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शनिवार, 10 जनवरी 2015

किसी के सामने भी जो
        नहीं झुकता अकडता है
उसे अपने ही जूतों के
           सामने झुकना पडता है

पडी कुछ इस तरह सर्दी
        बताये हाल हम कल का
रुइ से बादलों की रजाई मे
         सूर्य जा दुबका
हो गया सर्द था मौसम
           बढ गई इस कदर ठिठुरन
रजाई से न वो निकला
            रजाई से न निकले हम

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

ये उत्तर प्रदेश है

            ये उत्तर प्रदेश है

ये मेरा देश है ,उत्तर प्रदेश है
जन्मभूमि यह श्रीकृष्ण की ,यहीं पे जन्मे राम है
मथुरा ,वृन्दावन काशी है और अयोध्या धाम है
गंगा जमुना बहती रहती ,सरयू भी अविराम है
धर्म कर्म शिक्षा संस्कृती का ,यहीं हुआ उत्थान है
दिया बुद्ध ने ,सारनाथ मे,यहीं  ज्ञान  संदेश  है
   ये मेरा देशहै, उत्तर प्रदेश है
शस्यश्यामला है ये धरती ,सभी तरफ हरियाली है
है समृद्ध,  यहाँ के वासी, सुख,शांति, खुशहाली  है
खेत लहलहाते है फसलों से, फलों लदी हर डाली है
रहन सहन और खानपान में ,इसकी बात निराली है
प्रगति पथ पर बढ़ता जाता,बदल रहा परिवेश है
   ये मेरा देश है ,उत्तरप्रदेश  है
हस्तशिल्प उद्योग यहाँ पर ,गाँव गाँव में विकसित है
हर  बच्चा ,अब कंप्यूटर में ,शिक्षित और प्रशिक्षित है
सड़क ,रेल का जाल बिछा है ,वातावरण   सुरक्षित है
नए नए उद्योग यहाँ पर ,रोज हो रहे विकसित है
आमंत्रण, सरकार दे रही ,सुविधा कई  विशेष है
     ये मेरा देश है,उत्तर  प्रदेश है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

संक्रांति-मिलन पर्व

             संक्रांति-मिलन पर्व

मैं तिल छोटा, मेरे दिल में , तैल है प्यार का लेकिन
डली गुड की हो तुम मीठी, हमारा  मेल है मुमकिन
मिलें हम एक रस होकर,गज़क,तिलपपड़ी जाएँ बन
चिपक कर हर तरफ तुमसे ,रहूँ  बन रेवड़ी  हरदम
या दलहन सा दला जाकर ,कोई मैं  दाल बन जाऊं
रूपसी  चाँवलों  सी तुम, तुम्हारा संग  यदि  पाऊं
मिलेंगे जब भी हम और तुम ,पकेगी खिचड़ी प्यारी
जले जब आग लोढ़ी  की ,मिलन की होगी तैयारी
 सूर्य जब उत्तरायण हो,मिलेगा प्यार का उत्तर
उड़ेंगे हम पतंगों से  ,और चूम आएंगे अम्बर
मिलें तिलगुड या खिचड़ी से ,ह्रदय में शांति फिर होगी
 मिलन का पर्व तब होगा,नयी संक्रांति फिर होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

प्यार का अंदाज

          प्यार का अंदाज

हमारे प्यार करने पर ,गज़ब अंदाज है उनका,
       दिखाती तो झिझक है पर,मज़ा उनको भी आता है
कभी जब रूठ वो जाते,चाहते हम करें मिन्नत,
       वो मुस्काते है मन में जब,उन्हें जाया  मनाता  है
संवर कर और सज कर जब  ,पूछते,कैसे लगते है,
         समझते हम निमंत्रण है,रहा हमसे न जाता   है
उन्हें बाहों में भर कर के,हम उन्हें प्यार जब करते,
          खफा होते जब ,होठों से , लिपस्टिक  छूट जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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