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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

बासन्ती मधुमास आ गया

बासन्ती मधुमास आ गया
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आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम  पास आ गया
बासंती  मधुमास आ गया
डाल डाल पर ,फुदक फुदक कर
कोकिल गुंजा रही है मधुस्वर
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय  नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयसंधी
हुई षोडशी ऋतू  बासंती
गेहूं की बाली थी खाली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया  है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनी,महका अम्बर
मदन पर्व है,ऋतू  रसवंती
आया ऋतू राज  बासंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"मेरा काव्य-पिटारा"

संग्रह मेरी रचनाओं का यह, खिलता एक बहारा,
आ करके सब देखो भाई, "मेरा काव्य-पिटारा" |

साझा सबसे कर सकता हूँ, है इसमें ये गुण सारा,
सब से विनय है आके देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

भद्रजनों का मिलता है आशीष इसके द्वारा,
भाई, बंधू, मित्रों देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मिलती यहाँ है सीख भी, है ज्ञान का एक सहारा,
आओ, देखो, राय भी दो सब, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मेरे लिए ये मंदिर-मस्जिद, ये मेरा है गुरुद्वारा,
तुम भी आओ, शौक से देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

जीवन संग अनवरत चलेगा, नदिया संग ज्यों धरा,
एक अभिन्न-सा भाग है यह, "मेरा काव्य-पिटारा" |

[ मेरी कविताओं के ब्लॉग का नया नाम- "मेरा काव्य-पिटारा" (पहले-"मेरी कविता") |
पता-http://pradip13m.blogspot.com/
जरुर आयें और अपनी राय दें | ]

टुकड़े

टुकड़े कितने जरुरी है ,
रोटी का हो या जमीन का ,
और कडकती ठण्ड में ,
एक अदद धूप का टुकड़ा ,
जीवन की निशानी होता है ,
पर टुकडो में बटना किसी को स्वीकार नहीं ,
फिर भी हम रोटी और जमीन के टुकड़े के लिए ,
टुकड़ों में बंट रहे है ,
एक टुकडा रोटी देने को हम तैयार नहीं ,
पर ह्रदय के टुकड़े करने में हमे महारथ हासिल है ,
टुकडा टुकडा होते हम ,
नहीं समझ पा रहे अभी भी हम ,
और कितने टुकड़ों में बटेंगे हम ,
टुकडा होने का यह खेल जारी रहेगा कब तक ,
कब सोचेंगे हम ,
नहीं जानते ,
अभी तो टुकडा टुकडा होने में व्यस्त है |

रचनाकार:- विनोद भगत

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

मैं पथिक


क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

पति पत्नी और वह

एक दिन
बैठे बिठाये हमें शौक चर्राया
संजीव कुमार की तरह
रोमांस करने का विचार आया
हमने आव देखा न ताव
सेक्रेटरी से पूछने लगे प्रेम का भाव
उसने भी सहानुभूति दर्शाई 

और कहा
आओ मेरे गले लग जाओ |

दोस्तों ने कहा
क्या किस्मत पाई है
बिलकुल संजीव कुमार का भाई है
थोड़े दिनों बाद
वही हुआ जो होता है
अपने देश का आशिक अंत में रोता है
क्योंकि
हमारा रोमांस भी पिछले रोमांस की कड़ी थी
इसलिए
पत्नी हाथ में चप्पल लिए खड़ी थी |

इधर पत्नी ने प्रेमिका को ललकारा
उधर हमने प्रेमिका को पुचकारा
और उसका हौशला बढाया
पत्नी को चित्त करने का
आजमाया हुआ नुस्खा बताया
पहले तो हमारी प्रेमिका सकपकाई
सामने खड़ी रणचंडी को देख कर घबराई
फिर अविलम्ब
शुरू हो गयी हाथापाई
थोड़ी ही देर में
प्रेमिका ने लुट्या दुबबाई
यहाँ भी पत्नी ने ही विजय पाई

किन्तु यह क्या
पत्नी के हाथ में
प्रेमिका के नकली बालों का विग
और जमीन पर नकली दांतों का सैट
मेरे पैरों के नीचे से जमीन फिसली
हाय प्रेमिका तो पत्नी से भी बूढी निकली |

रचनाकार:-चरण लाल

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