रात भर निद्रा ले और करके आराम
सुबह उठने सुबह उठने पर प्यारी सी थकान
सुबह सुबह आती हुई आलस भरी उबासी
जब तन वदन सब कुछ हो बासी
बदन तोड़ती हुई मीठी सी अंगड़ाई
ओंठो को फैला कर आती हुई जमहाई
बिस्तर को नहीं छोड़ने का मोह
दफ्तर और काम पर जाने की उहापोह
बोझिल सी आंखें को सहलाना,मलना
धीरे-धीरे उठकर के अलसा कर चलना गरम-गरम चाय की चुस्ती की तलब
रोज-रोज सवेरे होता है यह सब
क्या आपने कभी बासीपन एंजॉय किया है?
बासी ओंठो से बासी ओंठो का चुंबन लिया है?
मदन मोहन बाहेती घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।