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रविवार, 27 जनवरी 2013

एक कंवारे की गुहार- कोई मेरी मम्मी को समझाये

  एक कंवारे की गुहार- कोई मेरी मम्मी को समझाये

जैसे कच्ची केरी आ जाती है गार पर ,
और आम बनने को हो जाती है तैयार
उसी तरह मै भी पढ़ा लिखा जवान हो गया हूँ,
ब्रह्मचर्य आश्रम की उम्र को कर लिया है पार
मैंने कई बार ,अपने जवान होने का इशारा,
 करने,अपने दाढ़ी ,मूंछें भी  बढवाई 
मगर घरवाले मुझे छोटा ही समझते है,
ये बात भी उनके समझ में न आई
मै ,जब भी किसी लड़की से मुलाक़ात करता हूँ,
तो मै उससे नज़रें झुका  कर बात करता हूँ
मगर घरवाले समझते है की मै शर्मीला हूँ,
मुझे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है
जब कि मै उसके पैरों की तरफ इसलिए देखता हूँ,
कि  उसने बिछुवे पहन रखे है या नहीं
यानी वो शादीशुदा है या कंवारी,पहले ये पता लगाऊं
और उसके बाद ,बात को आगे बढ़ाऊ
मै अलग शहर में नौकरी करता हूँ ,
और जब भी घर जाता हूँ
घर के खाने की तारीफ़ करता हूँ,
और अपनी खान पान की दिक्कत बताता हूँ
ताकि मम्मी को पता लग जाये कि ,
मुझे खाने पीने की कितनी परेशानी है
और उसे मेरे लिए ,जल्दी से ,
एक अच्छा खाना बनाने वाली बीबी लानी है
पर पता नहीं क्यों,मम्मी मेरी ये 
बात क्यों नहीं समझ लेती है
बस मेरे साथ मिठाई और खाने पीने का,
ढेर सारा सामान बाँध देती है
अब मै उन्हें कैसे बतलाऊं,कि मै क्या चाहता हूँ
मै ,मिठाई नहीं,मिठाई बनाने वाली चाहता हूँ
अब मुझे अकेला घूमने फिरने में शर्म आती है
तो मैंने गिटार का शौक अपनाया है
और अपने साथ गिटार लेकर,घूमकर ,
मैंने घरवालों को ये ही बतलाना चाहां है
कि मुझे गिटार जैसी जीवन संगिनी चाहिए ,
जो मेरे जीवन में मधुर संगीत भर दे
और मेरे दिल के तारों को झंकृत कर दे
पर मेरी मम्मी  ये सब इशारे नहीं समझ पाती है
और कभी कभी जब वो मेरी शादी की बात चलाती है
तो मै दिखाने के लिए यूं ही टालमटोल करता हूँ
उनके सामने सीधे से कैसे बोल सकता हूँ
आखिर बड़ों के आगे कुछ तो शर्म करनी पड़ती है
और मेरी मम्मी ,इसका मतलब उल्टा समझती है
अरे ,अब मै छोटा  बच्चा नहीं रहा ,पढलिख कर,
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ
प्लीज ,कोई मेरी मम्मी को समझाए कि मै ,
शादी के लायक हूँ,और बढ़ा हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


शनिवार, 26 जनवरी 2013

मगर टिमटिमा कर के जलते तो है

     मगर टिमटिमा कर के जलते तो है

पीने की हमको है आदत नहीं,
                      मगर दारू घर में हम रखते तो है
खाने पे मीठे की पाबंदी है ,
                     मिले जब भी मौका तो चखते तो है
खुद का बनाया हुआ हुस्न है,
                      चोरी छुपे  इसको  तकते तो है
नहीं सोने देती तू अब भी हमें ,
                         तेरे खर्राटों से हम जगते तो है  
रहा तुझमे पहले सा वो जलवा नहीं,
                          मगर अब भी तुझ पर हम मरते तो है
अगर नींद हमको जो आती नहीं,
                           तकिये को बाँहों में भरते  तो है 
दफ्तर से तो हम रिटायर हुए,
                           मगर काम घरभर का करते तो है
कहने को तो घर के मुखिय है हम,
                            मगर बीबी,बच्चों से डरते तो है
ये माना कि  हम तो है बुझते दिये ,
                             मगर टिमटिमा करके जलते तो है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

कर तो लो आराम


रंजिश में ही बीत गई है तेरी तो हर शाम,
छुट्टी लेकर बैर भाव से, कर तो लो आराम |

आपा-धापी, भागम-भाग में,
ठोकर खाकर, गिर संभलकर,
कभी किसी की टांग खींचकर,
कभी गंदगी में भी चलकर |

यहाँ से वहाँ दौड़ के करते, उल्टे सीधे काम,
छुट्टी लेकर भाग-दौड़ से, कर तो लो आराम |

कभी किसी की की खुशामद,
कभी कहीं अकड़ कर बोले,
कभी कहीं पे की होशियारी,
कहीं-कहीं पे बन गए भोले |

बक-बक में ही गुजर गया, जीवन हुआ हराम,
छुट्टी लेकर शोर-गुल से, कर तो लो आराम |

वक्त बेवक्त अपनों की सोची,
सबके लिए बस लगे ही रहे,
झूठ-सच की करी कमाई,
पर पथ में तुम जमे ही रहे |

       अपनों के लिए पीते ही रहे, स्वाद स्वाद के जाम,
       कुछ वक्त खुद को भी देकर, कर तो लो आराम |

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सपनो के सौदागर से

         सपनो के सौदागर से

बहुत जिन्दाबादी के नारे सुने,
                        अब असली मुद्दों पे आओ जरा
करेंगे ये हम और करेंगे वो हम,
                      हमें कुछ तो कर के दिखाओ जरा
ये जनता दुखी है,परेशान  है,
                       उसे थोड़ी राहत  दिलाओ जरा
ये सुरसा सी बढती चली जारही ,
                      इस मंहगाई को तुम घटाओ जरा
भाषण से तो पेट भरता नहीं,
                        खाना मयस्सर  कराओ जरा
खरचते थे सौ ,मिलते पंद्रह थे,
                       नन्यान्वे  अब दिलाओ  जरा 
गरीबों के घर खाली रोटी बहुत,
                        गरीबों को रोटी  खिलाओ जरा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 23 जनवरी 2013

              खट्टा -मीठा

पत्नी जी बोली मुस्का कर
तुम तो कवि  हो मेरे डीयर
अपने मन की परते खोलो
मुझसे कुछ ऐसा तुम बोलो
जिससे मन खुश भी हो जाये
पति बोला क्या बोलूँ प्रियतम
तुम ही तो हो मेरा जीवन
किन्तु मुझे लगता है अक्सर
लानत है ऐसे जीवन पर

घोटू

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