कृष्ण हूँ मै
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा अनूठा
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित व्यवहार मेरा
अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका मै
रुकमणी का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र 18,19,20 पुरुष एवं प्रकृति संबंध
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