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सोमवार, 27 मार्च 2017

चलते चलते  

तिनका तिनका चुन बनाते घोसला हम,
दाना दाना चुग के सबको पालते  है 
लम्हा लम्हा झेलते है परेशानी,
कतरा कतरा खून अपना बालते है 
गाते गाते ये गला रुँध सा गया है,
खाते खाते भूख सारी मर गयी है 
सोते सोते नींद अब जाती उचट है,
सहमे सहमे सपने भी आते नहीं है 
चलते चलते अब बहुत हम थक गए है,
थकते थकते अब चला जाता नहीं है 
तपते तपते पड़ गए है बहुत ठन्डे,
जलते जलते अब जला जाता नहीं है 
डरते डरते खो गयी मर्दानगी  है,
घुटते घटते ओढ़ ली ,खामोशियाँ है 
रोते रोते सूख सब आंसू गए है ,
मरते मरते क्या कभी जाता जिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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