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बुधवार, 18 जनवरी 2012

बेटी का मेल

ड़ैड़ी,
इस बार टूर से लौटते वक्त
भले ही गिफ्ट मत लाना
पर इस मेल को पढ़ कर
यह वादा जरुर करना कि
मेरी इन सभी बातों को पूरा करेंगे
पहली बात
आप मेरा नाम उस स्कूल मे लिखायेंगे
जहां बहुत ज्यादा होम वर्क नही दिया जाता हो
और बहुत ज्यादा मार्क्स लाने के लिये
बच्चों को प्रेस न किया जाता हो


सच पापा ज्यादा ये ज्यादा मार्क्स लाने की टेंसन में
मै स्कूल आवर को ईटरटेन नही कर पाती
और पापा स्कूल घर से ज्यादा दूर भी नहो
क्योंकि जरा सी देर होने पर मम्मी परेसान होने लगती हैं
कि कहीं मेरे साथ कोई हादसा तो नही हो गया।
इसके अलावा ड़ैड़ी
अपना नया मकान उस जगह लेना
जहां पड़ोस के अंकल
अंकल जैसे ही हों
न कि बात करते करते गाल और पीठ छूने की कोशिश करते हों


और पापा अगल बगल के भइया लोग भी ऐसे न हों
जो मम्मी को सामने तो आंटी या भाभी जी कहते हों
और पीठ पीछे गंदी गंदी बातें कहते हों
डैडी एक बात और
मेरा स्कूल मे कोई भी ब्वाय फ्रेंड नही है
मुझे सभी लड़के खराब लगते हैं
वे अभी से सिगरेट और बियर पीते हैं
और गंदी गंदी बातें भी करते हैं
मै तो उन सबसे दूर रहती हूं


मेरा तो बस एक दोस्त है
पर डैडी वह बहुत सीधा है
ज्यादातर चुप ही रहता है
डसके ड़ैडी किसी औरत के साथ घूमते रहते हैं
और उसकी मम्मी नेट पर पता नही किससे किससे
चैट करती रहती है
यह सब उसे अच्छा नही लगता
पर वह छोटा है इसी लिये कुछ नही कह सकता |


पर मेरे प्यारे डैडी आपतो ऐसे नही है।
और मम्मी भी ऐसी नही हैं
पर आजकल मम्मी को भी नेट पे चैटिंग का शौक लग रहा है
यह मुझे भी अच्छा नही लगता
पापा आप उन्हे अपनी तरह से समझा दीजियेगा
मै उनकी शिकायत नही कर रही
पर मम्मी को क्या पता कि अक्सर जेंट्स लोग ही
फेमनिन नेम से आई डी खोल कर औरतों से
चैट करते रहते हैं
डैडी आपतो बहुत अच्छे हैं और यह सब जानते भी है।


डै़डी आप नया मकान उस जगह लीजियेगा
जंहां रोज रोज बम न फटते हों
और लोग एक दूसरे से मिलजुल कर रहते हों
और मेरा स्कूल भी घर के पास हो
ताकि देर होने पर मम्मी चिंता न रहे
ड़ैड़ी अब मै चाह कर भी छोटी मिडी नही पहनती
लोग मुझे कम मेरी टांगो को ज्यादा देखते हैं |


ड़ैड़ी मुझे नही मालुम आप यह मेल पढ़ कर क्या सोचेंगे
पर मै ये बाते कहूं भी तो किससे ?
क्योंकि मेरी तो काई दीदी भी नही है
और दादी भी नही है अगर
मम्मी से कहो तो वह झिडक देती हैं
कहती हैं तुम अपने आपमे सही रहो
दूसरो से मतलब क्यों रखती हो
पर ड़ैड़ी, आदमी अकेले तो सही नही रह सकता
जबतब कि दूसरे भी सही न हों
पापा यह बात मम्मी को आप समझाइयेगा
और मेरी इन सब बातों को पूरा करना भूल मत जाइयेगा
भले ही आप मेरे लिये गिफट लाना भूल जायें

आपकी अच्छी बेटी





रचनाकार:-मुकेश इलाहाबादी 


(मुकेश जी की यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है |)

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

वो एक ख्वाब था

वो एक ख्वाब था ।
पर जो भी था, लाजवाब था ।

चंद लम्हों को आया था,
मुस्कुराहट भी लाया था ।
अंधेरे में एक किरण बनकर,
मृत शरीर में जीवन बनकर ।
जीवन के अगणित सवालों के बीच,
कई फलसफों का वो जवाब था,
वो एक ख्वाब था ।

अश्रु को मोती में बदलता,
तमस को ज्योति में बदलता ।
अपनेपन का पाठ पढ़ाता,
जीवन के हर गुर सीखाता ।
सुखे हुए सुमनों के बीच,
खिलता हुआ वो गुलाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

वो एक ख्वाब था ।
दो पल का ही सही, वो एक रुबाब था ।
वो एक ख्वाब था ।

रविवार, 15 जनवरी 2012

जब जब दिल में दर्द हुआ है

जब जब दिल में दर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
जब भी कोई आपके अपने,
             जिनको आप प्यार करते है
मुंह पर मीठी मीठी बातें,
            पीछे पीठ वार   करते है
जब जब भी बेगानों जैसा,
अपना ही हमदर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
रिश्तों के इस नीलाम्बर में,
               कई बार छातें है बादल                                      
होती है कुछ बूंदा बांदी,
               पर फिर प्यार बरसता निश्छल
शिकवे गिले सभी धुल जाते,
मौसम खुल बेगर्द  हुआ है
जब जब दिल में दर्द हुआ है
गलतफहमियों का कोहरा जब,
                आसमान में छा जाता है
देता कुछ भी नहीं दिखाई ,
                रास्ता नज़र नहीं आता है
दूर क्षितिज में अपनेपन का,
सूरज जब भी जर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
शीत ग्रीष्म के ऋतू चक्र के,
                         बीच बसंत ऋतू आती है  
नफरत के पत्ते झड़ते है ,
                        प्रीत कोपलें मुस्काती है
कलियों और भ्रमरों का रिश्ता,
जब खुल कर बेपर्द  हुआ  है
तब तब दिल में दर्द हुआ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 जनवरी 2012

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...

JAGO HINDU JAGO: मकरसक्राँति और लोहरी के पवित्र त्यौहार पर आप सबको ...
जिंदगी यूँ ही गुजर रही है ,
और अँधेरा थम नहीं रहा,
दूरियों  को मिटाना आसान था कभी ,
अब दूर तलक शमशान है ...
खामोश थे हम बेवजह कभी,
अब वो खामोश हो गए |
वजह कुछ  खास थी उनकी .....
बताना बहुत कुछ था
जुबान भी सही सलामत थी मेरी |
पर उनके कान निर्जीव पड़े थे ........
दबे पावों लौट आया एक अनकही कहानी बनकर ...
अब अलविदा भी कहना बेईमानी लगता है |




कवि परिचय:
विकास कुमार
केमिकल इंजिनियर
गुजरात 

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