मैं भी चहकता हूँ
बहती हवाओं के,
संग संग बहता हूँ
मन की भावनाओं को,
शब्दों के उकेर कर
फेसबुक के पन्नो पर
कभी कभी कर देता हूँ पोस्ट
उन्हें जब पढ़ते है दोस्त
कोई कॉमेंट देता है,
कोई लाइक करता है
 आजकल जीवन ,
कुछ ऐसे ही गुजरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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