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मंगलवार, 24 अगस्त 2021

शाश्वत सच 

मैं चौराहे पर खड़ा हुआ 
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ 
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
 यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ 
 एक तरफ जवानी के जलवे
  जिनमें मैं डूबा था अब तक 
  एक तरफ बुढ़ापा बुला रहा
   देता है बार-बार दस्तक
   मैं किधर जाऊं, क्या निर्णय लूं
   मन में उलझन, शंशोपज है
  आएगा बुढ़ापा निश्चित है 
  क्योंकि ये ही शाश्वत सच है 
  कोई चिर युवा नहीं रहता 
  यह सत्य हृदय को खलता है 
  दिन भर जो सूरज रहे प्रखर,
  वह भी संध्या को ढलता है 
  रुक पाता नहीं क्षरण तन का,
   मन किंतु बावरा ना माने 
   इसलिए लगा हूं बार-बार 
   मैं अपने मन को समझाने
    तू छोड़ मोह माया सारी 
    अब आया समय विरक्ती का 
    जी भर यौवन में की मस्ती,
     अब वक्त प्रभु की भक्ति का 
     एक वो ही पार लगाएंगे,
     तेरा बेड़ा भवसागर में 
     तू भूल के सांसारिक बंधन 
     अब बांधले बंधन ईश्वर से

   मदन मोहन बाहेती घोटू
मिलन पर्व

 रूप तुम्हारा मन को भाया, तुमने भी कुछ हाथ बढ़ाया 
बंधा हमारा गठबंधन और मिलन पर्व हैअब जब आया 
सांसो से सांसे टकराई और प्रीत परवान चढ़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 तुमने जब एक अंगड़ाई ली, फैला बांह ,बदन को तोड़ा 
देखा उस सुंदर छवि को तो सोया मन जग गया निगोड़ा
 फिर जो तेरे अलसाये से ,तन की मादक खुशबू महकी
 मेरे तन मन और बदन में, एक चिंगारी जैसी दहकी
और फिर मुझे सताने तुमने करवट बदली और मुड़ गई
यारां, मेरी नींद उड़ गई 
 मैंने जब तुमको सहलाया ,प्यार तुम्हारा भी उमड़ाया 
बात बड़ी आगे अधरों ने ,जब अधरों का अमृत पाया 
हम तुम दोनों एक हो गए, बंध बाहों के गठबंधन में सारा प्यार उमड़ कर आया और सुख सरसाया जीवन में 
 मैं न रहा मैं, तुम न रही तुम, ऐसी हमने प्रीत जुड़ गई 
 यारां, मेरी नींद उड़ गई

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 22 अगस्त 2021

रक्षाबंधन नया विचार 

जब भी आता है हर साल,
 रक्षाबंधन का त्योहार 
 बहन भाई को बांध के राखी
 जतलाती है अपना प्यार 
 
 जागृत हो जाता है मन में ,
 बचपन का वह लाड़ दुलार 
 जबकि मनौती मांगे बहना,
  जिये भाई उसका सौ साल 
  
  यह प्यारा त्यौहार हर्ष  का,
  आए हर बरस सावन में 
  भाई बहन के प्यारे रिश्ते 
   आ जाते नवजीवन में 
   
   रक्षा सूत्र कलाई में जब,
    भाई की  बांधा जाता 
    बहन भाई से ले लेती है,
    अपनी रक्षा का वादा 
    
    हर राखी पर मेरे मन में 
    उठता है यह सोच जरा 
    भाई भाई में क्यों ना होती 
    रक्षा की यह परंपरा 
    
    छोटा भाई बड़े भाई को 
    रक्षा सूत्र अगर बांधे 
    भाई भाई के सारे झगड़े,
     रह जाएंगे फिर आधे 
     
     अगर भाई अपने भाई को 
     राखी बांधेगा हर बार 
     भाई भाई में फिर से जीवित 
     होगा बचपन वाला प्यार

  मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 21 अगस्त 2021

बहन से
(राखी के अवसर पर विशेष )

एक डाल के  फल हम बहना
संग संग सीखा,सुखदुख सहना

एक साथ थे ,जब कच्चे थे
मौज मनाते  ,सब बच्चे  थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
एक दूजे पर ,प्यार लूटना ,
याद आता वो मिलजुल रहना
एक डाली के  फल हम बहना

ना कोई  चिन्ता , जिम्मेदारी
बचपन की  सब  बातें न्यारी
कितनी सुखकर,कितनी प्यारी
तितली सा उन्मुक्त उछलना ,
शीतल मंद पवन सा बहना
एक डाल के फल हम बहना

पके समय संग ,टूटे,बिछड़े
पाया स्वाद ,मधुर हो निखरे  
अलग अलग होकर सब बिखरे
हमने अपना काम संभाला ,
और तुम बनी ,किसी का गहना
एक डाल  के फल हम बहना

एक डोर बांधे जो माँ थी
दूजी डोर बांधती राखी
प्रेम का बंधन ,अब भी बाकी
मिलकर,सुख दुःख बांटा करना  ,
दिल की अपने , बातें कहना
एक डाल के फल हम बहना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

 जाओ चाय बना कर लाओ 
 
बूढ़े बुढ़िया, मियां बीबी, बैठ बुढ़ापे में क्या करते 
तनहाई में गप्प मारते ,अपना वक्त गुजारा करते 
दुनिया भर की, इधर उधर की, बहुत ढेर सारी है बातें 
कई बार जागृत हो जाती, पिछली धुंधली धुंधली यादें
 मुझे देखने आए थे तुम ,पत्नी जी ने पूछा हंसकर 
ऐसा मुझ में क्या देखा था, जो तुम रीझ गए थे मुझ पर 
क्या वह मेरी रूप माधुरी थी या था वो खिलता चेहरा 
या मेरी मासूम निगाहें, जिन पर पड़ा लाज का पहरा 
या फिर मेरा खिलता यौवन,या मतवाली मुस्कुराहट थी 
चोरी-चोरी तुम्हें देखना या फिर मेरी घबराहट थी
कुछ तो था जो तुम सकुचाए,रहे देखते मुझे एकटक
बढ़ी हुई थी मेरी धड़कन, धड़क रहा मेरा दिल धक धक 
न तो बात की ना कुछ पूछा ना कुछ बोले नही कुछ कहा 
यूं ही फुसफुसा,मां कानों में, तुमने झट से कर दी थी हां 
मैं बोला सच कहती हो तुम,मै था बिल्कुल भोला भाला 
पहली बार किसी लड़की को पास देखकर था मतवाला
 यूं कॉलेज में ,यार दोस्त संग  हम लड़की छेड़ा करते थे 
लेकिन बात बिगड़ ना जाए ,हम घबराते और डरते थे 
पहली बार तुम्हें देखा था जीवन साथी चुनने खातिर 
 तुम सुंदर थी भोली भाली रूप तुम्हारा था ही कातिल 
तुम्हें देख कर परख रहा था ,पत्नी बनी लगोगी कैसी 
फिर तुम्हारी शर्माहट और सकुचाहटभी थी कुछ ऐसी 
तुम जो ट्रे में लिए चाय के ,प्याले आई थी घबराते 
 हाथों के कंपन के कारण, चाय भरे प्याले टकराते उनकी टनटन का वह मधु स्वर मेरे मन को रिझा गयाथा 
 दिया चाय का प्याला जिसमें अक्स तुम्हारा समा गया था
 यह प्यारा अंदाज तुम्हारा, लूट ले गया मेरा मन था पहली चुस्की नहीं चाय की,वह मेरा पहला चुंबन था फिर आगे क्या हुआ पता है तुमको और मालूम मुझे है
 पति पत्नी बन जीवन काटा,मस्ती की और लिऐ मजे हैं 
अपनी पहली मुलाकात को, एक बार फिर से दोहराओ
 वक्त हो गया, तलब लगी है जाओ चाय बना कर लाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू

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