पते की बात
जिव्हा
नहीं होती कोई हड्डी जीभ में ,
पर हिल कितने ही दिल तोड़ दिया करती है
वही जीभ जब तलुवे से मिल कहती 'सोरी',
टूटे हुए दिलों को जोड़ दिया करती है
घोटू
1476-4 कविताएँ-
-
*कविता**एँ-*
*1-मैं शिला पर रेख हूँ/ डॉ . सुरंगमा यादव*
*दीप की मैं लौ नहीं हूँ**,*
* जो हवा दम**-खम दिखाए*
* मैं लहर भी नहीं कोई*
* छू किनारा लौट ...
1 घंटे पहले