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रविवार, 29 सितंबर 2013

ओरेंज काउंटी -दिल से

         ओरेंज काउंटी -दिल से *

यह है एक संतरा
मधुर रस से भरा
संग पर अलग अलग ,है इसकी फांके
ये प्यारा ,परिसर
है पंद्रह  टावर
रहें सभी मिलजुल कर ,रिश्तों को बांधे
एक है परिवार
बरसायें मधुर प्यार
हर दिन हो त्योंहार ,सुख दुःख सब बांटे
साथ साथ,संग संग
बिखराएँ प्रेमरंग
जीवन में हो उमंग,हँसते ,मुस्काते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
*THE RESIDENTIAL COMPLEX,WHERE I LIVE

शनिवार, 28 सितंबर 2013

छोटी सी प्रेमकथा छोटा सा विरहगीत

             छोटी सी प्रेमकथा

वो  आये ,मुस्कराये
हम मिले और खिलखिलाये
मिलन ने ये गुल खिलाये
पका खाना वो खिलाये
और हम बच्चे खिलाएं

          छोटा सा विरहगीत

आप वहाँ ,हम यहाँ ,
इतनी दूर और ऐसे
बीरबल की खिचडी ,
पके तो कैसे?

घोटू

चांदनी छिटकी हुई है ..

        चांदनी छिटकी हुई है ..

चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                   बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना   
वृक्ष जैसा खड़ा मै  बाहें पसारे ,
                   बावरी सी लता जैसी  आ लिपटना
    इस तरह से हो हमारे  मिलन के पल
    एक हम हो जाएँ जैसे दूध और जल
बांह में मेरी सिमटना प्यार से तुम,
                      लाज के मारे स्वयं में मत सिमटना
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                      बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
         तुम विकसती ,एक नन्ही सी कली हो
         महक फैला रही,   खुशबू  से भरी हो
भ्रमर आ मंडरायेंगे तुमको लुभाने,
                        भावना के ज्वार में तुम मत बहकना
चांदनी छिटकी हुई  है चाँद मेरे ,
                        बांह से मेरी ,मगर तुम मत छिटकना
            कंटकों से भरी जीवन की डगर है
             बड़ा मुश्किल और दुर्गम ये सफ़र है
होंसला है जो अगर मंजिल मिलेगी ,
                          राह से अपनी मगर तुम मत भटकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
                            बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शहीदे आजम रहा पुकार

सरदार भगत सिंह
(28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931)
("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

महानगरीय जीवन

     महानगरीय  जीवन

भीड़ ही है भीड़ फैली सब कहीं,
लापता से हो गए ,लगता हमीं
हर तरफ अट्टालिकाएं है खड़ी ,
कहाँ पर ढूंढोगे तुम अपनी जमीं
एक घर पर दूसरा घर चढ़ रहा ,
छू रही इमारतें है आसमां
आदमी से आदमी टकरा रहा ,
है अनोखी ,इस शहर की  दास्ताँ
बसे,ट्रेने ,कार ,मोटर साईकिल ,
यहाँ पर हर चीज ही गतिमान है
जिधर देखो ,उधर भागादौड है ,
नहीं ठहरा  कहीं भी इंसान है
प्रगति की गति ने की ये गती ,
सांस लेने को हवा ना शुद्ध है
हो रही है आदमी की दुर्गती ,
इसलिए हर शख्स लगता क्रुद्ध है
है मशीनी सी यहाँ की जिन्दगी,
सिलसिला यूं नौकरी,व्यापार का
हफ्ते में है छह दिवस ,परिवार हित,
और केवल एक दिन परिवार का
दौड़ता है,रात दिन बेचैन है ,
पेट है परिवार का जो पालता
कहने को तो है ये महानगरी मगर,
नहीं आती नज़र कोई महानता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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