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रविवार, 6 जनवरी 2019

धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ केश सुखाती धूप 
मुँगफलिया खाती धूप 
कुछ मटर छिलाती धूप 
कुछ गप्प लड़ाती  धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ चमकीली  सी धूप 
सत रंगीली  धूप सी धूप 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

शनिवार, 5 जनवरी 2019

फोकटिये 

हम तो फोकटिये है यार,हमको माल मुफ्त का भाता 

धूप सूर्य की ,मुफ्त कुनकुनी ,खाते है सर्दी में 
और बरगद की शीतल छैयां ,पाते है गर्मी में 
बारिश में रिमझिम का शावर है हमको नहलाता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

जब वृक्षों पर कुदरत देती ,मीठे फल रस वाले 
पत्थर फेंक तोड़ते उनको ,खाते खूब मज़ा ले 
 माल मुफ्त का देख हमारे मुंह में पानी आता 
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

हम उस मंदिर में जाते ,परशाद जहाँ पर मिलता 
मुफ्त सेम्पल चखने वाला ,स्वाद जहाँ पर मिलता 
भंडारे और लंगर छखना ,हमको बहुत सुहाता 
हम तो फोकटिये है यार हमको माल मुफ्त का भाता 

श्राद्धपक्ष में पंडित बन कर ,मिले दक्षिणा ,खाना 
शादी में बाराती बन कर, मुफ्त में मौज उड़ाना 
उस रैली में जाते ,फ्री में जहाँ खाना मिल जाता    
हम तो फोकटिये है यार ,हमको माल मुफ्त का भाता 

घोटू 
धूप 

कुछ गरम गरम सी धूप 
कुछ नरम नरम सी धूप 
कुछ बिखरी बिखरी धूप 
कुछ निखरी निखरी धूप 

कुछ तन सहलाती धूप 
कुछ मन बहलाती धूप 
कुछ छत पर छाती धूप 
कुछ आती जाती धूप 

कुछ जलती जलती धूप 
कुछ ढलती ढलती  धूप 
कुछ चलती चलती  धूप 
कुछ यूं ही मचलती धूप 

कुछ चुभती चुभती धूप 
कुछ बुझती बुझती धूप 
कुछ उगती उगती धूप 
कुछ मन को रुचती धूप 

कुछ सर पर चढ़ती धूप 
कुछ पाँवों पड़ती   धूप 
कुछ आँखों गढ़ती धूप 
कुछ रूकती ,बढ़ती धूप 

कुछ रूपहरी सी धूप 
कुछ सुनहरी सी धूप 
कुछ दोपहरी सी धूप 
तो कुछ ठहरी सी धूप 

कुछ सुबह जागती धूप 
कुछ द्वार लांघती  धूप 
खिड़की से झांकती धूप 
संध्या को भागती  धूप 

कुछ शरमाती सी धूप 
कुछ मदमाती सी धूप 
कुछ गरमाती सी धूप 
कुछ बदन तपाती धूप 

कुछ भोली भोली धूप 
कुछ रस में घोली धूप 
सब की हमजोली धूप
करे आंखमिचोली धूप 

कुछ थकी थकी सी धूप 
कुछ पकी पकी सी धूप 
कुछ छनी छनी सी धूप 
कुछ लगे कुनकुनी धूप 

कुछ खिली खिली सी धूप  
मुश्किल से मिली सी धूप 
कुछ  रंगरंगीली  धूप 
है कई रूप की धूप 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  
 

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

बालिग़ उमर -प्यार रस डूबो 

बालिग़ हो गयी सदी बीसवीं ,लगा उसे उन्नीस बरस है 
निखरा रूप,जवानी छायी, हुई अदा ज्यादा दिलकश है  
बात बात पर किन्तु रूठना ,गुस्सा होना और झगड़ना ,
बच्चों सी हरकत ना बदली ,रहा बचपना जस का तस है 
तन के तो बदलाव आ गया ,किन्तु छिछोरापन कायम है ,
नहीं 'मेच्यूअर 'हो पाया मन ,बदल नहीं पाया, बेबस है 
बाली उमर गयी अब आयी ,उमर प्यार छलकाने वाली ,
कभी डूब कर इसमें देखो ,कितना मधुर प्यार का रस है 

घोटू 

रविवार, 30 दिसंबर 2018

नया बरस -पुरानी बातें 

इस नए बरस की बस ,इतनी सी कहानी है 
कैलेंडर नया लटका ,पर कील पुरानी  है 
महीने है वो ही बारह,हफ्ते के  कुछ वारों ने ,
कुछ तारीखों संग लेकिन  ,की छेड़ा खानी है 
सर्दी में ठिठुरना है,ट्रेफिक में भी फंसना है ,
होटल है बड़ी मंहगी ,बस जेब कटानी है 
 दो पेग चढ़ा कर के ,दो पल की मस्ती कर लो,
सर भारी सुबह होगा ,तो 'एनासिन'  खानी है 
बीबी से  बचा नजरें  ,खाया था गाजर हलवा 
बढ़ जायेगी 'शुगर 'तो ,अब डाट भी खानी है 
कितने ही 'रिसोल्यूशन 'नव वर्ष में तुम कर लो,
संकल्पो की सब बातें ,दो दिन में भुलानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नव वर्ष
     नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ

गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारण  कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कल से जानो
कल ने ही कांटे छांटे  थे
किया सुगम पथ ,इतना मानो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सरिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ

नए वर्ष का जशन मनाओ 
आज ख़ुशी  आनंद उठाओ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इमारत,दरख़्त और इंसान 

कुछ घरोंदे बन गए घर , कुछ घरोंदे ढह गये 
निशां कुछ के,खंडहर बन ,सिर्फ बाकी रह गये 

कल जहाँ पर महल थे ,रौनक बसी थी ,जिंदगी थी 
राज था रनवास था और हर तरफ बिखरी ख़ुशी थी 
वक़्त के तूफ़ान ने ,ऐसा झिंझोड़ा ,मिट गया सब 
काल के खग्रास बन कर ,हो गए वीरान है  अब 
उनके किस्से आज बस,इतिहास बन कर रह गए है 
कुछ घरोंदे बन गए घर ,कुछ घरोंदे  ढह गये  है 

भव्य हो कितनी इमारत, उसकी नियति है उजड़ना 
प्रकृति का यह चक्र चलता सदा बन बन कर बिगड़ना 
भवन भग्नावेश तो इतिहास की बन कर धरोहर 
पुनर्जीवित मान पाते ,जाते बन पर्यटन स्थल 
चित्र खंडित दीवारों के ,सब कहानी कह गये है
कुछ घरोंदे बन गये घर ,कुछ घरोंदे ढह गये है 

वृक्ष कितना भी घना हो ,मगर पतझड़ है सुनिश्चित 
टूटने पर काम आये ,काष्ठ ,नव निर्माण के हित 
वृक्ष हो या इमारत,हो ध्वंस छोड़े निज निशां पर 
मनुज का तन ,भले कंचन ,मिटे  तो बस राख केवल 
अस्थि के अवशेष जो भी  बचे ,गंगा बह गये है 
कुछ घरोंदे ,बन गये  घर,कुछ घरोंदे ढह गये है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '    

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

महरियों की स्ट्राइक 

अगर महरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 
देर सुबह तक लेती दुबक रजाई में ,
क्या होगा उन प्यारे प्यारे ख्वाबों का 
घर में बिखरा कचरा मौज मनाएगा ,
सीकें झाड़ू की चुभ कर नहीं उठाएगी 
प्यासी फरश  बिचारी  यूं ही तरसेगी ,
चूड़ी खनका,पोंछा कौन लगाएगी 
जूंठे बरतन पड़े सिंक में सिसकेंगे ,
कौन उन्हें स्नान करा कर पोंछेंगा 
मैले कपडे पड़े रहेंगे कोने में ,
नहीं कोई धोने की उनको सोचेगा 
क्योंकि सुबह से ऑफ मूड हो मेडम का 
उनके सर में दर्द ,कमर दुखती होगी 
पतिजी सर सहला कर चाय पिलायेंगे  
नज़रद्वार पर जा जा कर रूकती होगी 
खुदा करे स्ट्राइक टूटे जल्दी से 
और मेहरी देवी के दरशन हो जायें 
दूर बिमारी मेडम की सब हो जाए ,
साफ़ और सुथरा घर और आंगन हो जाए 
वरना विपत्ति पहाड़ गिरेगा पतियों पर ,
सुबह शाम खाना आएगा ढाबों का 
अगर मेहरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

कम्बोडिया का अंगकोर वाट मंदिर देख कर 


सदियों पहले ,
दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशो में ,
हिन्दू धर्म का विस्तार था 
आज का 'थाईलैंड 'तब 'स्याम 'देश था 
यहाँ भी हिंदुत्व का प्रचार प्रसार था 
बैंकॉक में कई मंदिर है व् पास ही ,
;अयुध्या 'नगर में ,कई मंदिर विध्यमान है 
वहां के हवाईअड्डे 'स्वर्णभूमि 'में ,
'अमृत मंथन 'का विशाल सुन्दर स्टेचू ,
उनके हिंदुत्व प्रेम की पहचान है 
यद्यपि अब वहां बौद्ध धर्म माना जाता है 
पर वहां के पुराने मंदिरों के टूर में ,
गणेशजी ,शिवजी आदि देवताओं की ,
पुरानी मूर्तियों का दर्शन हो जाता है  
आज का इंडोनेशिया ,
प्राचीन जावा ,सुमात्रा और बाली है 
वहां भी मंदिरों में हिन्दू देवताओं की प्रतिमाये सारी  है  
वहां अब भी रामायण और महाभारत के पात्र ,
मूर्तियों में नज़र आते है 
बाली में तो अब भी ,
कई हिन्दू धर्मावलम्बी पाए जाते है 
वहां के लगभग सभी घरों के आगे और दुकानों में ,
अब भी छोटे छोटे मंदिर पाए जाते है 
जिनमे देवताओ को लोग रोज 
फूल और प्रसाद चढ़ाते है 
तब का मलय देश अब मलेशिया है 
पर यहाँ से हिन्दू धर्म बिदा  हो गया है
तब का 'कम्बोज ' देश अब कम्बोडिया है और 
यह हिन्दू धर्म का पालक एक बड़ा राज्य था 
यहां राजा सूर्यवर्मन का साम्राज्य था 
बारहवीं सदी में राजा सूर्यवर्मन ७ ने 
तीस वर्षो में पांच सौ एकड़ क्षेत्र में फैला 
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर बनवाया था 
जहाँ विष्णु और ब्रह्मा जी की मुर्तिया स्थापित है 
रामायण और महाभारत की कथाये दीवारों पर चित्रित है 
काल  के गाल में दबा यह विशाल मंदिर 
जब से फिर से खोजा गया है 
दुनिया भर के दर्शको के लिए 
एक आकर्षण का केंद्र बन गया है 
दुनिया भर के पर्यटकों की भीड़ ,
हमेशा ही लगी रहती है 
और इसे सराहते हुए कहती है 
कि जब खण्हर इतने बुलंद है तो इमारत जब बुलंद होगी 
तो इसकी सुंदरता कितनी प्रचंड होगी 
आज कम्बोडिया की अर्थव्यवस्था का 
पन्दरह प्रतिशत (!५ %)पर्यटन से आता है 
जहाँ विष्णु  पूजे जाते है वहां मेहरबान होती लक्ष्मी माता है 
इस मंदिर के दर्शन कर मेरे मन में एक बात आयी 
हमारे देश के कई मंदिरों में है ढेरों कमाई 
क्या वो कभी देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के काम आयी 
जब दूसरे देश मंदिरों के भग्नावेश दिखा कर करोड़ों कमा सकते है 
तो क्या हम हमारे मंदिर कुछ समय के लिए,
 विदेशी पर्यटकों को दर्शन के  लिए छोड़ कर कितना कमा सकते है 
और मंदिरों की इतनी कमाई देश की अर्थ व्यवस्था 
सुधारने के काम में ला सकते है 
फिर मन बोला छोडो यार ,ये सब बातें है बेकार 
हिन्दू राष्ट्र के हिन्दू देवभक्तों ने ,हिंदुत्व की महिमा के कितने गीत गाये 
पर बाबरी मस्जिद के गिरने के छब्बीस वर्ष बाद भी, 
राम की जन्मभूमि पर राम का मंदिर नहीं बना पाए 
फिर भी हम हिंदुत्व का दावा करते है बार बार 
हमारी इस असफलता पर हमें है धिक्कार 
ये हमारी आज की ओछी राजनीती और सोच का परिणाम है 
वर्ना यहाँ तो जन जन के दिलों में बसते  राम है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वक़्त गुजारा खुशहाली में 

जीवन की हर एक पाली में 
वक़्त गुजारा खुशहाली  में 

होती सुबह ,दोपहर ,शाम 
यूं ही कटती उमर  तमाम 
हर दिन की है यही कहानी 
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी 
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में  बँटी  उमर  है 
बचपन यौवन और बुढ़ापा 
सबके ही जीवन में आता 
मुश्किल से  मिलता यह जीवन  
इसका सुख लो हरपल हरक्षण 
 रिश्ता बंधा  चाँद संग  ऐसा 
सुख दुःख  घटे बढे इस जैसा 
हर मुश्किल से लड़ते जाओ 
शीतल  चन्द्रकिरण  बरसाओ 
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं  हरियाली में 
जीवन की हरेक पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 
बचपन की पाली 
------------------
जब मैं था छोटा सा बच्चा 
सबके मन को लगता अच्छा 
सुन्दर सुन्दर सी  ललनाये 
गोदी रहती  मुझे  उठाये 
चूमा करती थी गालों को 
सहलाती मेरे बालो को 
ना चिंताएं और ना आशा 
आती थी बस दो ही भाषा 
एक रोना  एक हंसना प्यारा 
काम करा देती थी सारा 
हर लेती थी सारी  पीड़ा 
मोहक होती थी हर क्रीड़ा 
भरते हम,हंस हंस किलकारी 
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी 
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं 
इस जूवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं खुशहाली में 
जवानी की पाली 
------------------
बचपन बीता ,आई जवानी 
जीवन की यह उमर सुहानी 
खुशबू और बहार का मौसम 
मस्ती और प्यार का मौसम 
देख कली तन,मादक,संवरा 
मेरे मन का आशिक़ भंवरा 
उन पर था मँडराया  करता
अपना प्यार लुटाया  करता 
जुल्फें सहला ललनाओं की 
चाह रखी  ,बंधने बाहों की 
साथ किसी के  बसा गृहस्थी 
थोड़े दिन तक मारी मस्ती 
फिर प्यारे बच्चों का पालन 
वो ममत्व और वो अपनापन 
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में 
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में 
बुढ़ापे की पाली
------------------ 
साठ  साल का रास्ता नापा 
गयी  जवानी,आया बुढ़ापा 
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने 
बची सिर्फ अनुभव की केसर 
बच्चे उड़े ,बसा अपने  घर 
अब न पारिवारिक चितायें 
मस्ती में बस  वक़्त  बितायें 
समय ही समय खुद के खातिर 
पर अब ना  उतना चंचल दिल 
धुंधली नज़रों से  अब  यार
कर न पाए उनका दीदार 
ललना बूढ़ा बैल ना  पाले 
अंकल कहे ,घास ना डाले 
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में 
इस जीवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
   

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

मेरा जीवन भर का दोस्त -चाँद 

चाँद से मेरा रिश्ता है पुराना 
बचपन में उसे कहता था चंदामामा 
मेरी जिद पर ,मम्मी के बुलावे पर ,
वो मुझ संग खेलने ,पानी के थाली में आता था 
मेरे इशारों पर ,हिलता डुलता था ,
नाचता था ,हाथ मिलाता था 
और जब जवानी आयी तो बिना मम्मी को बताये 
हमने कितनी ही चन्द्रमुखियों से नयन मिलाये 
और फिर एक कुड़ी फंस  गयी 
'तू मेरा चाँद ,मैं तेरी चांदनी कहने वाली ,
मेरे दिल में बस गयी 
वक़्त के साथ उस चंद्रमुखी ने 
हमें एक चाँद सा बेटा दिया ,
फिर एक चन्द्रमुख बेटी आयी 
और मेरे घरआंगन में ,चांदनी मुस्करायी 
चांदनी की राह में ,कई रोड़े ,बादलों से अड़े 
सुख और दुःख ,
कभी कृष्णपक्ष के चाँद की तरह घटे ,
कभी शुक्लपक्ष के चाँद की तरह बढ़े 
जिंदगी के आकाश में कई चंद्रग्रहण आये ,
कई मुश्किलों में फँसा 
कभी राहु ने डसा ,कभी केतु ने डसा 
और फिर शुद्ध हुआ 
समय के साथ वृद्ध हुआ 
और चाँद के साथ ,मेरी करीबियत और बढ़ गयी है ,
बुढ़ापे की इस उमर में 
बचपन में थाली में बुलाता था और अब,
चाँद खुद आकर बैठ गया है मेरे सर में 
बचे खुचे उजले बालों की बादलों सी ,चारदीवारी बीच ,
जब मेरी चमचमाती चंदिया चमकती है 
बीबी सहला कर मज़े लेती है ,
पर आप क्या जाने मेरे दिल पर क्या गुजरती है 
जब चंद्रमुखिया ,'हाई अंकल  कह कर पास से  निकलती है 

घोटू 

अचानक क्यों ?

शादी के बाद शुरु शुरू में ,
हम पत्नी को कभी डार्लिंग,कभी गुलबदन 
कभी 'हनी ' कह कर बुलाया करते थे 
और इस तरह अपना प्यार जताया करते थे 
पर वक़्त के साथ ;ढले  जज्बात 
एक दुसरे का नाम लेकर करने लगे बात 
पर इस सत्योत्तर की उम्र में ,एक पार्टी में ,
जब हमने उन्हें 'हनी 'कह कर पुकारा 
तो वो चकरा  गयी ,उन्हें लगा प्यारा 
घर आकर उनसे गया नहीं रहा 
बोली ऐसा आज मुझमे तुमने क्या देखा ,
जो इतने वर्षों बाद 'हनी 'कहा 
देखो सच सच बताना 
तुम्हे हमारी कसम,कुछ ना छुपाना 
हमने कहा ,सच तो ये है डिअर 
हमारी उमर हो रही है सत्योत्तर 
कभी  कभी याददास्त छोड़ देती है साथ 
कोशिश करने पर भी तुम्हारा नाम नहीं आरहा था याद 
सच तो ये है कि सोचते सोचते ,रह रह कर 
हमने तुम्हे तब पुकारा था 'हनी 'कह कर 
तुम तो यूं भी हमारे प्यार में सनी हो 
हमारे मन भाती ,मीठी सी 'हनी 'हो 

घोटू  
बीबियों का इकोनॉमिक्स 

सुनती हो जी 
बाजार जा रहा हूँ ,
कुछ लाना क्या ?
हाँ ,एक पाव काजू ,
एक पाव बादाम 
और एक पाव किशमिश ले आना 
मुझे गाजर का हलवा है बनाना 
पति सारा मेवा ले आया 
पांच दिन बाद उसे याद आया  
पर बीबीजी ने गाजर का हलवा नहीं चखाया 
वो बोला उस दिन सात सौ के ड्राय फ्रूट मगाये थे 
गाजर का हलवा नहीं बनाया 
पत्नीजी बोली अभी गाजर बीस रूपये किलो है ,
पंद्रह की हो जायेगी ,तब बनाउंगी 
चार किलो में बीस रूपये बचाऊंगी 
ऐसी होती है औरतों की इकोनॉमिक्स ,
सात सौ का मेवा डालेंगी
पर गाजर सस्ती होने के इन्तजार में ,
हलवा बनाना टालेंगी  
और इस तरह  बीस रूपये बचालेंगी 

घोटू 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

       कार्तिक के पर्व 

धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत 
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक 
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन 
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन 
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की 
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की 
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका 
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका 
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते 
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते 
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन 
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन 
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन 
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण 
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन 
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण 
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा 
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का 
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर 
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर 
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे 
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे 
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित 
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित 
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये 
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
मुस्कराना सीख लो

जिंदगी में हर ख़ुशी मिल जायेगी,
आप थोडा मुस्कराना सीख लो
रूठ जाना तो बहुत आसन है,
जरा रूठों को मनाना सीख लो
जिंदगी है चार दिन की चांदनी,
ढूंढना अपना ठिकाना सीख लो
अँधेरे में रास्ते मिल जायेंगे,
बस जरा अटकल लगाना सीख लो
विफलताएं सिखाती है बहुत कुछ,
ठोकरों से सीख पाना, सीख लो
सफलता मिल जाये इतराओ नहीं,
सफलता को तुम पचाना सीख लो
कौन जाने ,नज़र कब,किसकी लगे,
नम्रता सबको दिखाना सीख लो
बुजुर्गों के पाँव में ही स्वर्ग है,
करो सेवा,मेवा पाना सीख लो
सैकड़ों आशिषें हैं बिखरी पड़ी,
जरा झुक कर ,तुम उठाना सीख लो
जिंदगी एक नियामत बन जायेगी,
बस सभी का प्यार पाना सीख लो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


आम आदमी

एक दिन हमारी प्यारी पत्नी जी ,
आम खाते खाते बोली ,
मेरी समझ में ये नहीं आता है
मुझे ये बतलाओ ,आम आदमी ,
आम आदमी क्यों कहलाता है
हमने बोला ,क्योंकि वो बिचारा ,
सीधासादा,आम की तरह ,
हरदम काम आता है
कच्चा हो तो चटखारे ले लेकर खालो
चटनी और अचार बनालो
या फिर उबाल कर पना बना लो
या अमचूर बना कर सुखालो
और पकने पर चूसो ,या काट कर खाओ
या मानगो शेक बनाओ
या पापड बना कर सुखालो ,
या बना लो जाम
हमेशा,हर रूप में आता है काम
वो जीवन भी आम की तरह ही बिताता है
जवानी में हरा रहता है ,
पकने पर पीला हो जाता है
कच्ची उम्र में खट्टा और चटपटा ,
और बुढापे में मीठा, रसीला हो जाता है
जवानी में सख्त रहता है ,
बुढापे में थोडा ढीला हो जाता है
और लुनाई भी गुम हो जाती,
वो झुर्रीला हो जाता है
अब तो समझ में आ गया होगा ,
आम आदमी ,आम आदमी क्यों कहलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

          झुनझुना

बचपने में रोते थे तो ,बहलाने के वास्ते ,
                          पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना 
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
                          हम हिलाते हाथ थे  और बजने लगता झुनझुना 
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
                          तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना 
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
                            जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर  का झुनझुना 
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
                            पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना 
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
                            गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते  बन के झुनझुना 
 जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
                             दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना 
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
                              होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

रोज त्योंहार कर लेते

तवज्जोह जो हमारी तुम ,अगर एक बार कर लेते 
तुम्हारी जिंदगी में हम ,प्यार ही प्यार भर देते 
खुदा ने तुम पे बख्शी हुस्न की दौलत खुले हाथों,
तुम्हारा क्या बिगड़ता हम  ,अगर दीदार कर लेते 
पकड़ कर ऊँगली तुम्हारी ,हम पहुंची तक पहुँच जाते ,
इजाजत पास आने की,जो तुम एक बार गर देते 
तुम्हारे होठों की लाली ,चुराने की सजा में जो ,
कैद बाहों में तुम करती ,खता हर बार कर लेते 
तुम्हारे रूप के पकवान की ,लज्जत के लालच में,
बिना ही भूख दावत हम ,सौ  सौ बार कर लेते 
बिछा कर पावड़े हम पलकों के ,तुम्हारी राहों में ,
उम्र भर तुमको पाने का ,हम इन्तेजार कर लेते 
तुम्हारे रंग में रंग कर,खेलते रोज होली हम, 
जला दिये दीवाली के ,रोज त्यौहार कर लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Archive for May, 2014
रस के तीन लोभी
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   रस के तीन लोभी 
            भ्रमर 
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं  गाया करता  
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता 
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं 
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता 
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता  हूँ,मधुप कहाया  करता 
                
                   तितली  
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ 
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ 
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती 
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की  पंखुड़ी  हूँ 
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ 
               
             मधुमख्खी 
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी 
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी 
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
 मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी 
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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  May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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देखो ये कैसा जीवन है
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     देखो ये कैसा जीवन है

गरम तवे पर छींटा जल का 
जैसे  उछला उछला  करता
फिर अस्तित्वहीन हो जाता, 
बस  मेहमान चंद  ही पल का  
जाने कहाँ किधर खो जाता ,
सबका ही वैसा जीवन है 
देखो ये कैसा जीवन है 
मोटी सिल्ली ठोस बरफ की 
लोहे के रन्दे  से घिसती 
चूर चूर हो जाती लेकिन,
फिर बंध सकती है गोले सी 
खट्टा  मीठा शरबत डालो,
चुस्की ले, खुश होता मन है 
देखो ये कैसा जीवन  है 
होती भोर निकलता सूरज 
पंछी संग मिल करते कलरव 
होती व्याप्त शांति डालों  पर,
नीड छोड़ पंछी उड़ते  जब 
नीड देह का ,पिंजरा जैसा,
और कलरव ,दिल की धड़कन है 
देखो ये कैसा जीवन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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 May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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ग़ज़ल
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            ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 28, 2014   ghotoo    Leave a comment
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कुर्सी
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           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 27, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सलाह
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           सलाह 
एक दिन हमारे मित्र  बड़े परेशान थे 
क्या करें,क्या ना करें,शंशोपज में थे, हैरान थे 
हमने उनसे कहा ,सलाह देनेवाले बहुत मिलेंगे,
मगर आप अपने को इस तरह साँचें में ढाल  दें 
जो बात समझ में न आये ,उसे एक कान से सुनकर,
दूसरे कान से निकाल दें 
आप सबकी सुनते रहें 
मगर करें वही ,जो आपका दिल  कहे
लगता है उन्होंने मेरी बात पर अमल कर लिया है 
मेरी सलाह को इस कान से सुन कर,
उस कान से निकाल दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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अच्छे दिन आने लगे है
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      अच्छे दिन आने लगे है

वो भी दिन थे ,जब दस जनपथ,
                      कहता सूर्य उगा करता था 
जब बगुला भी राजहंस बन,
                     मोती सिर्फ चुगा करता था 
'मौन'बना कुर्सी की शोभा ,
                      कठपुतली बन नाचा करता,
जब तक 'टोल टैक्स'ना भर दो,
                       सारा काम  रुका था करता   
चोरबाजारी ,बेईमानी ,
                          घोटालों की चल पहल थी  
 चमचे  और चाटुकारों की,
                           सभी तरफ होती हलचल थी 
देखो मौसम बदल रहा है,
                        अब अच्छे दिन आने को है 
प्रगतिशील,कर्मठ मोदी जी,
                          अब सरकार बनाने को है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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जनाजा -हसरतों का
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      जनाजा -हसरतों का 
 
शून्य पर आउट हुई मायावती जी,
            मुलायम का मुश्किलों से लगा चौका 
सोनिया जी सौ से आधे से भी कम में,
              सिमटी ,ऐसा  नतीजों ने दिया  चौंका 
सोचते थे करेंगे स्कोर अच्छा ,
                सत्ता में दिल्ली की शायद मिले मौका 
और मिल कर बनाएंगे तीसरा एक ,
                 मोर्चा हम,सभी सेक्युलर  दलों का 
रह गए पर टूट कर के सभी सपने ,
                 दे गयी जनता हमें इस बार धोका 
लहर मोदी की चली कुछ इस तरह से ,
                  जनाजा निकला  सभी की हसरतों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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चुनाव के बाद चिंतन

  चुनाव के बाद का चिंतन -कोंगेस का 
                       १ 
क्या बतलाएं ,हम पर कैसी बीती है 
कल तक भरी हुई गगरी ,अब रीती   है 
हुआ तुषारापात  सभी आशाओं  पर ,
हार गए हम , अबके  जनता  जीती है
                     २ 
सपने सारे मिटे , धूल में,बिखर गए 
नहीं तालियां,मिली गालियां ,जिधर गए   
उड़ते थे स्वच्छंद ,आज हम अक्षम है ,
वोटर  ऐसे  पंख हमारे   क़तर  गए 
                   ३ 
कुछ  कर्मो  के  फल से ,कुछ नादानी में 
ध्वस्त हुए ,मोदी की  तेज सुनामी  में 
बचे खुचे हम,मिल कर आज करें चिंतन ,
डूब गए क्यों ,हम चुल्लू भर पानी में

चुनाव के बाद चिंतन -मुलायम जी का 
           
लहर मोदी की चली ,उड़ गए सब के होश है 
पांच सीटें मिली हमको,जनता का आक्रोश है 
गांधी के परिवार ने पर पायी दो सीटें सिरफ ,
उनसे ढाई गुना है हम,हमको ये संतोष है

घोटू

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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संगत का असर

          संगत का असर

तपाओ आग में तो निखरता है रंग सोने का,
                          मगर तेज़ाब में डालो तो पूरा गल ही जाता है
है मीठा पानी नदियों का,वो जब मिलती समंदर से ,
                           तो फिर हो एकदम  खारा ,बदल वो जल ही जाता है   
असर संगत  दिखाती है,जो जिसके संग रहता है,
                            वो उसके रंग में रंग  धीरे धीरे  ,खिल ही जाता  है 
अलग परिवारों से पति पत्नी होते ,साथ रहने पर,
                            एक सा सोचने का ढंग उनका  मिल ही जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 24, 2014   ghotoo    Leave a comment
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ब्याह तू करले मेरे लाल

            घोटू  के   पद 
       ब्याह तू करले मेरे लाल

ब्याह तू करले मेरे लाल 
नयी बहू के पग पड़ करते कितनी बार ,निहाल 
होनी थी जो हुई ,मिटा दे ,मन का सभी मलाल 
जनता के भरसक सपोर्ट का,रहा यही जो  हाल 
मोदी की सरकार चलेगी ,अब दस पंद्रह साल 
अपना बैठ ओपोजिशन मे ,बिगड़ जाएगा हाल 
चमचे भी सब  ,मुंह फेरेंगे,देख   समय  की चाल 
मैं बूढी,बीमार  आजकल, तबियत  है   बदहाल 
चाहूँ देखना , हँसता गाता , मै , तेरा   परिवार 
युवाशक्ति बन कर उभरेंगे ,तेरे  बाल  गोपाल 
अपने अच्छे दिन आएंगे ,तब फिर से एकबार 
ब्याह तू,करले मेरे लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 23, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सुबह की धूप

          सुबह की धूप

सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है ,
                       ये है पहला प्यार ,धरा से  सूरज का  
प्रकृति का उपहार बड़ा ये सुन्दर है,
                       खुशियों का संसार,खजाना सेहत का 
   धूप नहीं ये नयी नवेली  दुल्हन है ,
                        नाजुक नाजुक सी कोमल, सहमी ,शरमाती 
उतर क्षितिज की डोली से धीरे धीरे ,
                         अपने  बादल के घूंघट पट को सरकाती 
प्राची के रक्तिम कपोल की लाली है ,
                            उषा का ये प्यारा प्यारा  चुम्बन है 
अंगड़ाई लेती अलसाई किरणों का,
                             बाहुपाश में भर पहला आलिंगन है 
निद्रामग्न निशा का आँचल उड़ जाता,
                              अनुपम उसका रूप झलकने लगता है 
तन मन में भर जाती है नूतन उमंग ,
                              जन जन में ,नवजीवन जगने लगता है 
करने अगवानी नयी नयी इस दुल्हन की,     
                               कलिकाये खिलती ,तितली  है करती  नर्तन 
निकल नीड से पंछी कलरव करते है,
                                बहती शीतल पवन,भ्रमर करते  गुंजन 
 जगती ,जगती ,क्रियाशील होती धरती ,
                                शिथिल पड़ा जीवन हो जाता ,जागृत सा 
सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है,
                                 ये है पहला प्यार ,धरा पर   सूरज का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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