एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

भारत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भारत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 25 जनवरी 2012

सबसे विराट गणतंत्र हमारा


सच है कि हर जन-गन-मन आज प्याज के आँसू रोता है,
पर ये भी सच कि अपना भारत सूरज बन चमकता है।

नेता,अफसर शासक में कुछ सच है कि हैं भ्रष्टाचारी,
कठिन डगर में लेकिन फिर भी ऊँची हुई मसाल हमारी।

सौ कोटि हम हिन्दुस्तानी सौ टुकड़ों में रहते हैं,
पर सौ कोटि हम एक ही बनके दुनिया का ताज पहनते हैं।

नई दुल्हन को बिठाये हुए लुट जाए कहार की ज्यों पालकी,
चंद लोगों ने कर रखी है आज हालत त्यों हिन्दुस्तान की।

सामरिक,आर्थिक,नैतिक बल में भारत जैसा कोई नहीं है,
धर्मनिरपेक्षता, एकता, अखंडता, मानवता में हमसा कोई नहीं है।

खेल जगत में उदीयमान हिन्द भारत भाग्य विधाता है,
हर क्षेत्र में मजबूत ये धरिनी, महिमा हर कोई गाता है।

पूरब से लेके पश्चिम तक है साख फैलाये जनतंत्र हमारा,
हर एक देश ने माना लोहा, है सबसे विराट गणतंत्र हमारा।

( इस गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
हम सबको एक भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए।
मेरा देश महान। )

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिंदी हिन्दुस्तान है



हिंदी मेरी जान है,
भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |

खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |

देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |

हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |

देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |

शनिवार, 10 सितंबर 2011

वो लोकगीत

न जाने कहाँ खो गई मिट्टी की वो असली खुशबू गुम हुए आधुनिकता में मीठे-सुरीले वो लोकगीत | कर्ण-फाड़ू संगीत ही रहा वो असली रंगत नहीं रही मूल भारत की याद दिलाती कहाँ गए वो लोकगीत | एफ. एम., पोड ने निगल लिया फिल्मी गानों ने ग्रास लिया अब तो कोई सुनता भी नहीं न गाता कोई वो लोकगीत |

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-