बीत गए दिन गठबंधन के
अब तो लाले है चुम्बन के
सभी पाँचसौ और हज़ारी ,
नोट बन्द है ,यौवन धन के
ना उबाल है ना जूनून है
एकदम ठंडा पड़ा खून है
मात्र रह गया अस्थिपंजर ,
ऐसे हाल हुए इस तन के
मन का साथ नहीं देता तन
सूखा सूखा सा हर मौसम
रिमझिम होती थी बरसातें ,
बीते वो महीने सावन के
बिगड़ी आदत जाए न छोड़ी
इत उत ताके ,नज़र निगोड़ी
लेकिन तितली पास न फटके ,
सूखे पुष्प देख उपवन के
मन मसोस कर अब जीते है
और ग़म के आंसू पीते है
राधा,गोपी घास न डाले ,
तट सूने है वृन्दावन के
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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