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मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

आओ खुद के खातिर जी लें

परिवार की जिम्मेदारी 
थी जितनी भी सभी निभा ली
नहीं चैन से पल भर बैठे,
करी उमर भर ,मारा मारी 
बच्चे सभी लगे धंधे पर,
 हाथ किए बेटी के पीले 
 जीवन के अब बचे हुए दिन 
 आओ खुद के खातिर जी लें 
 
ईंट ईंट कर घर बनवाया
धीरे-धीरे उसे सजाया 
जीवन की आपाधापी में ,
उसका सुख पर नहीं उठाया 
आओ अब अपने उस घर में,
हंस कांटे, कुछ पल रंगीले 
जीवन के कुछ बचे हुए दिन 
आओ खुद के खातिर जी लें

 करी उम्र भर भागा दौड़ी
 कोड़ी कोड़ी, माया जोड़ी 
 पर उसका उपभोग किया ना
 यूं ही है वह पड़ी निगोड़ी 
 साथ नहीं जाएगा कुछ भी
 क्यों ना इसका सुख हम भी लें 
 जीवन के अब बचे हुए दिन,
 आओ खुद के खातिर जी लें
  
 खुले हाथ से खर्च करें हम 
 देश विदेशों में विचरें हम 
 करें सहायता निर्धन जन की ,
 थोड़ा संचित पुण्य करें हम 
 जो न कर सके वह मनचाही ,
 कर आनंद का अमृत पी लें 
 जीवन के अब बचे हुए दिन 
 आओ खुद के खातिर जी लें 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बहुत दिन हुए 

बहुत दिन हुए, तुम पर अपना प्यार लुटाये 
बहुत दिन हुए, फंसा उंगलियां हाथ मिलाये
अब तो सुनती हो ,कह काम निकल जाता है,
 बहुत दिन हुए ,रानी कहकर तुम्हें बुलाये 
 आती नजर घटाएं थी जिनमें सावन की,
 बहुत दिन हुए तुम्हारी जुल्फें सहलाये 
 याद नहीं ,पिछली कब की थी छेड़खानी, 
 बहुत दिन हुए, एक दूजे को हमें सताये 
 संग सोते पर होते मुखड़े इधर-उधर हैं ,
 बहुत दिन हुए होठों पर चुंबन चिपकाये 
 याद नहीं कब पिछली बार बंधे से हम तुम 
 बहुत दिन हुए, बाहुपाश में तुम्हें लगाये 
 बहुत शांति से हम मशीनवत जीवन जीते,
 बहुत दिन हुए, तुमको रुठे ,मुझे मनाये
 इधर उधर की चर्चा में दिन गुजर रहे हैं,
 बहुत दिन हुए प्रेम कथा अपनी दोहराये
 अब ना तो आवेश बचा है ना वह जिद है 
 बहुत दिन हुए, ना कहने की नौबत आये
जितना सुख पा ले संग रह कर, उतने खुश हैं बहुत दिन हुए ,ये बातें ,मन को समझाये

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

तब की रिमझिम, अब की रिमझिम

ये होती बात जवानी में
पानी बारिश रिमझिम बरसे
चाहे छतरी हो तान रखी
तुम भी भीगो,हम भी भीगे
तब तन में सिहरन होती थी
हम तुम जाते थे तड़फ तड़फ 
वो मजा भीगने का अपने
होता था कितना रोमांचक 
हम और करीब सिमट जाते
भीगे होते दोनो के तन
हम आपस में सट जाते थे
दूना होता था आकर्षण

अब  है ये हाल बुढापे में
पानी बारिश रिमझिम बरसे 
ना तुम भीगो ,ना हम भीगे 
एक छतरी में हम तुम सिमटे
अब भी हम आपस में सटते
डरते हैं भीग नहीं जाएं 
रहते बौछारों से बचते 
सर्दी बुखार से घबराएं 
तब मजा भीगने में आता
अब लगे भीगने में डर है
यौवन के और बुढापे के
प्यार में ये ही अंतर है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

सफेदपोश नेता 

कई नेता पहनते उजले वसन 
किंतु काला बहुत उनका आचरण
ढोंग करते देश सेवा कर रहे 
मगर वो अपनी तिजोरी भर रहे 
बहुत खोटी पाओगे उनकी नियत 
ढूंढते रह जाओगे इंसानियत

घोटू 
पैसे वाले 

कई धनपति ,जो कहलाते पैसे वाले 
उनके घर की अगर तिजोरी आप खंगाले 
मिल जाएंगे सोना ,चांदी ,हीरा ,मोती 
और गड्डियां ,कितनी बड़े-बड़े नोटों की 
किंतु नतीजा तुम्हें बहुत यह अचरज देगा 
एक पैसे का ,एक सिक्का भी नहीं मिलेगा

घोटू 

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