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सोमवार, 4 अप्रैल 2016

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर 
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
स्पिन और फास्ट थी बालिग़ ,फिर भी है मैदान पर टिकी
 सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 29 मार्च 2016

तू ही रहे साथ मेरे


















आह! दुनिया नहीं चाहती मैं, मैं बनकर रहूँ
वो जो चाहती है, कहती हैं, बन चुपचाप रहूँ
होठ भींच, रह ख़ामोश, ख़ुद से अनजान रहूँ
रहकर लाचार यूँ ही, मैं ख़ुद से पशेमान रहूँ

बनकर तमाशबीन मैं क्यों, ये असबाब सहूँ?
कहता हूँ ख़ुद से, जो हूँ जैसा हूँ वही ज़ात रहूँ
नहीं समझे हैं वो, कोशिशें उल्टी पड़ जाती हैं
मैं मजबूर नहीं, टूटना ऐसे मेरा मुमकिन नहीं

महसूस करता है हर लम्हा, दिल-ओ-दिमाग मेरा
ख़त्म हो रहा है मुझमें, धीमे-धीमे हर एहसास मेरा
दर्द से क्षत-विक्षत है, कहने को मज़बूत शरीर मेरा
चुका रहा है कीमत जुड़े रहने की, हर जज़्बात मेरा

दिल करता है कभी, लेट जाऊं और निकल जाऊं
ले आत्मा को साथ, ऊँचे नील-गगन में विचर जाऊं
पर समय अभी आया नहीं, तो जल्दी क्यों तर जाऊं
काज ज़िम्मे हैं कई जीवन में, छोड़ इन्हें किधर जाऊं

तो जब तक मुकम्मल ना हो जाएँ, सभी मस्लहत मेरे
तुम ही संभालो 'निर्जन', पल-पल उलझते लम्हात मेरे
उम्मीद छोटी सी, अमन पसंद ज़िन्दगी की है यारा मेरे
दूर रहे दुनिया मुझसे, फ़क़त एक तू ही रहे साथ मेरे

पशेमान - repentent, ashamed
तमाशबीन - spectator
असबाब - scene, stuff
मुकम्मल - complete
मस्लहत - policy
लम्हात -  moments


#तुषारराजरस्तोगी #दुनिया #बदलाव #अहसास #जज़्बात #निर्जन #मस्लहत #उम्मीद

रविवार, 27 मार्च 2016

होलिका दहन

  होलिका दहन

एक हसीना थी
बड़ी नाजनीना थी
जलवे दिखाती थी
सबको जलाती थी
करती थी ठिठोली
नाम था  होली
उसको था वरदान
कोई भी इंसान
उसका संग पायेगा
बेचारा जल जाएगा
और एक प्रह्लाद था
एकदम फौलाद था
ग्यानी और गुणी था
धुन का धुनी  था
होली के मन भाया
गोदी में बैठाया
उसको था जलाना
पर वो था दीवाना
नहीं किसी से कम था
फौलादी  जिसम था
बड़ा ही था बली
जलाने उसे चली
 कोशिश बेकार गई
बेचारी हार गयी   
मात यहाँ पर खायी
उसे जला ना पायी
खुद ही पिघल गयी
होलिका जल गई

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

भिक्षामदेही

       भिक्षामदेही

         तुम कोमलांगिनि ,मृदुदेही
         है हृदय रोग ,  मै  मधुमेही
          मै प्यार मांगता हूँ तुमसे ,
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
दीवानों का दिल लूट लूट ,
तुमने अपने आकर्षण से
निज कंचन कोषों में बांधा  ,
तुमने कंचुकी के बंधन से
क्यों मुझको वंचित रखती हो ,
अपने  संचित यौवन धन से
           मै प्यार ढूढ़ता हूँ तुम में ,
           है नज़र तुम्हारी  सन्देही
          भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही
मै नहीं माँगता हूँ कंचन ,
मुझको बस,  दे दो आलिंगन
मधु भरे मधुर इन ओष्ठों से,
दे दो एक मीठा सा चुंबन
मेरी अवरुद्ध शिराओं में ,
हो पुनः रक्त का संचालन
          ना होगा पथ्य,अपथ्य ,तृप्त ,
          होगा पागल ,प्रेमी ,स्नेही
           भिक्षामदेही ,भिक्षामदेही

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 23 मार्च 2016

गोबर की अहमियत

        गोबर की अहमियत

हमारी जिंदगी में कदर कितनी गाय भेंसों की ,
एक छोटे से उदाहरण से ,समझ सब आप सकते है
करे इंसान विष्टा तो,बहा  दी जाती है फ्लश में,
करे गर गाय गोबर तो,हम उपले थाप रखते है
पवित्तर मानते इतना ,लगाते चौका गोबर का ,
हवन में काम में लाते ,जलाते आग चूल्हे की,
उन्ही के अंगारों पर रोटियां हम सेक खाते है ,
बचे जो राख ,उससे भी ,हम बरतन साफ़ करते है

घोटू

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