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शनिवार, 4 अप्रैल 2015

प्यार की झंकार

        प्यार की झंकार

जब पायल की छनछन ,दिल को छनकाती है
भटक  रहे  बनजारे  मन  की  बन   आती है
   जब अपना मन, बन जाता अपना ही दुश्मन
   नज़रें उलझ किसी से ,बन जाती है उलझन
छतरी तर होने से बचा नहीं पाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
       जब सपने ,अपने ,साकार ,सामने आते
       बन  हमराही कोई  बांह थामने   आते
जेठ भरी दोपहरी बन सावन जाती है
भटक रहे बनजारे मन की बन आती है
     जब मैं और तुम मिल कर,एक हो जाते है हम
      गम  सारे  गुम  हो जाते , हो  जाता    संगम 
दिल की बस्ती में मस्ती सी छन जाती है
भटक  रहे  बनजारे मन की  बन आती  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

प्रोत्साहन

       प्रोत्साहन
एक छोटे से बच्चे ने ,
एक कविता लिखी
माँ को सुनाई
माँ ने सुनी ,ताली बजाई
जब माँ की सहेलियां आई,
उन्हें भी सुनवाया
सभी ने तारीफ़ की,सराहा
बच्चे ने वो कविता ,
अपने पिता को भी सुनाई
पिता ने जल्दी जल्दी सुनी ,
शायद पसंद भी आई होगी ,
क्योंकि उन्होंने डाट ना लगाईं
सिर्फ इतना बोला
पढाई पर भी ध्यान दिया करो थोड़ा
बड़े भाई को सुनाई तो बोला ,
'ये तुकबंदी छोड़
थोड़ा स्पोर्ट में इंट्रेस्ट ले ,
सेहत बना,सुबह सुबह दौड़
छोटी बहन ने  सुनी तो ,
खुश होकर बोली छोटी बहना
 भैया ,एक कविता मुझ पर भी लिखो ना
स्कूल में दोस्तों को सुनाई
किसी ने मुंह बनाया  ,किसी  ने सराही
टीचर  ने सुनी तो दी शाबासी
स्कूल की मेंगज़िन  में छपवा दी
इन तरह तरह के प्रोत्साहनों ने ,
 बच्चे का उत्साह बढ़ाया
उसके अंदर के सोये कवि को जगाया
और आज वो साहित्य जगत में ,
जाना माना नाम है
ये उस बचपन में मिले ,
प्रोत्साहन का ही अंजाम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नज़र लग गयी

           नज़र लग गयी
बड़े गर्व से कहता था मैं ,मेरी   उमर  हुई   चौहत्तर
फिर भी मैं फिट और फाइन हूँ,कई जवानो सेभी  बेहतर
किन्तु हो रहा है कुछ ऐसा ,बढ़ने लगी खून में   शक्कर
करता मुझको परेशान है ,घटता ,बढ़ता ब्लड का प्रेशर
चक्कर आने लगे मुझे है ,डाक्टर के घर ,खाकर चक्कर
कहते है ये लोग सयाने, मेरी  नज़र लग गयी मुझ पर

घोटू

उनकी आदत नहीं बदलती

                उनकी आदत नहीं बदलती

कितना ही साबुन से धोलो ,काले काले ही रहते है,
        क्रीम पाउडर मल लेने से ,उनकी रंगत नहीं बदलती
कितना ही पैसा आ जाए ,लेकिन कृपण, कृपण रहता है ,
        मोल भाव सब्जी वाले से,करने की लत नहीं बदलती 
कितना ही बूढा हो जाए ,नेता ,नेता ही कहलाता  ,
        उदघाटन ,भाषण करने की ,उनकी चाहत नहीं बदलती
बंगलों के हो या सड़कों के ,कुत्ते ,कुत्ते ही रहते है ,
        सुबह ढूंढते खम्बा ,टायर,उनकी आदत नहीं  बदलती
प्यार पिता भी करता है पर,मन ही मन,दिखलाता कम है,
        लेकिन खुल कर प्यार लुटाती,माँ की फितरत नहीं बदलती
पति पत्नी यदि सच्चे प्रेमी ,जनम जनम का जिनका बंधन,
        चाहे जवानी ,चाहे बुढ़ापा ,उनकी  उल्फत  नहीं  बदलती
लक्ष्मी तो चंचल माया है ,कई धनी  निर्धन हो जाते ,
          विद्या की दौलत पर ऐसी ,है जो दौलत नहीं बदलती
कहते है बारह वर्षों में ,घूरे के भी दिन फिरते है,
           होते करमजले कुछ ऐसे ,जिनकी किस्मत नहीं बदलती
जिनके मन में लगन लक्ष्य की,मुश्किल से लड़ ,बढ़ते जाते ,
             होते है जो लोग जुझारू , उनकी हिम्मत नहीं  बदलती
माया के चक्कर में मानव ,सारी उमर खपा देता है,
              खाली हाथ सभी जाते है ,यही हक़ीक़त  नहीं बदलती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 28 मार्च 2015

पापा तो पापा रहते है

        पापा तो पापा रहते है

अपनी पीड़ा खुद सहते है
नहीं किसी से कुछ कहते है
बच्चे बदल जाए कितने भी,
पापा तो पापा रहते है
मन में ममता ,प्रेम वही है
कोई भी दुष्भाव  नहीं है
जिन्हे प्यार से पाला पोसा
जिन पर इतना किया भरोसा
प्यार लुटाया जिन पर इतना
इक दिन बदल  जाएंगे  इतना
बिलकुल उन्हें भुला वो  बैठे
पर क्या ,है तो उनके बेटे
भले मर गयी  उनकी गैरत
फिर भी उनसे वही मोहब्बत
बस मन में घुटते रहते  है
पापा तो पापा रहते  है
जब काटे यादों का कीड़ा
मन में  होने लगती पीड़ा
यही सोचते रहते मन में
कि उनके लालन पोषण में
में ही शायद रही कसर है
या फिर कोई बाह्य असर है
वर्ना वो क्यों करते ऐसा 
ये व्यवहार परायों जैसा
पर वो खुश तो ये भी खुश है
पास नहीं,मन में ये दुःख है
याद आती ,आंसू बहते है
पापा तो पापा रहते है 
शायद होगी कुछ मजबूरी
तभी बनाली उनने  दूरी
ऐसे तो वे ना थे वरना
बदल गए तो अब क्या करना
जब भी कभी कभी  मिल जाते
हो प्रसन्न उनके दिल जाते 
बैठे मन में  आस लगाए
शायद उन्हें सुबुद्धि आजाए
है नादान  ,नासमझ बच्चे
शायद वक़्त  बनादे अच्छे 
आस लगाए बस रहते है
पापा तो पापा  रहते  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



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