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बुधवार, 31 जुलाई 2019

पश्चाताप

मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

थी बीस बरस की उमर अभी ,मूंछों की रेख न उघड़ी थी
शैशव का साथ  छोड़ मैंने ,यौवन की  ऊँगली पकड़ी थी
पर प्रथम चरण में यौवन के ,मैं बुरी तरह से भटक गया
जो आसमान से टपका तो आकर खजूर में लटक गया
जाने क्यों मेरी शादी का ,एक  ऑफर मिला रावले  से
तगड़े दहेज़ की बात सुनी ,घर वाले  हुए  बावले  से
मुझ से बिन बोले ,बिन पूछे ,मेरी शादी करदी पक्की
और मैं कुछ बोला  तो बोले ,राजा बेटा ,तू है लक्की
सुनते है बहू साहजी की ,प्यारी इकलौती बेटी है  
आ करे निहाल ,हमें ,उसके ,पैरों में लक्ष्मी बैठी है
उनके मुनीमजी कहते थे ,वो तुझको फॉरेन  भेजेंगे
यदि नयी नहीं सेकंड हैंड मोटर दहेज़ में वो देंगे
अच्छा बंगला है ,इज्जत है ,दो दो अंग्रेजी कारे है
तेरी तक़दीर तेज  बेटा ,अब तो बस वारे न्यारे है
मैं बोला वो सब ठीक मगर मुझसे भी तो पुछवा लेते
लड़की न दिखाई ,कम से कम ,फोटो ही तो दिखला देते
'फोटो को, क्या चाटेगा ,वो सुन्दर भोली भाली  है
है सभी बात में अच्छी ,बस कुछ लम्बी है कुछ काली है
लम्बी तो तेरी माँ भी है और काले कृष्ण कन्हैया थे
हमको क्या जब वो दहेज़ में क्रीम पाउडर सब देंगे
है बूढ़े ससुर और बेटी उनकी इकलौती   वारिस है
अब ना मत करो लाल मेरे ,बस मेरी यही गुजारिश है
फादर को न बहू लेकिन ,था प्यार दहेजी पेटी  से
मैं शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

इतनी चिकनी चुपड़ी बातें सुन मेरा मन भी डोल गया
फॉरेन जाने के चक्कर में ,मैं ख़ुशी ख़ुशी हाँ बोल गया
फिर महीने भर के अंदर ही गूंजी शादी की शहनाई
पहने सुधारवादी चोगा ,सारी रस्मो की भरपाई
शादी थी हुई बिना परदे  ,पर वह परदा ना तो क्या था
उनके मुख पर परदा न मगर मेरी आँखों पर परदा था
वह झीना झीना परदा था ,मोटे  दहेज़ और मोटर का
फॉरेन जाने की आशा का ,दौलत पाने के चक्कर का
होगयी खैर शादी मेरी ,लेकिन दहेज़ में क्या पाया
नखरे,ताने देनेवाली ,है धन्य प्रभु तेरी  माया
मिल गया एक हेलिकॉफ्टर ,जो पग जमीन पर नहीं रखे
बीबी न रेडियो एक मिला ,जो दिन भर बोले ,नहीं थके
कार दहेजी नहीं मिली ,लेकिन सरकार मिली मुझको
पहले थी आँखें चार और फिर आँखे चार मिली मुझको
यार दोस्त ये कहते है बीबी तो बड़ी हसीन मिली
जो स्वयं रेडियो ,हेलिकॉफ्टर ,ऐसी एक मशीन मिली
एक ऐसी मैना मिली मुझे जो मैका मैका जाती है
ससुराल पिंजरा लगता है ,अम्मा की याद सताती है
चूल्हा फूंके ,आंसू आवे ,रोटी सेके तो हाथ जले
क्या खूब मिली बीबी मुझको ये पूर्व जनम के कर्म फले
खोदा पहाड़ निकली चुहिया ,अपनी करनी पर पछताए
अब राम भला करदे मेरा ,अबके से तो गंगा नहाये
जला दूध का ,रहूँ छाछ से ,एक हाथ की  छेटी  से
मैं  शादी करके पछताया ,उस बड़े बाप की बेटी से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
(यह रचना १९६२ में लिखी गयी थी )

मंगलवार, 30 जुलाई 2019

ओ डैडी !

मैं तो बडा निराश हो गया ओ डैडी
अब दहेज़ बिल पास हो गया ओ डैडी

कितना दुखी है आफत का मारा मै
बीस बरस की उमर हुई पर कंवारा मैं
कितने ऑफर आये कितने भाव बढे
लेकिन तुम तो अपनी जिद पर रहे अड़े
एक लाख से कम दहेज़ के ऑफर पर ,
दिया नहीं कुछ ध्यान आपने ओ डैडी
किया न मम  कल्याण आपने ओ डैडी

अब तक चेक समझ कर मुझको बैठे थे
चढ़ते शंकर जी को, मावे के पेठे थे
ऐसी बहू दिला बेटे को ए शंकर
भैंस सरीखी देवे दूध बाल्टी भर
दूध दहेजी कम दे लेकिन सुन्दर हो ,
मै तो उजली गाय मांगता ओ डैडी
यही आपसे राय मांगता ओ डैडी

मैं अब भी कहता हूँ मेरा ख्याल करो
मेरी शादी ओ फादर अगले साल करो
जितना मिले दहेज़ वही लो ,मत अकड़ो
भाग रहा है भूत लंगोटी ही पकड़ो
अगर फंसे जो कहीं दहेजी चक्कर में ,
डर लगता बहुत बड़े घर से अब ओ डैडी
मित्र हुए मेरे मैरिड सब ओ डैडी

घोटू 


हाय  राम  मै इंटरव्यू में फ़ैल हो गया

बहुत दिनों के बाद सास की आस मिली थी
या यूं समझो मुर्दा दिल को सांस मिली थी
क्या सोचा था मैंने पर क्या हाय  हो गया
सपनो का बेलून हवा में  फ्लाय हो गया
महल बना था ,अरमानो का ,ढेर हो गया
हाय राम मैं इंटरव्यू में फ़ैल हो गया

मन में जिसका डर था उसको फेक्ट कर दिया
लड़की की अम्मा ने मुझे रिजेक्ट कर दिया
शादी माँ को तो ना बेटी को करनी थी
लेकिन दुःख की लुटिया तो मुझको भरनी थी
दालभात में मूसरचंद का मे हो गया
हाय राम मैं इंटरव्यू में फ़ैल हो गया

माना मोटे होठ नाक मेरी चौड़ी है
लेकिन मेरी सूरत क्या इतनी भोंडी है
यूं ही नर्वस था मैं बोला हौले हौले
जैसे ही सर मुंडा पड़  गए सर पर ओले
जीते जी दुनिया में रहना जेल हो गया
हाय राम मैं इंटरव्यू में फ़ैल हो गया

घोटू 
बारिश है पर  दूर सजन है

बारिश है पर दूर सजन है
चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ है ,सिगड़ी बिगड़ी ,नहीं अगन है
बारिश है पर दूर सजन है

 है स्टोव बिसूरता उसमे पर मिट्टी का तेल नहीं है
ओ  पीहर की प्यारी  प्रियतम मेरा घर भी जेल नहीं है
आज केटली खाली खाली ,भाग गयी है चाय निगोड़ी
ठंडा मौसम,भूख लगी पर ,कौन खिलाये  मुझे पकोड़ी
तेल पड़ा मीठा तिल्ली का  ,मगर पास  में  ना बेसन है
बारिश है पर दूर सजन है

नहीं आग सुलगा सकता हूँ ,क्योंकि सील गयी है माचिस
भुट्टा छिलकों बीच दबा है ,कैसे  पाऊं भुट्टे का किस
बाहर रिमझिम है गीलापन ,लेकिन मेरा उर सूखा है
ओ दिलवाली ,ये दीवाना ,तेरे दरशन का भूखा है
पी घर से तो मन उकताता ,पर पीहर से लगी लगन है
बारिश है पर दूर सजन है

घोटू 
शादी का विज्ञापन

मैं अब तक बैठा कंवारा हूँ
अब  शादी  करने वाला हूँ

बहुत दिनों तक सहन किया ,लेकिन अब सहा नहीं जाता
मम्मी सुनती ही नहीं कभी ,डैडी  से कहा नहीं जाता
शादी की मीठी बातों से ही पेट न मेरा भरता भरता है
मुझ सामाजिक प्राणी को सूनापन बहुत अखरता है
दिल मेरा खाली पड़ा हुआ ,कोई ना जिससे  प्यार करूं
मेरी अब तक शादी न हुई ,बोलो कब तक इन्तजार करूं
शादी का नाम कभी सुनता ,मुंह में पानी भर आता है
लक्ष्मी घर में आ जायेगी ,फिर फादर का क्या जाता है
मम्मी डैडी ना सुनते है तो खुद पर है अधिकार मुझे
आखिर कभी बसाना ही तो है अपना संसार मुझे
नहीं कंवारा रह कर अब मैं  काट सकूंगा निज जीवन
होकर निर्लज्ज कर रहा हूँ मैं निज शादी का वज्ञापन
ऐसी बीबी की चाह मुझे ,पाकर जिसको ,मुझको सुख हो
थोड़ी काली भी चल सकती पर पढ़ीलिखी हो ,नाजुक हो
ज्यादा फेशनवाली न बने जो हरदम सजधज कर निकले
एम ए ,बी ए की चाह नहीं ,बस चिट्ठीपत्री पढ़ लिख ले
परदे से हो परदा  जिसको ,लेकिन फिर भी शरमीली हो
नाक कान कट अच्छा हो ,आँखें जिसकी चटकीली हो
जो चूल्हा भी फूंक सके हो पाकशास्त्र का ज्ञान जिसे
घर और बच्चों कीउलझन में भी रहे पति का ध्यान जिसे
गाना आता तो अच्छा है ,मीठी बातें करना  जाने
देवर ननदों से प्यार करे ,सासूजी का कहना माने
छरहरा बदन ,दुबली पतली लेकिन ना फुदके तितली सी
आँखे चमकीली तो होंगी ,लेकिन ना चमके बिजली सी
सुन्दर  हो पर निज  सुंदरता पर ज्यादा ना इतराये वो
खुद नाच न जाने चल सकता पर मुझको नहीं नचाये वो
ध्यान रहे कि अधिक दिनों तक रह न सकेगी पीहर में
संतुष्ट  उसे रहना होगा ,मेरे छोटे ,अपने घर में
यदि गुस्से में कुछ कह दूँ तो वो मेरा बुरा न मानेगी
देवी सी पूजूंगा उसको यदि वो पति को परमेश्वर जानेगी
दिल नहीं टूट जाए उसका  यह ख्याल रखूंगा मैं हर क्षण
पर मुझको गरजू ना समझे ,शादी की देकर विज्ञापन
मेरा दिल भी आखिर दिल है ,बचपन की सीढ़ी पार करी
मैं बहुत दिनों से कंवारा हूँ ,अब मेरी राखो लाज हरी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

(उपरोक्त कविता साथ वर्ष पूर्व लिखी गयी थी )

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