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शनिवार, 11 अप्रैल 2015

मतलब की दुनिया

       मतलब की दुनिया
सबने अपने मतलब साधे
काम हुआ तो  ,राधे राधे
               १ 
कच्चा आम,अचार बनाया
चटकारे ले ले कर खाया
और पककर जब हुआ रसीला
दबा दबा कर,करके ढीला
जब तक रस था,चूसा जी भर
फेंक दिया ,सूखी गुठली कर
रस के लोभी,सीधे सादे
रस न बचा तो ,राधे राधे
             २
सभी यार मतलब के भैया
सब से बढ़ कर ,जिन्हे रुपैया
जब तक काम,हिलाते है दुम
मतलब निकला ,हो जाते गुम
अपना उल्लू सीधा करके
अपनी अपनी जेबें भर के
अपना ठेंगा ,तुम्हे दिखाते
काम हुआ तो राधे राधे
               ३
समरथ को सब शीश झुकाते
जय जय करते ,नहीं अगाथे
जब तक आप रहे कुर्सी पर
मख्खन तुम्हे लगाते जी भर
खुश करने को भाग,दौड़ते
कुर्सी छूटी  ,तुम्हे छोड़ते
नज़रें चुरा ,निकल झट जाते
काम हुआ तो राधे,राधे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

वही सुलतान होता है

           वही सुलतान होता है
काम  कितने ही ऐसे है ,देखने में सरल लगते ,
       सान  कर देखिये आटा ,नहीं आसान  होता है
निकल कर होंठ से आती,गाल पर फ़ैल जाती है,
        कान से लेना ना देना ,नाम मुस्कान होता  है 
मज़ा थोड़ा जरूर आता ,चंद लम्हे सरूर आता ,
        जाम जो रोज पीते है ,बुरा अंजाम  होता है
जिसे भी मिलता है मौका ,उसे सब चूसते रहते,
       आम की ही तरह यारों ,आम इंसान   होता है
फोटो छपती है पेपर मे ,नज़र आता है टी वी पर ,
       कोई बदनाम भी होता ,तो उसका नाम होता है
जो दबते है दबंगों से ,हमेशा रोते  रहते है ,
        जो सीना तान के रहता ,वही सुलतान  होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
    

क्या सेवा इसको कहते है ?

       क्या सेवा इसको कहते है ?

मुझे बिमारी ने था घेरा
थोड़ा ख्याल रखा क्या मेरा
        इसको तुम हो सेवा कहते
खुद को सेवाव्रती बता कर
पत्नीभक्त  पति बतला कर
       अपना ढोल पीटते रहते
पत्नी  ने जब ये फरमाया
हमको काफी गुस्सा आया
       हम बोले  ये बात गलत है
होता  देखा  है ये   अक्सर
अलगअलग जगहों,मौकों पर
          होता सेवा अर्थ अलग है
ठाकुरजी को यदि नहलाओ
पूजा कर, परसाद चढ़ाओ
          प्रभु जी की सेवा कहलाती
दादा दादी पौत्र खिलाते
ऊँगली थाम उसे टहलाते
           बच्चों की सेवा  कहलाती
दफ्तर में हो काम कराना
बाबू को देना, नज़राना
           इसको सेवा पानी कहते
साला आये ,  उसे घुमाओ
साली को तुम गिफ्ट दिलाओ
          इस सेवा से सब खुश रहते
साहब के घर ,सब्जी और फल
यदि  लाओगे, थैला भर भर
         पा सकते हो शीध्र प्रमोशन
अगर गाय को चारा डालो
उसकी सेवा करो ,सम्भालो
        दूध तभी मिलता भर बरतन
गुरु की सेवा आये काम में
अच्छे नंबर 'एक्जाम 'में
        सेवा से मेवा मिलता है
साधू संत  की करिये सेवा
मिलता  ज्ञान ,कृपा का मेवा
        खुशियों से जीवन खिलता है
पिता और माँ की सेवा कर
मिलती आशिषे  ,झोली भर
       बहुत पुण्य भागी हम होते
तुम बीमार पड़ी बिस्तर पर
दी दवाई तुमको टाइम  पर 
        ख्याल रखा था जगते सोते
इस पर भी ये तुम्हे ग़िला है
इसे नहीं कहते सेवा  है
      तो क्या करता ,पाँव दबाता
ये भी तो ना कर सकता था
हुआ ऑपरेशन घुटनो का
      इसीलिये बस मैं सहलाता
किया वही जो कर सकता था
ख्याल तुम्हारा मैं रखता था
      सेवा समझो इस सेवक की
मैं पति,तुम्हारा दीवाना
बदले में दो ,मेवा या ना
       ये तो है तुम्हारी   मरजी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन यात्रा

       जीवन यात्रा
जब जीवन पथ पर हम चलते
गिरते,  उठते  और  सँभलते
जीवन भर ये ही चलता है,
         खुशियां कभी तो कभी गम है
सरस्वती जैसी चिन्ताएँ ,
गुप्त रूप से आ मिलती है ,
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
            होता जीवन भर संगम  है
भागीरथ तप करना  पड़ता ,तभी स्वर्ग से गंगा आती
सूर्यसुता कालिंदी बनती ,जो यम की बहना कहलाती
एक उज्जवल शीतल जल वाली
एक   गहरी ,गंभीर    निराली
सिंचित करती है जीवन को,
                  दोनों की दोनों पावन है 
सुख दुःख की गंगा जमुना का,
                  होता जीवन भर संगम है
मिलन  पाट  देता  दूरी को,तभी  पाट  होता  है  चौड़ा
पतितपावनी सुरसरी मिलने ,सागर को करती है दौड़ा
गति में भी प्रगति आती है
गहराई  भी बढ़   जाती  है
 जब अपने प्रिय रत्नाकर से ,
                 होता उसका मधुर मिलन है
सुख दुःख की गंगा  जमुना का ,
                होता जीवन भर संगम है
भले चन्द्र  हो चाहे सूरज ,ग्रहण सभी को ही लगता है
शीत ,ग्रीष्म फिर वर्षा  आती ,ऋतू चक्र स्वाभाविकता है
पात पुराने जब  झड़ जाते 
तब ही नव किसलय है आते
जाना आना नैसर्गिक है ,
                 यह प्रकृति का अटल  नियम है
सुख दुःख की गंगा जमुना का ,
                  होता जीवन भर संगम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

आ गया कैसा युग है ?

            आ गया कैसा युग है ?

सूरज पहले भी पूरब से ही उगता था ,
        अब भी वह पूरब से ही तो आता उग है
प्रकृति ने तो अपना  चलन नहीं बदला है ,
         बदल गए है लोग,आ गया कैसा युग है 
                    १   
 नहीं ययाति जैसे तुमको पुत्र मिलेंगे ,
        जो कि पिता को अपना यौवन करदे अर्पित
नहीं मिलेंगे ,हरिश्चंद्र से सत्यव्रती भी ,
        राजपाट जो वचन रक्ष  ,करे समर्पित
राम सरीखे बेटे अब ना पैदा होते ,
     छोड़ राज्य हक़ ,पिता वचन हित ,भटके वन वन
अब तो घर घर में पैदा होते है अक्सर ,
       कहीं कंस  तो , कहीं दुशासन  और  दुर्योधन
मात पिता की आकंक्षाएँ जाय भाड़ में ,
       अब खुद की ,महत्वकांक्षएं  हुई  प्रमुख है 
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है ,
       बदल गए है लोग, आ गया कैसा  युग है
                २
अपना  अपना चलन हरेक युग का होता है ,
      होती है हर युग की है  अलग अलग गाथाएं
होता सीता हरण ,अहिल्या पत्थर बनती ,
       तब भी थी और अब भी है क्यों वही प्रथाएं
नारी तब भी शोषित थी ,अब भी शोषित है,
          अब भी जुए में है उसको दांव लगाते
अब भी द्रोपदियों का चीरहरण होता है,
       लेकिन कोई कृष्ण न उसका  चीर  बढ़ाते
तब भी नारी त्रसित दुखी थी और भोग्या थी ,
       अब भी उसका शोषण होता,मन में दुःख है
प्रकृति ने तो अपना चलन नहीं बदला है,
       बदल गए है लोग ,आ गया कैसा युग है
                   ३     
हर कोई बैचेन व्यग्र है और व्यस्त है ,
       और पैसे के चक्कर में  पागल रहता है
अब कोई संयुक्त नहीं परिवार बचा है,
      आत्म केंद्रित हर कोई एकल रहता  है
संस्कारों को लील गयी पश्चिम की आंधी,
      बिखर गए सब ,छिन्न भिन्न ,हालत नाजुक है
जाने क्यों कुछ लोग प्रगति इसको कहते है ,
       जब कि पतन की ओर हो रहे हम उन्मुख  है
सतयुग गया ,गया त्रेता भी और द्वापर भी ,
     कल जैसे सब  हुए मशीनी,अब  कलयुग है
प्रकृती ने तो अपना चलन  नहीं बदला है,
      बदल गए है लोग ,आ गया कैसा  युग है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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