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शनिवार, 4 अप्रैल 2015

नज़र लग गयी

           नज़र लग गयी
बड़े गर्व से कहता था मैं ,मेरी   उमर  हुई   चौहत्तर
फिर भी मैं फिट और फाइन हूँ,कई जवानो सेभी  बेहतर
किन्तु हो रहा है कुछ ऐसा ,बढ़ने लगी खून में   शक्कर
करता मुझको परेशान है ,घटता ,बढ़ता ब्लड का प्रेशर
चक्कर आने लगे मुझे है ,डाक्टर के घर ,खाकर चक्कर
कहते है ये लोग सयाने, मेरी  नज़र लग गयी मुझ पर

घोटू

उनकी आदत नहीं बदलती

                उनकी आदत नहीं बदलती

कितना ही साबुन से धोलो ,काले काले ही रहते है,
        क्रीम पाउडर मल लेने से ,उनकी रंगत नहीं बदलती
कितना ही पैसा आ जाए ,लेकिन कृपण, कृपण रहता है ,
        मोल भाव सब्जी वाले से,करने की लत नहीं बदलती 
कितना ही बूढा हो जाए ,नेता ,नेता ही कहलाता  ,
        उदघाटन ,भाषण करने की ,उनकी चाहत नहीं बदलती
बंगलों के हो या सड़कों के ,कुत्ते ,कुत्ते ही रहते है ,
        सुबह ढूंढते खम्बा ,टायर,उनकी आदत नहीं  बदलती
प्यार पिता भी करता है पर,मन ही मन,दिखलाता कम है,
        लेकिन खुल कर प्यार लुटाती,माँ की फितरत नहीं बदलती
पति पत्नी यदि सच्चे प्रेमी ,जनम जनम का जिनका बंधन,
        चाहे जवानी ,चाहे बुढ़ापा ,उनकी  उल्फत  नहीं  बदलती
लक्ष्मी तो चंचल माया है ,कई धनी  निर्धन हो जाते ,
          विद्या की दौलत पर ऐसी ,है जो दौलत नहीं बदलती
कहते है बारह वर्षों में ,घूरे के भी दिन फिरते है,
           होते करमजले कुछ ऐसे ,जिनकी किस्मत नहीं बदलती
जिनके मन में लगन लक्ष्य की,मुश्किल से लड़ ,बढ़ते जाते ,
             होते है जो लोग जुझारू , उनकी हिम्मत नहीं  बदलती
माया के चक्कर में मानव ,सारी उमर खपा देता है,
              खाली हाथ सभी जाते है ,यही हक़ीक़त  नहीं बदलती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 28 मार्च 2015

पापा तो पापा रहते है

        पापा तो पापा रहते है

अपनी पीड़ा खुद सहते है
नहीं किसी से कुछ कहते है
बच्चे बदल जाए कितने भी,
पापा तो पापा रहते है
मन में ममता ,प्रेम वही है
कोई भी दुष्भाव  नहीं है
जिन्हे प्यार से पाला पोसा
जिन पर इतना किया भरोसा
प्यार लुटाया जिन पर इतना
इक दिन बदल  जाएंगे  इतना
बिलकुल उन्हें भुला वो  बैठे
पर क्या ,है तो उनके बेटे
भले मर गयी  उनकी गैरत
फिर भी उनसे वही मोहब्बत
बस मन में घुटते रहते  है
पापा तो पापा रहते  है
जब काटे यादों का कीड़ा
मन में  होने लगती पीड़ा
यही सोचते रहते मन में
कि उनके लालन पोषण में
में ही शायद रही कसर है
या फिर कोई बाह्य असर है
वर्ना वो क्यों करते ऐसा 
ये व्यवहार परायों जैसा
पर वो खुश तो ये भी खुश है
पास नहीं,मन में ये दुःख है
याद आती ,आंसू बहते है
पापा तो पापा रहते है 
शायद होगी कुछ मजबूरी
तभी बनाली उनने  दूरी
ऐसे तो वे ना थे वरना
बदल गए तो अब क्या करना
जब भी कभी कभी  मिल जाते
हो प्रसन्न उनके दिल जाते 
बैठे मन में  आस लगाए
शायद उन्हें सुबुद्धि आजाए
है नादान  ,नासमझ बच्चे
शायद वक़्त  बनादे अच्छे 
आस लगाए बस रहते है
पापा तो पापा  रहते  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



नव निर्माण

                   नव निर्माण

धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
               तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है
बिना  पतझड़ ,नयी कोंपल ,नहीं आती है वृक्षों पर,
               अँधेरी रात  ढलती तब  ,सुबह का भान  होता  है 
फसल पक जाती,कट जाती,तभी फसलें नयी आती,
                बीज से वृक्ष ,वृक्ष से फल ,फलों से बीज होते है
कोई जाता,कोई आता,यही है चक्र जीवन का ,
                 कभी सुख है कभी दुःख है ,कभी हम हँसते ,रोते है
जहाँ जितनी अधिक गहरी ,बनी बुनियाद होती है ,
                 वहां उतनी अधिक ऊंची ,बना करती  इमारत है
चाह जितनी अधिक गहरी ,किसी की दिल में होती है ,
                  उतनी ज्यादा अधिक ऊंची ,चढ़ा करती मोहब्बत है
कोई ऊपर को चढ़ता है ,कोई नीचे उतरता है ,
                  ये तुम पर है ,चढ़ो,उतरो ,वही सोपान   होता  है
धराशायी पुरानी जब ,इमारत कोई होती है ,
                   तभी तो उस जगह फिर से ,नया निर्माण होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

पड़ोसन भाभी

         पड़ोसन भाभी

कल पड़ोसन ने शिकायत दागी
भाईसाहब ,मैं तो बहुत छोटी हूँ,
 फिर आप मुझे क्यों कहते  है भाभी
हमने कहा आपकी  बात सही है
आप छोटी तो है ,मगर ,
आपको बेटी कहना भी ठीक नहीं है
क्योंकि बाप बेटी का रिश्ता,
 बड़ा नाजुक होता है
छोटी छोटी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती,
तो बड़ा  दुःख होता है
आपको मैं कह नहीं सकता हूँ 'साली'
क्योंकि साली लगती है गाली
और ये शायद आपके पति को भी न भाये ,
क्योंकि साली कहलाती आधी  घरवाली
'बहू' कहने की नहीं है मेरी मर्जी
क्योंकि बहू को हमेशा ,
सास  ससुर  से   रहती है 'एलर्जी '
एक देवर भाभी का ही ऐसा रिश्ता है
जिसमे  भाईचारा  झलकता  है
हंसी मज़ाक की भी होती है आजादी
इसलिए आपको  हम बुलाते है भाभी

घोटू

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