मेरी जीवन यात्रा
एक मैं और मेरी तारा
मिलजुल कर करें गुजारा
हँसते हँसते मस्ती में ,
कट जाता समय हमारा
हम दो है नहीं अकेले
जीवन में नहीं झमेले
मैं टी वी रहूँ देखता ,
वो मोबाईल पर खेले
वो चाय पकोड़े बनाये
हम दोनों मिलकर खायें
आपस में गप्पें मारें ,
और अपना वक़्त बितायें
हम ज्यादा घूम न सकते
अब जल्दी ही हम थकते
कमजोरी से आक्रान्तिक ,
है जिस्म हमारे ,पकते
मन में है नेक इरादे
हम बंदे सीधे सादे
देती है साथ हमारा ,
कुछ भूली बिसरी यादें
यूं गुजरी उमर हमारी
हम खटे उमर भर सारी
बच्चों को सेटल करके ,
पूरी की जिम्मेदारी
जीवन भर काम किया है
प्रभु ने अंजाम दिया है
अब जाकर चैन मिला है ,
हमको आराम दिया है
बच्चे इज्जत है देते
त्योहारों पर मिल लेते
छूकर के चरण हमारे,
हमसे आशीषें लेते
खुश कभी ,कभी हम चिंतित
दर नहीं हृदय में किंचित
एक दूजे का है सहारा ,
एक दूजे पर अवलम्बित
मन कभी भटकता रहता
मोह में है अटकता रहता
व्यवहार कभी लोगों का ,
है हमें खटकता रहता
मन सोच सोच घबराये
आँखों पे अँधेरा छाये
हम में से कौन न जाने ,
किस रोज बीड़ा हो जाये
जो जब होगा ,देखेंगे
चिंता न फटकने देंगे
कैसी भी विपदा आये ,
हम घुटने ना टेकेंगे
ये मन तो है बंजारा
भटके है मारा मारा
हम बजा रहे इकतारा
एक मैं और मेरी तारा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
एक मैं और मेरी तारा
मिलजुल कर करें गुजारा
हँसते हँसते मस्ती में ,
कट जाता समय हमारा
हम दो है नहीं अकेले
जीवन में नहीं झमेले
मैं टी वी रहूँ देखता ,
वो मोबाईल पर खेले
वो चाय पकोड़े बनाये
हम दोनों मिलकर खायें
आपस में गप्पें मारें ,
और अपना वक़्त बितायें
हम ज्यादा घूम न सकते
अब जल्दी ही हम थकते
कमजोरी से आक्रान्तिक ,
है जिस्म हमारे ,पकते
मन में है नेक इरादे
हम बंदे सीधे सादे
देती है साथ हमारा ,
कुछ भूली बिसरी यादें
यूं गुजरी उमर हमारी
हम खटे उमर भर सारी
बच्चों को सेटल करके ,
पूरी की जिम्मेदारी
जीवन भर काम किया है
प्रभु ने अंजाम दिया है
अब जाकर चैन मिला है ,
हमको आराम दिया है
बच्चे इज्जत है देते
त्योहारों पर मिल लेते
छूकर के चरण हमारे,
हमसे आशीषें लेते
खुश कभी ,कभी हम चिंतित
दर नहीं हृदय में किंचित
एक दूजे का है सहारा ,
एक दूजे पर अवलम्बित
मन कभी भटकता रहता
मोह में है अटकता रहता
व्यवहार कभी लोगों का ,
है हमें खटकता रहता
मन सोच सोच घबराये
आँखों पे अँधेरा छाये
हम में से कौन न जाने ,
किस रोज बीड़ा हो जाये
जो जब होगा ,देखेंगे
चिंता न फटकने देंगे
कैसी भी विपदा आये ,
हम घुटने ना टेकेंगे
ये मन तो है बंजारा
भटके है मारा मारा
हम बजा रहे इकतारा
एक मैं और मेरी तारा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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