कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेन्दर
कभी फूंकते शंख ,हो तुम समर में,
कभी हांकते रथ हो तुम सारथी बन
कभी ज्ञान गीता का अर्जुन को देते ,
चलाते सुदर्शन ,बड़े महारथी बन
जहाँ जाते रंग जाते ,वैसे ही रंग में ,
बजाते हो ढोलक,कभी बांसुरी तुम
कभी काटते सर ,शिशुपाल का तुम,
कभी शांत कपिला ,कभी केहरी तुम
कभी द्वारिका में ,कभी इंद्रप्रस्थ में ,
जहाँ भी हो जाते ,तुम छा जाते सब पर
हरा कौरवों को,जिताते हो पांडव ,
बड़े राजनीति के पंडित धुरन्दर
कभी कंसहन्ता ,तो रणछोड़ भी तुम,
तुम्हे आती है सारी ,सोलह कलाएं
कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेंदर ,
बड़ी आस तुमसे है सब ही लगाए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कभी फूंकते शंख ,हो तुम समर में,
कभी हांकते रथ हो तुम सारथी बन
कभी ज्ञान गीता का अर्जुन को देते ,
चलाते सुदर्शन ,बड़े महारथी बन
जहाँ जाते रंग जाते ,वैसे ही रंग में ,
बजाते हो ढोलक,कभी बांसुरी तुम
कभी काटते सर ,शिशुपाल का तुम,
कभी शांत कपिला ,कभी केहरी तुम
कभी द्वारिका में ,कभी इंद्रप्रस्थ में ,
जहाँ भी हो जाते ,तुम छा जाते सब पर
हरा कौरवों को,जिताते हो पांडव ,
बड़े राजनीति के पंडित धुरन्दर
कभी कंसहन्ता ,तो रणछोड़ भी तुम,
तुम्हे आती है सारी ,सोलह कलाएं
कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेंदर ,
बड़ी आस तुमसे है सब ही लगाए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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