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रविवार, 24 फ़रवरी 2013

पंचतत्व के गुण अपनाये

            पंचतत्व के गुण अपनाये

पहला है जल तत्व ,सदा नत मस्तक रहता
प्यास बुझाता ,कल कल कर नीचे को बहता
सिंचित करता धरा,बीज पनपा,उपजाता
देता है हरियाली,वृक्ष,पुष्प   महकाता
बन कर बादल,आसमान में ऊंचा  उड़ता
फिर बारिश की बूंदें बन ,धरती से जुड़ता
जल चरित्र को क्यों ना जीवन में अपनाये
नम्र रहें ,नतमस्तक ,काम सभी के आये
जो हरदम ऊपर उठता ,वो अग्नि तत्व है
इसका मानव के जीवन में अति महत्त्व है
यही तत्व है जो देता उर्जा  जीवन को
और इसी से उर्जा मिलती मानव तन को
लपट  आग की हरदम है ऊपर को जाती
प्रगतिशील बन ,ऊपर उठो,पाठ सिखलाती
अग्नि तत्व से ले ये शिक्षा ,हम आगे बढ़
प्रगतिवान बन करें तरक्की ,हम ऊपर चढ़
तत्व तीसरा ,जिससे बनती है ये काया
धरती की माटी है ,जिसने हमें बनाया
हल चलवा ,निज तन पर,सबको अन्न देती है
मातृस्वरूपा ,जीने के साधन देती है
खोदो भी यदि ,तो भी है ये रत्न उगलती
सहनशीलता की मिसाल है ये माँ धरती
हम जीवन भर आभारी है,इस धरती के
परोपकार और सहनशीलता ,इससे सीखें
पंचतत्व के तन में चौथा तत्व पवन है
लेते सांस हवा से हम पाते जीवन है
जीवनदाता है पर नज़र नहीं आती है
बिना दिखे उपकार करो ,ये सिखलाती है
गुप्त रूप से सेवा कर ,मत करो प्रदर्शन
तत्व पांचवां 'गगन',हमें जो देता जीवन
नभ की तरह विशाल बने ,यह गुण भी पायें
पंचतत्व का तन है ,इनके गुण अपनाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 


दिल की सुन-लोगों की मत सुन

    दिल की सुन-लोगों की मत सुन

मुझे ज़माना ,अपने अपने ढंग, से समझाता रहता है  
लेकिन मै  वो ही करता हूँ,जैसा मेरा मन कहता  है 
मम्मी कहती ऐसा करले,पापा कहते वैसा करले
कहते दोस्त ,संभल कर कुछ कर ,मत तू ऐसा वैसा करले
पडूं बीमार,कोई कहता है,जाओ,डाक्टर को दिखलाओ
कोई कहता ,डाक्टर छोडो,तुम देशी इलाज  करवाओ
देता है कोई सलाह कि होम्योपेथी आप दवा लो
कोई कहता किसी सयाने से तुम झाड फूंक करवा लो
कोई कहता ,जा हकीम के पास दवा लो तुम यूनानी
तुम आयुर्वेदिक इलाज लो,तभी बिमारी जड़ से जानी
लोगबाग़ कुछ समझाते है ,छोडो यार दवा का चक्कर
बाबा रामदेव के आसन ,तुमको स्वस्थ रखे जीवन भर
बीमारी में हालचाल जो ,मेरा कोई पूछने आता
तरह तरह की राय बता कर ,सलाहकार मेरा बन जाता
जितने मुंह है,उतनी बातें,कन्फ्यूजन  हरदम रहता है
लेकिन मै वो ही करता हूँ,जैसा मेरा दिल कहता है
बच्चे ने स्कूल करलिया ,आगे इसको क्या पढवाना
कितने ही मेरे शुभचिंतक ,देते मुझे सलाहें  नाना
यूं कर कोटा भेज इसे तू,आई आई टी की कोचिंग करवा
कोई कहे पी एम टी करवा,इसे डाक्टर अच्छा बनवा
अच्छा जॉब कराना है तो ,तू करवा इसको एम बी ए
जो अच्छी कमाई करवाना ,तो तू बनवा  ,इसको सी ए
कोई कहे फोरेन  भेज दे,वहां पढाई  करना  अच्छा
कोई कहे ये मत कर वर्ना ,निकल हाथ से जाए बच्चा
कोई ना कहता है पूछो,कि बच्चे के मन में क्या है
या उसका इंटरेस्ट किधर है,आगे  उसको बनना क्या है
हम खुद,कुछ हों या ना हो पर,सलाहकार सबसे अच्छे है 
कोई पूछे या ना पूछे,मुफ्त मशविरा दे देते है  
दिल की सुन,लोगों की मत सुन,बस इसमें ही सुख रहता है
इसीलिए मै वो करता हूँ,जो भी मेरा दिल कहता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आतंकवादी बम धमाकों पर...



इकहत्तर की उमर हो गयी

  इकहत्तर की उमर हो गयी   


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

तुमने ऐसी आग लगा दी

             तुमने ऐसी आग लगा दी

               मै पग पग रख ,धीरे चलती
               तुम चलते हो जल्दी ,जल्दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी  
               मंद  आंच सी, मै  हूँ जलती
             और तुम तो हो  लपट दहकती 
तुमने अपनी चिंगारी से ,तन मन में है आग   लगा दी
              ऊष्मा है तो मेघ उठेंगे
             घुमुड़ घुमुड़  कर वो गरजेंगे
             रह रह कर बिजली कड़केगी , 
              तप्त धरा पर फिर बरसेंगे 
              बहुत चाह  थी मेरे मन की 
              भीगूं रिमझिम में  सावन की
लेकिन तुम तो ऐसे बरसे,प्रेम झड़ी ,घनघोर लगा दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी 
               मै हूँ पानी,तुम हो चन्दन
             हम मिल जुल ,करते आराधन 
               तुम घिस घिस इस तरह घुल गये
                महक गया तन मन का आँगन
               चाहत थी तन में खुशबू भर
                चढूँ  देवता के मस्तक पर
तुम को अर्पित करके सब कुछ,जीवन की बगिया महका दी
 मै बस चार कदम चल पायी ,और तुमने तो दौड़  लगा  दी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

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