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सोमवार, 18 अगस्त 2014

खानपान

       खानपान

अलग अलग कितनी ही चीजें,है जो  लोगबाग खाते है
नहीं समझ में खुद के आता ,औरों का दिमाग खाते है
कोई रिश्वत खाता है तो कोई कमीशन खाया करता
कोई धीरे धीरे घुन सा , चिता बन ,तन खाया करता
कोई लम्बे चौड़े वादे कर क़समें खाया करता  है
कोई बड़े भाव खाता जब ,ऊपर चढ़ जाया करता है
कोई हिल स्टेशन जाकर के,ठंडी ठंडी हवा  खा रहा
कोई कहीं पर ठोकर खाता ,कोई धोखा ,दगा खारहा
कोई किसी को पटा रहा है,उसके घर के चक्कर खा के
होता हुआ प्यार देखा है, कभी किसी से टक्कर खा क़े
कोई जूते भी  खाता है, कोई  चप्पल, कोई  सेंडल
कोई फेरे सात अगन के,खाकर फंस जाता जीवन भर 
कोई खाता हवालात की हवा ,कोई बीबी से बेलन
कोई खाता रहम किसी पर,कोई गुस्सा खाता हरदम
कोई मार किसी से खाता ,डाट किसी से खाई जाती
बिना मुंह के ,इस दुनिया में,कितनी चीजें ,खाई जाती
लोग नौकरी के चक्कर में ,खाते धक्के ,इधर उधर के
फिर वो बड़े गर्व से कहते ,हम है खाते पीते घर  के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

कृष्णलीला

           कृष्णलीला

कन्हैया छोटे थे एक दिन,उन्होंने खाई  थी माटी
बड़ी नाराज होकर के ,  यशोदा मैया थी   डाटी
'दिखा मुंह अपना',कान्हा ने ,खोल मुंह जब दिखाया था
तो उस मुंह में यशोदा को ,नज़र ब्रह्माण्ड   आया था
मेरी बीबी को भी शक था ,   मिट्टी बेटे ने है खाई
खुला के मुंह जो देखा तो,उसे   दुनिया  नज़र आयी
कहीं 'चाइनीज ' नूडल थी,कहीं 'पॉपकॉर्न 'अमरीकी'
कहीं थे 'मेक्सिकन' माचो,कहीं चॉकलेट थी 'स्विस 'की
कहीं 'इटली'का पीज़ा था,कहीं पर चीज 'डेनिश'  थी
कहीं पर 'फ्रेंच फ्राइज 'थे,कहीं कुकीज़ 'इंग्लिश 'थी
गर्ज ये कि  मेरे बेटे के ,मुंह  में दुनिया   थी  सारी
यशोदा सी मेरी बीबी , बड़ी अचरज की थी मारी
वो बोली लाडला अपना ,बहुत  ही गुल खिलायेगा
बड़ा हो ,गोपियों के संग ,रास निश्चित ,रचायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 17 अगस्त 2014

मान मनुहार

            मान  मनुहार

रूठने और मनाने का ,होता है अपना मज़ा ,
             लोग कहते है कि ये भी,प्यार की पहचान है
दो मिनिट भी हो जाते  है जब नज़र से जो दूर वो ,
              आँखें  उनको  ढूंढने को ,मचाती  तूफ़ान  है 
  बड़ी प्यारी होती घड़ियाँ ,मान और मनुहार की
   बाद झगडे के सुलह में ,कशिश दूनी प्यार की
गिले शिकवे उससे ही होते है जिसमे अपनापन ,
            नहीं झगड़ा जाता गैरों से कि जो अनजान है

घोटू

दौलत और हुस्न

           दौलत और हुस्न

ये धन,दौलत ,रुपैया भी,बड़ी ही प्यारी सी शै है,
जरा जब पास आता है,बड़ा हमको लुभाता है
पड़े जो इसके लालच में ,मज़ा आता है सोहबत में,
अधिक पाने के चक्कर में,बड़े चक्कर कटाता है
हुस्नवाले भी ऐसे ही,हुआ करते है दौलत से ,
पास आ तुमको सहलाते ,बड़ा मन को सुहाते है
दिलाते दिल को राहत है,थकावट दूर कर देते ,
हुए जो लिप्त तुम उनमे ,तुम्हे दूना  थकाते  है

घोटू 
 

नोट का हुस्न

               नोट का हुस्न

कहा इक नाज़नीं ने 'कैसी लगती हूँ'तो हम बोले ,
नोट हज्जार सी रंगत,बड़ी सुन्दर और प्यारी है
देख कर तुमको आ जाती,चमक है मेरी आँखों में ,
तुम्हे पाने की बढ़ जाती ,हमारी  बेकरारी  है
पता लगता है सहला कर,कि असली है या नकली है
सजाती जिस्म तुम्हारा ,एक गोटा किनारी है
मेरा दिल करता है तुमको ,रखूँ मैं पर्स में दिल के,
मगर तुम टिक नहीं पाते  ,बुरी आदत तुम्हारी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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