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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

वणिक पुत्र

            
मैंने तुम्हारी महक को,
प्यार की ऊष्मा देकर
अधरों के वाष्प यन्त्र से,
इत्र बना कर,
दिल की शीशी में,एकत्रित कर लिया है,
ता कि उम्र भर खुशबू ले सकूँ
मैंने तुम्हारा यौवन रस,
मधुमख्खी कि तरह,
बूँद बूँद रसपान कर,
दिल के एक कोने में
मधुकोष बना कर,संचित कर लिया है,
ता कि जीवन भर ,रसपान कर सकूँ
मैंने तुम्हारे अंगूरी अधरों से,
तुम्हारी मादकता का आसवन कर
एकत्रित कि गयी मदिरा को,
पर्वतों के शिखरों में,छुपा कर भर दिया है
ताकि उम्र भर पी सकूँ
क्योंकि संचय करना,मेरा रक्त गुण है
मै एक वणिक पुत्र हूँ

बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

बदलते हालात 

इस तरह मौसम बदलने लग गये है 
चींटियों के पर निकलने  लग गये है 
अपना सिक्का जमाने की होड़ में ,
खोटेसिक्के भी अब चलने लग गये है 
खोलने दूकान एक बजाज की ,
चिन्दी पा ,चूहे  उछलने लग गये है 
चंद पत्थर बन स्वयंभू  देवता ,
आस्था लोगो की छलने लग गये है 
हाथ उनके एक जुगनू क्या लगा ,
चाँद पाने को मचलने लग  गये  है 
कांव कांव छोड़ 'कुहू कू 'करे ,
कव्वे ,कोयल में बदलने लग गये है 
आसमां पर चढ़ गया उनका अहम ,
गर्व के मारे उछलने लग गये  है 
' घोटू '  मौसम आगया बरसात का ,
टरटरा मेंढक  निकलने लग गये है 

घोटू 
ऑउटडेटेड  रिश्ते 

दादा दादी ,नाना नानी 
ये सब है अब चीज पुरानी 
इनके दिन अब 'फेड 'हो गए 
ये 'ऑउटडेटेड' हो गये 

बीते दिन जब सभी पर्व में 
इन्हे पूजते सभी गर्व में 
सब 'रिस्पेक्ट ' दिया करते थे 
आशीर्वाद लिया करते थे 

लेकिन अब ये बूढ़े,खूसट 
सदा टोकना जिनकी आदत 
हरेक बात में टांग अड़ाते 
उंच नीच हमको समझाते 

'गेप' हो गया 'जनरेशन ' का 
इन्हे क्या पता न्यू फैशन का 
करना है यदि 'सेलिब्रेशन '
हम न चाहते है 'रिस्ट्रिक्शन '

इनके आगे लगता 'फियर '
खुल कर कह ना सकते 'चीयर '
हमें समझते अब भी बच्चा 
इन्हे 'अवॉइड 'करना अच्छा 

शायद इन्हे बुरा लगता है 
मौजमस्ती में सब चलता है 
दुखी मगर कुछ न बोलेंगे 
आशीर्वाद फिर भी ये देंगे 

घोटू 
चार पंक्तियाँ -५ 

उनकी हाँ में हाँ मिलाओ तुम सदा ,
बात हर एक पर  बजाओ तालियां 
अगर उनकी करी  ये चमचागिरी ,
समझो आशीर्वाद उनका पा लिया 
वो करे जो भी और जैसा भी करे ,
जरूरी, पुल तारीफों के बांधना 
बात उनके मन मुताबिक ना करी ,
लगेंगे  देने  तुम्हे  वो  गालियां 

घोटू 
बूंदी और सेव 

मोती सी गोलमोल,पीली एक मीठी बूंदी ,रसासिक्त 
और एक चरपरे,मनभावन ,कुरमुरे सेव है स्वादिष्ट 
दोनों ही सबको प्यारे है ,दोनों ने मोहा सबका मन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

जब गीला बेसन बूँद बूँद,था तला गया देशी घी में 
रसभरी चासनी उसने पी तो बदल गया वो बूंदी में 
मिल मिर्च मसाले संग बेसन ,निकला छिद्रों से झारी की 
और गर्म तेल में तला गया ,बन गया सेव वह प्यारी सी 
जैसी जिसकी संगत होती ,वैसी ही रंगत जाती बन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी बेसन ,वो भी बेसन 

सज्जन का साथ अगर मिलता ,मानव सज्जन बन जाता है 
मिलती जब दुर्जन की संगत ,तो वह दुर्जन कहलाता है 
पानी के संग घिसे चंदन ,तो वह प्रभु के मस्तक चढ़ता 
अग्नि का साथ अगर पाता ,तो किसी चिता में जा जलता 
संगत से एक राख बनता ,संगत से एक बने पावन 
है रूप भले ही अलग अलग ,ये भी चंदन,वो भी चंदन 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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