एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

दिनचर्या - बुढ़ापे की

    दिनचर्या - बुढ़ापे की

रात बिस्तर पर पड़े ,जागे सुबह,
                      सिलसिला अब ये रोजाना हो गया है
आती है,आ आ के जाती है  चली ,
                       नींद का यूं  आना  जाना  हो गया  है
     हो गए कुछ इस  तरह हालात है
                            मुश्किलों से कटा करती रात  है
 देखते ही रहते ,टाइम क्या हुआ ,   
                             चैन से सोये  ज़माना हो गया है   
आती ही रहती पुरानी याद है,
                               कभी खांसी तो कभी पेशाब है ,
कभी इस करवट तो उस करवट कभी,
                                 रात भर यूं तडफडाना हो गया है
सुबह उठ कर चहलकदमी कुछ करी ,
                                 फिर लिया अखबार ,ख़बरें सब पढ़ी ,
बैठे ,लेटे , टी .वी देखा बस यूं ही,
                                 अब तो मुश्किल ,दिन बिताना हो गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
    आज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





    जवाब देंहटाएं
  2. नया अंदाज़ ..
    मजबूत अभिव्यक्ति !!

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-