एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

 रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

हुये जब से रिटायर है ,
हमेशा रहते ये घर है
चैन अब दो मिनिट का भी,
नहीं हमको मयस्सर है
कभी कहते है ये लाओ
कभी कहते है वो लाओ
आज सर्दी का मौसम है,
पकोड़े तुम बना लाओ
नहीं जाते है ड्यूटी पर,
हुई मुश्किल हमारी है
सुबह से शाम सेवा में ,
लगी ड्यूटी हमारी है
नहीं होता है खुद से कुछ,
दिखाते रहते  नखरा  है 
क्यों इतनी गंदगी फैली ,
ये क्यों सामान बिखरा है
निठल्ले बैठे रहते है,
नहीं कुछ काम दिनभर है
बहुत ये शोर करते है ,
हुए खाली कनस्तर है
जरा सी बात पर भी ये ,
लड़ाई,जंग करते है
प्यार के मूड में आते ,
तो दिन भर तंग करते है
चले जाते थे जब दफ्तर
चैन से रहते थे दिन भर
नहीं थी बंदिशें कोई,
कभी शॉपिंग ,कभी पिक्चर
रिटायर ये हुए जब से ,
हमारी आयी आफत है
होगया काम दूना है,
मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

     विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
             बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
          चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
           तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की 
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
            जोह रहे है  बाट तुम्हारे  आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
            अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
             इतने सपने  देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
              ये  तुम्हारा देश,तुम्हारी  धरती  है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
             प्यासी आँखे ,राह निहारा  करती है
जहाँ पले  तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
              याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
             याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
              हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
             प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
             सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
              शकल दिखाने  ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
               कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत  क्या  होगी
हरेक  चीज, पैसों से तोला करते हो ,
               तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
                देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे  मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
                  बन  निर्मोही,अपने   बेगानेपन  से
 फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
                  लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
                  मन में यह विश्वास जगाये बैठी  है      
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
                  रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
                   करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
                 अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
                   तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
                    आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
                     शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

शनिवार, 13 दिसंबर 2014

कोई है

            कोई है
मैं नहीं लिखता ,लिखाता कोई है
नींद से मुझको   जगाता  कोई  है
क्या भला मेरे लिए क्या है बुरा ,
रास्ता मुझको दिखाता कोई  है
कभी गर्मी,कभी सर्दी ,बारिशें ,
ऋतु में बदलाव लाता कोई है
हर एक ग्रह की अपनी अपनी चाल है,
मगर इनको भी  चलाता कोई है
कभी धुंवा ,लपट या चिंगारियां ,
अगन कुछ  ऐसी जलाता कोई है
डालते उसके गले में हार हम ,
जंग हमको पर जिताता  ,कोई है
कौन  है वो ,कैसा उसका  रूप है,
कभी भी ना ,नज़र आता कोई है
दुनिया के कण कण को देखो गौर से,
हर जगह हमको  दिखाता  कोई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त की बात

       वक़्त की बात

वक़्त किसको कब बना दे बादशाह ,
  धूल कब किसको चटा दे ,खेल मे
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
  आजकल वो सड़ रहे है   जेल में
खेलते थे करोड़ों में जो कभी ,
   आजकल वो हो गए कंगाल है
हजारों की भीड़ थी सत्संग में,
   कोठरी में जेल की बदहाल है
भोगते फल अपने कर्मो का सभी,
  जिंदगी की इसी रेलमपेल  में
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
आजकल वो सड़ रहे है जेल में

घोटू

पड़ी रिश्तों पर फफूंदी

     पड़ी रिश्तों  पर फफूंदी

जब से  मैंने खोलकर संदूक देखा ,
      पुरानी यादें सताने लग गयी है
 बंद बक्से में पड़े रिश्ते  पुराने ,
     महक सीलन की सी आने लग गयी है
फफूंदी सी रिश्तों पर लगने लगी है
    चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दे
पुराना अपनत्व फिर से लौट आये ,
     रूप उनको ,वक़्त के अनुरूप दे दें
दूध चूल्हे पर चढ़ा ,यदि ना हिलाओ,
   उफन, बाहर पतीले से निकल जाता
बिन हिलाये ,आग पर सब चढ़ा खाना ,
    चिपक जाता है तली से ,बिगड़ जाता
बंद रिश्ते बिगड़ जाते वक़्त के संग ,
    इसलिए है उनमे कुछ  हलचल  जरूरी
रहे चलता ,मिलना जुलना ,आना जाना ,
    तभी  नवजीवन मिले , हो  दूर  दूरी
चटपटापन भी जरूरी जिंदगी में ,
    मीठी बातों से सिरफ़  ना काम चलता
बनता है अचार कच्ची केरियों से ,
     मीठे आमों का नहीं  अचार  डलता
खट्टे मीठे रिश्तों को रख्खे मिला कर
दूध को ना उफनने दें ,हम हिला कर
इससे पहले क्षीण हो क्षतिग्रस्त रिश्ते ,
       आओ इनको हम नया एक रूप दे दें  
फफूंदी सी रिश्तो पर लगने लगी है,
        चलो इनको प्यार की कुछ धूप  दे दें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-