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सोमवार, 27 जनवरी 2014

अभिमन्यु

    अभिमन्यु

पहले मैंने हाथ में चरखी  लेकर,
उसका संचालित करना सीखा
मांजे को कब ढील देना ,कब समेटना ,
ये सारा अनुशासन  सीखा 
और जब मेरी पतंग ,
आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी ,
पांच,सात,दिग्गज पतंगबाजों की ,
आँखों में चुभने लगी
उन्होंने सबने मिल कर ऐसा पेंच डाला ,
मेरी पतंग को काट डाला
यह तो मानव की प्रवृत्ति है ,
मैं परेशान क्यूँ हूँ
मैं आज का अभिमन्यु हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'








 
 

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