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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती ,मै बसंती
      लग रही है बात बनती
गेंहू बाली सी थिरकती,
                  उम्र  है बाली तुम्हारी
पवन के संग झूमती हो,
                   बड़ी सुन्दर,बड़ी प्यारी
आ रही तुम पर जवानी,
                    बीज भी भरने  लगे है
और मै तरु आम्र का हूँ,
                    बौर अब खिलने लगे है
     तुम बहुत मुझको लुभाती,
       सच बताऊँ बात मन की
         तुम बसंती, मै  बसंती
           लग रही है बात बनती
खेत सरसों के सुनहरे ,
                        में खड़ी  तुम,लहलहाती 
स्वर्ण सी आभा तुम्हारी,
                        प्रीत है मन में जगाती
डाल पर ,पलाश की मै ,
                        केसरी  सा पुष्प प्यारा
मिलन की आशा संजोये ,
                         तुम्हे  करता हूँ निहारा
       पीत  तुम भी,पीत मै भी,
      आयें कब घड़ियाँ मिलन की
         तुम बसंती,मै बसंती
         लग रही है बात बनती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन- बसंत

                   मन- बसंत

मन बसंत था कल तक जो अब संत हो गया
अभिलाषा ,इच्छाओं का बस अंत   हो गया
जब से मेरी ,प्राण प्रिया ने करी ,ठिठौली ,
राम करूं क्या ,बूढा  मेरा   कंत     हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मै क्या करूं

               मै क्या करूं

पत्नी की सुनता तो 'जोरू का गुलाम'हूँ,
             माँ की सुनता,तुम कहती 'मम्मी के चमचे'
बच्चों को डाटूँ  तो कहलाता हूँ 'जालिम',
              करूं प्यार तो कहती मै 'बिगाड़ता बच्चे'
घर पर रहता तो कहते मै 'घर घुस्सू'हूँ,
                बाहर रहूँ घूमता  'आवारा ' कहलाता
कम खाता तो कहती मै 'कमजोर हो रहा',
                'मोटे होकर फूल रहे' यदि ज्यादा खाता
खर्चा करता तो कहती हो 'खर्चीला 'हूँ,
                 ना करता तो कहती हो 'कंजूस'बहुत मै
मेरी  समझ नहीं आता ,क्या करूं ना करूं ,
                 कोई बताये क्या करना कन्फ्यूज बहुत मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में

           वेलेनटाइन  सप्ताह
              (चतुर्थ प्रस्तुति)
            वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में 
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
                            आप ये क्यों भूलती है 
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
                            सांस मेरी फूलती है 
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
                           दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा ,
                          हम खुदी टेडी बियर  है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
                       क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
                        मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
                        देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
                       लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
                        उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
                          व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
                         आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
                         प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै इकहत्तर ,तुम हो पेंसठ ,प्यार अपना जस का तस  है
मनायें  वेलेन्टाइन ,प्यार का    ये तो     दिवस  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

इश्क पर जोर नहीं

   वेलेन्टाइन  सप्ताह
(तृतीय प्रस्तुति)
    इश्क पर जोर नहीं

*कोई कहता प्रेम की सकडी गली है ,
                         एकसंग दो नहीं इसमें  समा सकते
**कोई कहता प्रेम बिकता हाट में ना,
                                प्रेम के पौधे बगीचे में न लगते  
***कोई कहता ढाई अक्षर प्रेम के जो,
                                ठीक से यदि पढ लिये  ,पंडित बनोगे
#कोई कहती प्रेम की वो है दीवानी,
                                दर्द उसका समझ भी तुम ना सकोगे 
$कोई कहती जानती यदि प्रीत का दुःख,
                                 तो ढिढोरा पीटती  ,जाकर नगर में
प्रीत कोई भी किसी से नहीं करना ,
                                  प्रीत पीडायें  बहुत देती जिगर में
प्रीत के निज अनुभवों पर,गीत,दोहे,
                                  कई कवियों ने लिखे हैं,जब पढूं मै
जाता हूँ पड़ ,मै बहुत ही शंशोपज में,
                                   प्रीत कोई से करूं या ना करूं    मै 
तब किसी ने कान में आ फुसफुसा कर,
                                    फलसफा मुझको बताया आशिकी का
प्रीत की जाती नहीं,हो जाती है बस,
                                      इश्क पर है जोर ना चलता  किसी का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
* प्रेम गली  अति साकरी,जा में दो न समाय
**प्रेम न बड़ी उपजे ,नहीं बिकाये  हाट
***ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय
#हे री मै तो प्रेम दीवानी ,मेरा दरद न जाने कोय
$सखी री जो मै जानती,प्रीत किये दुःख होय
   नगर ढिढोरा पीटती,प्रीत न करियो कोय 
 
     

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