हां,हम दिल्ली में रहते हैं
जुलूस, रैलियां और धरनों की,
पीड़ाएं निश दिन सहते हैं
हां,हम दिल्ली में रहते हैं
बड़ी अभागन है यह दिल्ली,
परेशान रहती बेचारी
इसका मालिक कौन
हो रही राज्य केंद्र में मारामारी
कहे केजरी ये मेरी है,
राज्यपाल अपनी बतलाता
इन दोनों की खींचतान में ,
दम दिल्ली का निकला जाता
हम पिसते रहते मुश्किल में
नहीं किसी से कुछ कहते हैं
हां , हम दिल्ली में रहते हैं
मुफ्त रेवड़ी बांट बांट कर
मुख्यमंत्री बना जुगाड़ू
ऐसा चिन्ह चुनाव बनाया
दिल्ली पर लगवा दी झाड़ू
कर ढपोर शंखों से वादे
करता बातें ऊंची ऊंची
काम एक भी ना कर पाया
रही प्रदूषित दिल्ली समूची
अब भी कचरे के पहाड़ से ,
बदबू के झोंके बहते हैं
हां ,हम दिल्ली में रहते हैं
हवा भरी है धूल ,धुंवे से,
मुश्किल श्वास, घुट रहा दम है
खांसी और खराश गले में,
आंखों में हो रही जलन है
वृद्ध घूमने अब ना जाते,
बच्चे बाहर खेल न पाते
वातावरण और शासन का
पॉल्यूशन हम झेल न पाते
झाग भरी जमुना मैया की
आंखों से आंसू बहते है
हां, हम दिल्ली में रहते हैं
घर से हुआ निकालना मुश्किल,
बाहर जाते, मन घबराता
दिन में सूरज, दिखे चांद सा,
और चांद तो नज़र न आता
परतें काले अंधियारे की,
छाई मन के अन्दर, बाहर
क्या ऐसे ही जीना होगा,
हमको जीवन भर, घुट घुट कर
छट दिवाली मना न पाते,
सूने सब उत्सव रहते हैं
हां, हम दिल्ली में रहते हैं
मदन मोहन बाहेती घोटू
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