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रविवार, 25 अक्तूबर 2020

हाल- ए -बुढ़ापा

आते याद जवानी के दिन ,जब हम मचल मचल जाते थे ,
दीवाने हो पगला जाते ,जवां हुस्न के जलवे लख  कर
हुई बुढ़ापे में ये हालत ,छूटे नहीं पुरानी आदत ,
मन बहलाते ,देख हुस्न को ,यूं ही दूर से ,बस तक तक कर
पति हुए बेंगन का भड़ता ,पत्नी रही मलाई कोफ्ता ,
मगर स्वाद मारे बेचारे ,खुश रहते है ,बस चख चख कर
भीनी भीनी खुशबू वाली ,मिस सी {मिस्सी}रोटी गरम चाहिए
तन्दूरी गोभी भी खाते ,लेकिन तन से दूरी रख कर
कभी जोश में दौड़ा करते ,चुस्ती फुर्ती भरे हुए थे ,
अब थोड़ी भी मेहनत करलो ,बुरा हाल होता है थक कर
दुष्ट बुढ़ापा ऐसा आया , जोश ए जवानी ,हुआ सफाया ,
अपना समय बिताते है हम ,बस आपस में ही झक झक कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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