एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

जज्बात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जज्बात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 31 जनवरी 2016

गुमसुम सा ये शमाँ क्यों है

गुमसुम सा ये शमाँ क्यों है,
लफ्जों में धूल जमा क्यों है,
आलम खामोशी का कुछ कह रहा,
अपनी धुन में सब रमा क्यों है..

डफली अपनी, अपना राग क्यों है,
मन में सबकी एक आग क्यों है,
कशमकश में है हर एक शख्स यहाँ,
रिश्तों में अब घुला झाग क्यों है..

हर आँख यहाँ खौफ जदा क्यों है,
मुस्कुराने की वो गुम अदा क्यों है,
भीड़ में रहकर खुद को न पहचाने,
खुद से ही सब अलहदा क्यों है..

एक होकर भी वो जुदा क्यों है,
आत्मा देह में गुमशुदा क्यों है,
पाषाण सा हृदय हो रहा है सबका,
तमाशबीन देख रहा खुदा क्यों है..

"प्रदीप कुमार साहनी"

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

एहसास तेरा

ढुँढती है नजरें तुझे हर दिन और हर रात,
आईने में नजरें अब तो तुझे तलाशती है ।

आहट तेरी करार है लेती अब तो हर हर एक पल,
भँवरों की गुँजन भी धुन तेरा सुनाती है ।

सपने तेरे मदहोश हैं करते अब निद्रा में हर रात,
जागती हुई आँखे भी ख्वाब तेरा दिखाती है ।

छुवन तेरा महसूस है करता ये मन हर लम्हा,
हवाओं की सरसराहट एहसास तेरा कराती है ।

खुशबू तेरी महकाती है अब बगिया में हरदम,
मादकता फूलों की भी याद तेरा दिलाती है ।

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

जज़्बात-ए-ईश्क


कुछ सुन लो या कुछ सुना दो मुझको,
गुमसुम रहकर न यूँ सजा दो मुझको,
जान से भी प्यारी है तेरी ये मुस्कुराहट,
मुस्कुरा कर थोड़ा सा हँसा दो मुझको |


आँखों से ही कुछ सीखा दो मुझको,
थोड़ी सी खुशी ही दिखा दो मुझको,
तेरी खुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं है,
अपनो की सूची में लिखा दो मुझको |


पलकें उठा के एक नज़र जरा दो मुझको,
ज़न्नत के दरश अब करा दो मुझको,
तेरी जीत में ही छुपी है मेरे जीतने की खुशी,
नैनों की लड़ाई में थोड़ा हरा दो मुझको |

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-