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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

उल्लू बीसा

उल्लू बीसा
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श्री लक्ष्मी वहां प्रभो,महिमा धन्य अपार
सोना,चाँदी और तुम,जगती के  आधार
करे रात के समय जो,कोई भी व्यापार
श्री उल्लू की कृपा से,भरे रहे भंडार
नमो नमो उल्लू महाराजा
प्रभो आप रजनी के राजा  
निशा दूत अति सुन्दर रूपा
वास आपका कोटर ,कूपा
सूखे तरु पर आप विराजे
राज सिंहासन पर नृप साजे
कौशिकनाथ,लक्ष्मी भक्ता
धन्य धन्य रजनी अनुरक्ता
प्रभो आपकी महिमा न्यारी
लक्ष्मी जी की आप सवारी
भक्त,तपस्वी,साधू,संता
पक्षीराज निशा के कंता
चाँद,उलूक ,दोई एक जाती
रात पड़े निकले ये साथी
सूरज छिपे,होय अंधियारा
दर्शन होए प्रभु तुम्हारा
दिन का हल्ला,हुल्लड़ बाजी
हुई प्रभु को लख नाराजी
दुनिया की भगदड़ से ऊबे
क्षीण चक्षु भक्तिरस डूबे
शांति रूप को भक्ति जागी
सब कुछ त्याग बने बैरागी
करे रात को लक्ष्मी सेवा
धन्य निशाचर उल्लू देवा
धनी सेठ और जग की माया
सब पर प्रभू आपका साया
घूक,तिजोरी,पैसेवाले
तीनो लक्ष्मी के रखवाले
तीनो एक सरीखे के ग्यानी
एक घाट का पीते पानी
कीर्ति आपकी वेद बखाने
गुण महिमा मूरख भी जाने
सुन कर मधुर आपकी वाणी
विव्हल होते जग के प्राणी
करे रात को जो व्यापारा
धन और पैसा आय अपारा
जो भी ध्यावे उल्लू बीसा
बने कीमती देशी घी  सा
उसका दुःख दारिद मिट जाए
पैसा औ लक्ष्मी को पाए
उल्लू बीसा तुम पढो,बन लक्ष्मी के दास
भर जायेगी तिजोरी,मिट जायेगे त्रास
(इति श्री उल्लू बीसा संपन्न)
(लक्ष्मी जी की कृपा के लिए उनके प्रिय वाहन
उल्लू  का आराधन धन प्रदायक होता है )

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

साहित्य सुरभि: कुंडलिया छंद - 2

साहित्य सुरभि: कुंडलिया छंद - 2: दीवाली त्यौहार पर , जले दीप से दीप अन्धकार सब दूर हों , रौशनी हो समीप । रौशनी हो समीप, उमंग...

१०० वीं प्रस्तुति

शुभकामनाएं--

File:Onam pookalam.jpg
रचो रँगोली लाभ-शुभ, जले  दिवाली  दीप |
माँ लक्ष्मी का आगमन, घर-आँगन रख लीप ||

Deepavali To Complete With Gambling













घर-आँगन रख लीप, करो स्वागत तैयारी |
लेखक-कवि मजदूर, कृषक, नौकर, व्यापारी |
Diwali Cracker Hamper
नहीं खेलना ताश, नशे की छोडो टोली |
दो बच्चों का साथ, रचो मिल सभी रँगोली  ||

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

आत्मदीप


Tuesday, October 25, 2011

आत्मदीप

लो फिर से आ गए दिवाली
मेरे मन के आत्मद्वीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई  पतंगे
शठ रिपु जैसे थे मंडराए
मुझ पर छाए
पर मैंने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मैंने उन्हें
निकाल दिया रे
मगन में जला
लगन से जला
और मैंने
शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गए दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली

सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                             सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके  हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
                              सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल  करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी  आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                                सूनी सूनी है दीवाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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