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सोमवार, 13 अप्रैल 2015

शिकायतें-पत्नी की

       शिकायतें-पत्नी की

उनको कुछ ना कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा
प्यार है  ये  उनका  या फिर सताने  की  है  अदा
हमने घूंघट उठाया उनका सुहागरात को
बोले मंहगी साडी है ,पहले समेटो और रखो
    तबसे घर के कपडे हम ही ,समेटे करते सदा
   उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
उनको ' बाइक' पर घुमाने ,ले गए एक दिन कहीं
बोले 'राइड' में तुम्हारे संग 'थ्रिल 'बिलकुल नहीं
     ब्रेक तुमने नहीं मारे और न कुछ झटका  लगा
     उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
एक दिन उनके लिए चाय बना के लाये हम
बोली क्या कुछ पकोड़े भी नहीं तल सकते थे तुम
            चाय के संग खिलाते हो हमको बिस्किट ही सदा
           उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
हमने अपना काट के सर ट्रे में रख उनको दिया
लगी कहने ,हेयर कट तो ,करवा तुम लेते मियां
       लगा था आंसू   बहाने ,कटा सर ,हो   गमजदा
       उनको कुछ न कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
ये करो  और  वो करो ,ऐसे  करो  ,वैसे   नहीं
सिखाती रहती है हमको क्या गलत,क्या है सही
            काम  है  इतना  कराती ,हमको  देती   है   पदा
            उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
कराते है उनको शॉपिंग ,ढीली होती जेब है
फिर भी वो खुश न रहती ,यही उनमे  एब है
       बोझ हम पर,लादती सब ,समझ कर हमको गधा
        उनको कुछ न कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

देखो हम क्या क्या खाते है

       देखो हम क्या क्या खाते है

कुछ चीजे ऐसी होती है ,नहीं निगलते ,नहीं चबाते
फिर भी हम सब,उनको अक्सर जीवनभर रहते है खाते
खाते ठंडी हवा रोज ही  ,खाते   धूप बैठ कर छत पर
पत्नीजी के तीखे तीखे ताने हम खाते है अक्सर
झूंठी सच्ची ,कितनी कसमे,हम खाते ,मौके,बे मौके
मिलती सीख,ठोकरे खाते ,कितनो से ही खाते धोखे
रिश्वत कभी घूस खाते है और कमीशन भी है खाते
इसीलिए स्विस की बैंकों में हमने खोल रखे है खाते
स्कूल में गुरु ,और दफ्तर में ,डाँट बॉस की हम खाते है
और डाट पत्नी की घर पर ,हम सारा जीवन खाते है
कभी कभी जब गुस्सा खाते  तो थोड़ा सा गम भी खाते
फिर अपने  आंसू पी लेते , पीड़ा मन की नहीं दिखाते
इश्क़ मोहब्बत के चक्कर में ,उनके घर के चक्कर खाते
शादी करते ,हवनकुंड के ,सात सात हम चक्कर खाते
गाली कभी मार खाते है ,खाने मिलते जूते,चप्पल
इसी तरह बस खाते पीते ,उमर गुजरती रहती पल पल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
 
 


शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मतलब की दुनिया

       मतलब की दुनिया
सबने अपने मतलब साधे
काम हुआ तो  ,राधे राधे
               १ 
कच्चा आम,अचार बनाया
चटकारे ले ले कर खाया
और पककर जब हुआ रसीला
दबा दबा कर,करके ढीला
जब तक रस था,चूसा जी भर
फेंक दिया ,सूखी गुठली कर
रस के लोभी,सीधे सादे
रस न बचा तो ,राधे राधे
             २
सभी यार मतलब के भैया
सब से बढ़ कर ,जिन्हे रुपैया
जब तक काम,हिलाते है दुम
मतलब निकला ,हो जाते गुम
अपना उल्लू सीधा करके
अपनी अपनी जेबें भर के
अपना ठेंगा ,तुम्हे दिखाते
काम हुआ तो राधे राधे
               ३
समरथ को सब शीश झुकाते
जय जय करते ,नहीं अगाथे
जब तक आप रहे कुर्सी पर
मख्खन तुम्हे लगाते जी भर
खुश करने को भाग,दौड़ते
कुर्सी छूटी  ,तुम्हे छोड़ते
नज़रें चुरा ,निकल झट जाते
काम हुआ तो राधे,राधे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

वही सुलतान होता है

           वही सुलतान होता है
काम  कितने ही ऐसे है ,देखने में सरल लगते ,
       सान  कर देखिये आटा ,नहीं आसान  होता है
निकल कर होंठ से आती,गाल पर फ़ैल जाती है,
        कान से लेना ना देना ,नाम मुस्कान होता  है 
मज़ा थोड़ा जरूर आता ,चंद लम्हे सरूर आता ,
        जाम जो रोज पीते है ,बुरा अंजाम  होता है
जिसे भी मिलता है मौका ,उसे सब चूसते रहते,
       आम की ही तरह यारों ,आम इंसान   होता है
फोटो छपती है पेपर मे ,नज़र आता है टी वी पर ,
       कोई बदनाम भी होता ,तो उसका नाम होता है
जो दबते है दबंगों से ,हमेशा रोते  रहते है ,
        जो सीना तान के रहता ,वही सुलतान  होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

क्या सेवा इसको कहते है ?

       क्या सेवा इसको कहते है ?

मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
        इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त  पति बतला कर
       अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी  ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
       हम बोले  ये बात गलत है
होता  देखा  है ये   अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
          होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
          प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
           बच्चों की सेवा  कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
           इसको सेवा पानी कहते
साला आये ,  उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
          इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि  लाओगे, थैला भर भर
         पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
        दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
        सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत  की करिये सेवा
मिलता  ज्ञान ,कृपा का मेवा
        खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे  ,झोली भर
       बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम  पर 
        ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा  है
      तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
      इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
      सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
       ये तो है तुम्हारी   मरजी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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