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सोमवार, 17 सितंबर 2012

आओ हम तुम हँसे

         आओ हम तुम हँसे

आओ हम तुम  हंसें

मन में खुशियाँ बसे
जीवन की आपाधापी में,
रहे न यूं ही  फंसे
               खुश हो सबसे मिलें
              दिल की कलियाँ खिले
             नहीं किसी से बैर भाव,
              मन में शिकवे  गिले
बस यूं ही मुस्काके
लगते रहे ठहाके
धीरे धीरे बिसर जायेंगे,
सारे दुःख दुनिया  के
               खिल खिल ,कल कल बहें
                     लगा   सदा  कहकहे
                तन मन दोनों की ही सेहत,
                 सदा    सुहानी      रहे  
चेहरा हँसता लिये
सुखमय जीवन जियें
बहुत मिलेगी खुशियाँ,
यदि कुछ करो किसी के लिये
                 चार दिनों का जीवन
                 हो न किसी से अनबन
                 खुशियाँ बरसेगी,सरसेगी,
                  हँसते रहिये  हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चार दिन की जिंदगी

    चार दिन की जिंदगी

जन्म ले रोते हैं पहले,बाद में मुस्काते हैं,
                           और फिर किलकारियों से,हम लुटाते प्यार हैं
फिर पढाई,लिखाई और खेलना मस्ती भरा,
                          ये किशोरावस्था भी,होती गज़ब की यार   है
 प्यार,जलवा,नाज़,अदाएं,मौज,मस्ती रात दिन,
                          ये जवानी,चार दिन का ,मद भरा  त्योंहार  है
और फिर लाचार करता है बुढ़ापा सभी को,
                          कुछ नहीं उपचार इसका,जिंदगी दिन चार है                 

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मंहगाई ने कमर तोड़ दी

              मंहगाई ने कमर तोड़ दी

हे मनमोहन!कुछ तो सोचो,

                                 तुमने है दिल तोडा
मंहगाई ने कमर तोड़ दी,
                                 नहीं कहीं का छोड़ा
रोज रोज बढ़ते दामों का,
                               सबको लगता  कोड़ा
घोटालों से लूट देश को,
                               एसा हमें झिंझोड़ा
अब खुदरा व्यापार विदेशी,
                              हाथों में  है छोड़ा
डीजल ने दिल जला दिया है,
                             सभी चीज   का तोडा
और सातवाँ गेस सिलेंडर,
                              महंगा हुआ  निगोड़ा
लंगड़ा लंगड़ा दौड़ रहा,
                             सूरज का सातवां घोड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 16 सितंबर 2012

जीवन झंझट

         जीवन झंझट

थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में

कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
  चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां   सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है  गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में 
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए  में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में  प्यार भरी चाहत  थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था  राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको  बे मतलब,झंझट  में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको  जीवन की खटपट में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
 

शनिवार, 15 सितंबर 2012

जीवन लेखा

                 जीवन लेखा

जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है

कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव  का ठावं   लिखा    है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा   है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा  का भी काँव लिखा है
पासे फेंक  खेलना जुआ  ,हार जीत का दाव लिखा  है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
 अच्छे बुरे  कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से   अलगाव   लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव  लिखा है
वाह रे ऊपरवाले  तूने,जीवन भर   उलझाव लिखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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