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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

ताबीज -गंडा

          ताबीज -गंडा
    (एक नुस्खा- सड़क छाप )

भाइयों और दोस्तों,ठहरो ज़रा ,बस मिनिट भर
मैं   न कोई वैद्य हूँ,ना हकीम ,ना ही डॉक्टर
आप जैसा बनाया ,भगवान का ,मैं  आदमी
हाथ थे ,दो पैर लेकिन एक थी मुझमे कमी
क्या बताऊँ ,दोस्तों ! मैं इश्क़ का बीमार था
लाख की  कोशिश भले ही,मैं मगर लाचार था
वैसे था शादीशुदा मैं , किन्तु फिर भी रोग था
मइके में पढ़ती थी बीबीजी ,उन्हें ये शौक था
हिज्र में हालत ये बिगड़ी ,हड्डी हड्डी मांस ना
जिंदगी क्या जिंदगी है ,जब तलक रोमांस ना
तो अजीजों ,बोअर होकर घूमने को हम चले
हिमालय की कन्दरा में ,एक बाबाजी मिले
बोले बेटा जानता हूँ, तेरे दिल की बात मैं
नहीं घबरा ,दौड़ कर ,आयेगी बीबी पास में
एक नुस्खा दिया,मेरी दूर  चिंता  हो गयी
बताता हूँ आप सबको, दाम कुछ लूंगा नहीं
याद घरवाली की अपनी ,जो सताये रात दिन
बांधलो अपने गले में ,अपनी बीबी का रिबिन
सरल नुस्खा है किसी चतुराई की जरुरत नहीं
रिबिन जो बाँधा गले में,टाई  की जरुरत नहीं
ट्राय करके देखिएगा ,कामयाबी  पाएंगे
कच्चे धागे से बंधे ,सरकार चले  आयेंगे
मगर मेरे दोस्तों जो अगर बीबी दूर   हो
आप उनका रिबिन पाने में अगर मजबूर हो
चिंता की जरुरत नहीं ,आशा रखो,धीरज धरो
अपनी बीबी का रिबिन मैं बेचता हूँ ,दिलवरों
साधू का वरदान है ये ,होगा बिजली सा असर
दाम सस्ता ,सिर्फ लागत ,रुपय्ये में वार भर 

डोनेशन तो बनता है

         डोनेशन तो बनता है

आसाराम और नारायण स्वामी
बाप और बेटे,संत,नामी गिरामी
अवांछित कर्मो के फेर में
दोनों बंद  है जेल में
टी वी पर उनके कारनामे आ रहे थे
और ये दोनों ,काफी फूटेज खा रहे थे
रोज रोज उनकी नयी पोल खुल रही थी
बचीखुची इज्जत भी मिटटी में मिल रही थी
ऐसे समय में बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा
और रोज की बदनामी से पीछा छूटा
क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव की घडी आगयी
और टी वी पर चुनाव की ख़बरें छागयी
और फिर कुछ  ऐसे बदले हाल
टी वी पर छागये आम पार्टी के केजरीवाल
अब टी वी वालों के पास थे इतने समाचार
कि टाइम ही नहीं था ,सुनाने को इनके हालचाल
इन दोनों तथाकथित संतो को,
कहना चाहिए ,केजरीवाल का शुक्रिया
रोज रोज होती बदनामी से बचा लिया
 इसके लिए ,वो अगर,
 केजरीवाल के अहसानजदा है
तो उनका,अपनी अकूत दौलत में से ,
आमपार्टी के लिए ,थोडा डोनेशन तो बनता है

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित

      दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित
                             १
               भगवान का  प्रसाद
 
मिलता प्रसाद प्रभू का, हम हाथ में लिये
हम खा लेते चुपचाप,बिना चूं चपड़ किये
भगवान का परसाद,हमेशा ही स्वाद है
अमृत छुपा है उसमे और आशीर्वाद  है
भगवान के परसाद सी होती है बीबियाँ
जिसको भी जैसी मिल गयी,वैसा ग्रहण किया  
उसमे न कभी भी कोई तुम नुक्स निकालो
श्रद्धा से या मजबूरी से,जैसी हो ,निभालो
                       २
          जलने लगी है रोटियां
वैसे ही बड़ी प्यारी सी ,बीबी हमें मिली
दिन दूनी रात चौगुनी ,खूबसूरती खिली
सब कुढ़ने लगे ,हो गयी सुन्दर वो इस कदर
जलने लगी है रोटियां भी उनको देख कर
जादू ये उनके हुस्न का ,करता कमाल है
नित दूध की पतीली में ,आता उबाल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं खोखली सी हंसी हो गया हूँ

        मैं खोखली सी हंसी हो गया हूँ

बुढ़ापे में हालात ,हुए इतने बदतर
परेशान रहता हूँ,दुखी और परबस ,
नहीं चाहता हूँ ,मगर फिर भी बरबस ,
                   मैं गमजदां ,गमनशीं  हो गया हूँ
हजारों है दिक्कत,हजारों है  झंझट
जिधर देखता हूँ,परेशानी ,खटपट
टूटा मेरा दिल,बड़ा ही है आहत ,
                     विधवा की ज्यों,बेबसी हो गया हूँ
बदलते ये मौसम,सुहाते न पलभर
किया सर्दियों ने ,बहुत मुझको बेकल
नहीं छूटते  है ,रजाई और कम्बल
                     मैं  अब इस कदर ,आलसी हो गया हूँ
मुझे वक़्त ने है,सताया ,झिंजोड़ा
मेरे अपनों ने ही,मेरा दिल है तोड़ा
परेशानियों ने कहीं का न छोड़ा
                       मैं खोखली सी ,हँसी  हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मालिश

          मालिश

हमने मालिश की बदन पर ,तेल से बादाम के
लगे हटने ,झुर्रियों के ,जाल थे जो चाम पे
और चेहरा भी हमारा ,बला का रोशन हुआ ,
थे निकम्मे अब तलक ,अब आदमी है काम के

घोटू

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