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शुक्रवार, 23 जून 2017

मीरा और  गोविन्द 
ए  मीरा अब छोड़  दे,जपना गोविंद नाम 
गोविंद तो कोविंद हुए ,कृष्ण हो गये राम 
कृष्ण हो गए राम ,देख कलयुग की माया 
राष्ट्रपति बनने का  उनने  दांव   लगाया 
कोविंद ,गोविंद भेद न जाने हृदय अधीरा 
कह 'घोटू' कवि ,पीछे पीछे  दौड़ी  मीरा 
२ 
आठ रानियों के पति ,फिर भी ना संतोष 
बनने को पति राष्ट्र का ,दिखा रहे है जोश
दिखा रहे है जोश ,प्रेम में  जिनके पागल 
बनी दीवानी ,मीरा ,भटकी ,जंगल जंगल 
प्रेम दिवानी मीरा ने पर आस न छोड़ी 
भाग रही है उनके पीछे  ,दौड़ी  दौड़ी 

घोटू  
 

सोमवार, 19 जून 2017

फादर डे 

हमारा बेटा ,अपनी व्यस्तता के कारण ,
फादर डे पर मिलने तो नहीं आया 
पर याद रख के एक पुष्पगुच्छ भिजवाया 
हमने फोन किया बरखुरदार 
धन्यवाद,भेजने को ये उपहार 
और दिखाने को अपना प्यार 
साल में एक बार जो इस तरह ,
फादर डे  मना लोगे
एक पुष्पगुच्छ भेज कर ,
अपना कर्तव्य निभा लोगे 
क्या इससे ही अपना पितृऋण चूका लोगे 
तुम्हारी माँ ,तुम्हारे इस व्यवहार से ,
कितना दुखी होती है 
छुप छुप कर रोती  है 
तुम्हे क्या बतलायें ,बुढ़ापे में ,माँ बाप को,
संतान के प्यार और सहारे की 
कितनी जरूरत होती है 
बेटे का जबाब आया 
पापा,हमने एक दिन ही सही ,
फादर डे तो मनाया 
पर क्या कभी आपने 'सन डे 'मनाया 
हमने  कहा बेटा ,हम सप्ताह में एक बार ,
और साल में बावन बार ,'सन डे 'मनाते है 
तुम्हे मिस करते है ,मन को बहलाते है 
और रिटायरमेंट के बाद तो,
हमारा हर दिन ही 'सन डे 'जैसा है 
हर माँ बाप के दिल में ,
बचपन से लेकर अंत तक ,
अपनी संतान के प्रति प्यार ,
भरा रहता  हमेशा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
यादें पुरानी

यादें पुरानी कितनी ,जब साथ दौड़ती है 
तुम लाख  करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 
रातों को जब अचानक ,जाती है आँख खुल तो,
फिर सोने नहीं देती,इतना  झंझोड़ती  है 

कुछ घड़ियाँ वो ख़ुशी की ,कुछ पल पुराने गम के,
जो दबे ,छुप के  रहते , कोने में किसी  मन के 
कुछ घाव  पुराने से ,हो जाते फिर हरे  है 
जिनकी कसक से आंसू ,आखों में फिर भरें है 
रह रह के वो हमारे ,मन को मरोड़ती है 
तुम लाख करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 

 वो प्यार पहला पहला ,जब नज़र लड़ गयी थी 
रातों को जागने की , आदत सी   पड़  गयी थी 
 वो उनका रूठ जाना ,वो दिल का टूट जाना 
वो चुपके अकेले में ,आंसू का   फिर  बहाना 
कोई की बेवफाई ,जब दिल को  तोड़ती है 
तुम लाख करो कोशिश ,पीछा न छोड़ती है 

वो भूल जवानी की ,रो रो के फिर संभलना 
बंधन में बंध किसी संग ,फिर साथ साथ चलना 
बच्चों की करना शादी,और उनके घर बसाना 
फिर सारे परिंदों का ,पिंजरे को छोड़  जाना 
  तनहाई बुढ़ापे में , मन को कचोटती है 
तुम लाख करो कोशिश,पीछा न छोड़ती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
लिमिट में प्यार करो बीबी से 

अपनी बीबी से करो प्यार मगर बस इतना 
कि जो आसानी से पच जाये केवल बस उतना 
मिठाई ही मिठाई जो ,मिले  रोज खाने को 
विरक्ति मीठे से होती ,मिठाई के दीवाने को 
इस तरह प्यार का जो 'ओवर डोज' मिलता हो 
बिना मांगे ही अगर  रोज रोज  मिलता  हो 
सोच कर ये कि इससे बीबी रीझ जाती है 
हक़ीक़त ये है इससे बीबी खीझ  जाती  है 
इसलिए ढेर सारा प्यार नहीं बरसाओ 
थोड़ा सा प्यार करो,थोड़ा थोड़ा तरसाओ 
हमेशा पत्नी का पल्लू पकड़ के मत बैठो 
लिमिट में प्यार करो,थोड़ा झगड़ो और ऐंठो 
मिठाई साथ में ,नमकीन भी ,जरूरी है 
बढाती प्यार की है प्यास ,कभी दूरी है 
सताओ ऐसे ,उसके मन में आग लग जाए 
प्यार पाने उसके मन में तलब  जग जाए 
आग हो दोनों तरफ ,मज़ा जलने में  आता 
चाह हो दोनों तरफ,मज़ा मिलने में  आता 

मदन मोहन बाहत'घोटू' 
पिताजी आप अच्छे थे 

संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना 
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना 
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये 
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये 
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम 
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम 
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे 
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे 
तुम्हारे रौब डर  से ही,सीख पाए हम अनुशासन 
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन 
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे 
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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