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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

निमंत्रण

           निमंत्रण

दे गए मुझको निमंत्रण ,स्वप्न थे कल रात आ के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना   से
तुम्हारे स्वर्णिम बदन पर ,कल सुबह हल्दी चढ़ेगी
चन्द्र मुख यूं ही सुहाना  ,चमक और ज्यादा बढ़ेगी
तारिका की चुनरी में ,सज संवर तुम आओगी  तो,
यूं ही तो मैं  बावरा हूँ , धड़कने  मेरी   बढ़ेगी
देख कर सौंदर्य अनुपम ,गिर न जाऊं डगमगा के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना से
शाम मैं घोड़ी चढूंगा,आऊंगा  बारात लेकर
डाल वरमाला  गले में ,बांध लोगी तुम उमर भर
मान हम साक्षी अगन को ,सात फेरे ,साथ लेंगे ,
सात वचनों को में बंधेंगे ,निभाने को जिंदगी भर
तृप्ती कितनी पाउँगा में ,सहचरी  तुमको बना के 
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी   कामना से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आम का वृक्ष -उमर का असर

          आम का वृक्ष -उमर का असर

आम का वृक्ष,
जो कल तक ,
दिया करता था मीठे फल
अब छाँव देता है केवल
इसलिए उपेक्षित है आजकल
भले ही अब भी ,
उस पर कोकिल कुहकती है
पंछी कलरव करते है,
शीतल हवाएँ बहती है
पर,अब तो बस केवल
पूजा और शुभ अवसरों पर ,
कुछ पत्ते बंदनवार बना कर ,
लटका  दिये जाते है
जो उसकी उपस्तिथि  अहसास आते है
उसके अहसानो का कर्ज ,
इस तरह चुकाया जाता  है
कि उसकी सूखी लकड़ी को,
हवन में जलाया जाता है
फल नहीं देने  फल ,
उसे इस तरह मिल रहा  है 
आम का वृक्ष ,
अब बूढ़ा जो हो रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन संध्या

       जीवन संध्या

बड़ी बड़ी बुलंद इमारतें भी ,
शाम के धुंधलके में ,
नज़र  नहीं आती है
अस्तित्व होते हुए भी ,
 गुम  हो जाती है
ऐसा ही होता है,
जब जीवन की संध्या आती है

घोटू

बदलाव -बढ़ती उमर का

            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

सोमवार, 17 नवंबर 2014

तुम्हारे हाथों में

              तुम्हारे हाथों में

जो हाथ पकाते जब खाना ,तो गजब स्वाद भर जाता है
छू लेती जिन्हे हरी मेंहदी ,तो लाल रंग   रच जाता   है
जिन हाथों का कर पाणिग्रहण ,रिश्ता बंधता जीवन भर का
जिन हाथों की ही फुर्ती से ,चलता है काम सभी घर का
जो हाथ प्रेम से सहला कर ,पति मन में प्रेम जगाते है
जिन हाथों के ही बाहुपाश में ,दो प्रेमी बंध  जाते है
जिन हाथों में आ पैसा भी ,बहती गंगा बन जाता है
बस एक इशारा जिनका सब पतियों को खूब नचाता है
जिन हाथों में बेलन आता ,तो रोटी बना खिलाता है
गुस्से में पर वो ही बेलन ,हथियार बड़ा बन जाता है
रोता बच्चा खुश हो जाता है आकर के जिन हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
 
मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

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