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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

बुढ़ापा छाछ होता है 

दूध और जिंदगी का एक सा अंदाज होता  है 
जवानी दूध होती है , बुढ़ापा   छाछ  होता है
 
दूध सा मन जवानी में ,उबलता है ,उफनता है ,
पड़े शादी का जब जावन ,दही जैसा ये जमता है 
दही जब ये मथा जाता ,गृहस्थी वाली मथनी में 
तो मख्खन सब निकल जाता ,बदल जाता है जो घी में 
बटर जिससे निकल जाता ,बटर का मिल्क कहलाता 
जो बचता लस्सी या मठ्ठा , गुणों की खान बन जाता 
कभी चख कर तो देख तुम ,बड़ा ही स्वाद होता है 
जवानी दूध  होती है , बुढ़ापा  छाछ  होता है 

दूध से छाछ बनने के ,सफर में झेलता मुश्किल 
गमाता अपना मख्खन धन ,मगर बन जाता है काबिल 
न तो डर  डाइबिटीज का ,न क्लोरोस्ट्राल है बढ़ता 
बहुत आसानी से पचता ,उदर  को मिलती शीतलता 
खटाई से मिठाई तक ,करने पड़ते है समझौते 
बुढ़ापे तक ,अनुभवी बन,काम के हम बहुत होते 
पथ्य बनता ,बिमारी का कई, ईलाज होता है 
जवानी दूध होती है ,बुढ़ापा  छाछ  होता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

वो अब भी परी है 

मेरी बीबी अब भी ,जवानी भरी है 
सत्रह बरस की ,लगे छोकरी  है 
उम्र का नहीं कोई उसमे असर है ,
निगाहों में मेरी वो अब भी परी है
 
भले जाल जुल्फों का ,छिछला हुआ है 
भले पेट भी थोड़ा ,निकला हुआ है 
हुई थोड़ी मोटी  ,वजन भी बढ़ा है 
भले आँख पर उनकी ,चश्मा चढ़ा है
मगर अब भी लगती है आँखें नशीली 
रसीली थी  पहले ,है अब भी रसीली 
वही नाज़ नखरे है वही है अदाए 
सताती थी पहले भी,अब भी सताये 
नहीं आया पतझड़,वो अब भी हरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी  है
 
भले अब रही ना वो दुल्हन नयी है 
दिनोदिन मगर वो निखरती गयी है 
भले तन पे चरबी ,जरा चढ़ गयी है 
मुझसे महोब्बत ,मगर बढ़ गयी है , 
बड़ी नाज़नीं ,खूबसूरत ,हसीं थी 
ख्यालों में मेरे जो रहती  बसी थी 
मगर रंग लाया है अब प्यार मेरा 
रखने लगी है वो अब ख्याल मेरा 
कसौटी पे मेरी ,वो उतरी  खरी है 
निगाहों में मेरी ,वो अब भी परी है

महकती हुई अब वो चंदन बनी है 
जवानी की उल्फत,समर्पण बनी है 
संग संग उमर के मोहब्बत है बढ़ती 
जो देखी है उसकी ,नज़र में उमड़ती 
 हम एक है अब ,नहीं दो जने है 
हम एक दूजे पर  ,आश्रित बने है   
जवानी का अब ना,रहा वो जूनून है 
देता मगर साथ उसका सुकून है 
मैंने सच्चे दिल से ,मोहब्बत करी है 
निगाहो में अब भी वो लगती परी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?

 न कोई शिकवा है ,न कोई शिकायत है 
हमेशा मुस्करा कर ,रहने की आदत  है  
न मुझमे कुछ कमी या खामियां ढूंढती हो 
पति को परमेश्वर ,समझ कर  पूजती हो 
न कोई जिद है ,न कोई फरमाइशें  है 
और न ऊंची ऊंची ,कोई भी ख्वाइशे है 
न कभी खीजती हो ,नहीं होती रुष्ट  हो 
हर एक  हाल में तुम,रहती सन्तुष्ट  हो 
न कभी गुस्सा होती हो ,न  झल्लाती हो 
रूप पर अपने तुम ,कभी ना इतराती हो  
काम में घर भर के,व्यस्त सदा रहती हो 
परेशानियों से तुम,त्रस्त  सदा रहती हो 
मांग पूरी करने में,सबकी तुम हो तत्पर 
दो दिन में अस्तव्यस्त ,होता है तुम बिन घर 
पीछे पड़ बात अपनी ,मुझसे नहीं मनवाती क्यों हो 
मेरी जान, तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
लोगबाग अक्सर अपनी बीबी से रहते है परेशान 
छोटी छोटी बातों पर , मचाती  है जो तूफ़ान  
कभी ननद से नहीं पटती ,कभी सास से शिकायत है 
सदा कुछ न कुछ रोना,रोने की आदत  है 
किसी को कपडे चाहिए,किसी को गहना चाहिए 
किसी को फाइव स्टार होटल में रहना चाहिए 
कोई बाहर खाने और घूमने फिरने की शौक़ीन होती है 
कोई आलसी है,काम नहीं करती.दिन भर सोती है 
कोई किटी पार्टी और   दोस्तों में रहती व्यस्त है 
कोई फेसबुक और व्हाट्स अप में मस्त है 
कोई बिमारी का  बहाना बना,पति से काम करवाती है 
कोई अपने घरवाले को ,अपनी  उँगलियों पर नचाती है 
तुम बिना कोई प्रश्न किये ,मेरी हर बात मानती हो 
मेरी आँखों के इशारों को ,अच्छी तरह पहचानती हो 
तुम भी अपनी बात मनवाने ,होती नहीं उन्मादी क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?    
तुम  सुशील ,समझदार और  जहीन हो 
तुम छरहरे बदन वाली हो, हसीन हो    
फिर भी तुममे न कोई नाज़ है ,न नखरा है 
तुम्हारा रूप कितना सादगी से भरा है 
न   तो ब्युटीपालर्र जाकर,सजना सजाना  
न ही चेहरे पर तरह तरह के लोशन लगाना 
तुम शर्मीली लाजवंती हो ,तुम्हारी नजरों में हया है 
भगवान में आस्था है और व्यवहार में  दया है     
 कभी ना कहना ,तुमने नहीं सीखा है 
पति के दिल लूटने का तुम्हारा अपना ही तरीका है 
पति के  दिल की राह, आदमी के पेट से होकर है जाती 
इसलिए तुम मुझे नित नए ,पकवान बनाकर हो खिलाती 
तुम अन्नपूर्णा हो और तुम ही गृह लक्ष्मी हो 
मैं खुशनसीब हूँ कि तुम मेरे लिए ही बनी हो 
अपनी इन्ही अदाओं से तुम मुझको लुभाती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधी सादी क्यों हो ?
हमारी जिंदगी में ,मियां बीबी वाली नोकझोंक क्यों नहीं होती 
मेरे लिए तुम्हारी कोई रोक टोक क्यों नहीं होती 
इस दुनिया में लोग तरसते है पत्नी के प्यार के लिए 
लेकिन मैं तरस जाता हूँ ,झगड़े और तकरार के लिए 
जी करता है की तुम रूठो और मैं तुम्हे मनाऊं
 तुम नखरे दिखा इठलाओ और मैं तुम्हे मख्खन  लगाऊं 
तुम जिद करो और मैं तुम्हे मन चाही वस्तु दिलवाऊं 
कभी जी करता है तुम ब्यूटी पालर्र में सजवाऊं 
पर तुम तो जैसी हो ,उस हाल में ही खुश हो 
जितना भी मिलता है ,उस प्यार में ही खुश हो 
पर सिर्फ मीठा खाने से भोजन में मज़ा नहीं आता 
वैसे ही सिर्फ प्यार से  जीवन का मज़ा नहीं आता 
जिंदगी में प्यार के साथ ,झगडे का तड़का आवश्य्क है 
कभी कभी प्यार बढाती ,रोज की झक झक है 
पर तुम शांति प्रेमी ,झगड़ने से घबराती क्यों हो 
मेरी जान,तुम इतनी सीधीसादी  क्यों हो ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

दान पुण्य  

भूखे को भोजन और प्यासे को जल  पिलाओ ,
               यह सच्ची सेवा और दान बड़ा  होता है 
भंडारे का खाना ,गुरूद्वारे का लंगर ,
              परशादी भोजन अति स्वाद भरा होता है 
गरमी में सुबह सुबह ,लोगों को छाछ पिला ,
                   शीतलता देने से ,पुण्य खरा होता है 
सरदी में कंबल और वस्त्रहीन को कपडे ,
             अंत समय ,पुण्य करम ,साथ खड़ा होता है 

ऑरेंज काउंटी निवासियों द्वारा 
'मुफ्त छाछ वितरण अभियान '
नित्य प्रातः ८-३० से 
गेट नम्बर ४ पर 
संपर्क सूत्र  
१ मदन मोहन बाहेती 701 टावर 1 - मोबाईल 9350805355 
२ शिव कुमार मित्तल 1502  टावर 1 - मोबाईल 9910344688 

रविवार, 22 अप्रैल 2018

सत्योत्तरवी वर्षगांठ पर 

जी रहा हूँ  जिंदगी  संघर्ष करता 
जो भी मिल जाता उसीमें हर्ष करता 
हरेक मौसम के थपेड़े सह चुका हूँ 
बाढ़ और तूफ़ान में भी बह चुका हूँ 
कंपकपाँती शीत  की ठिठुरन सही है 
जेठ की तपती जलन ,भूली नहीं है 
किया कितनी आपदा का सामना है 
तब कही ये जिस्म फौलादी बना  है 
पथ कठिन पर मंजिलों पर चढ़ रहा हूँ 
लक्ष्य पर अपने  निरन्तर ,बढ़ रहा हूँ 
और ना रफ़्तार कुछ मेरी थमी है 
सत्योत्तर  का हो गया ये आदमी है 
कभी दुःख में ,कभी सुख में,वक़्त काटा 
मिला जो भी,उसे जी भर,प्यार बांटा 
राह में बिखरे हुए,कांटे, बुहारे 
मिले पत्थर और रोड़े ,ना डिगा रे 
सीढ़ियां उन पत्थरों को चुन,बनाली 
और मैंने सफलता की राह पा ली 
चला एकाकी ,जुड़े साथी सभी थे 
बन गए अब दोस्त जो दुश्मन कभी थे 
प्रेम सेवाभाव में तल्लीन होकर 
प्रभु की आराधना में ,लीन  होकर 
जुड़ा है,भूली नहीं अपनी जमीं है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 
किया अपने कर्म में विश्वास मैंने 
किया सेवा धर्म में  विश्वास मैंने 
बुजुर्गों के प्रति सेवा भाव रख कर 
दोस्ती जिससे भी की ,पहले परख कर 
प्रेम,ममता ,स्नेह ,छोटों  पर लुटाया 
लगा कर जी जान सबके काम आया
सभी के प्रति हृदय में सदभावना है  
सभी की आशीष है ,शुभकामना है 
चाहता हूँ जब तलक दम में मेरे दम 
मेरी जिंदादिली मुझमे रहे कायम 
काम में और राम में काया  रमी है 
सत्योत्तर का हो गया ये आदमी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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