भगवान का ज्ञान
वो भगवान का बड़ा भक्त था
पूजापाठ और सेवा में रहता अनुरक्त था
रोज नहा धोकर ,मंदिर जाता था
बड़े विधिविधान से पूजा कर ,भजन जाता था
भगवान की मूरत पर,चढ़ावा चढाता था
नवरात्रों में भंडारा करवाता था
ख़ुशी खुशी सब खर्चा ,खुद ही उठाता था
देख कर के उसकी सेवाभाव का प्रदर्शन
एक दिन अचानक,प्रकट हो गए भगवन
बोले वत्स,तू जो ये मंदिर में ,
इतनी सेवाभाव दिखाता है
बोल क्या चाहता है ?
भक्त बोल प्रभु ,आपने ही मुझे बनाया है
आज मै जो कुछ हूँ,आपकी ही माया है
ये जो थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ा ,
मैं आपका अभिनंदन कर रहा हूँ
ये सब तुम्हारा ही दिया हुआ है ,
तुम्ही को अर्पण कर रहा हूँ
पूजा कर रहा हूँ,आपके गुण गा रहा हूँ
अपने निर्माता के प्रति ,
अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ
आपका आशीर्वाद और कृपा चाह रहा हूँ
भगवान बोले वत्स ,
तू मंदिर में मुझे रोज माथा नमाता है
पर ये भूल जाता है
मैंने तो पूरे संसार का निर्माण किया है ,
पर तेरा एक और निर्माता है
वो तेरे पिता और माता है
क्या तूने कभी अपने ,
उन निर्माता का भी ख्याल किया है
जिन्होंने तुझे जनम दिया है
रोज रोज मंदिर में मुझे पूजता है
क्या अपने बूढ़े माँ बाप के पास बैठ ,
दो मिनिट भी उनके हालचाल पूछता है
मेरी पत्थर की मूरत पर, परशाद चढाता है
और उन्हें दाने दाने को तरसाता है
तूने कितनी ही बार मुझ पर पोशाक चढ़ाई
पर क्या अपने पिताजी के लिए ,
एक कमीज भी बनवाई
तुझे पता भी है कि उनके कपड़े,
कितने पुराने और बदरंग हो रहे है
वो कितने फटेहाल है और तंग हो रहे है
तूने रोज रोज मुझ पर कितने रूपये चढ़ाए है
क्या अपने माँ बाप को ,जेब खर्च के लिए ,
सौ रूपये भी पकड़ाए है
मातारानी की मूरत पर कितनी चूनर चढाता है
क्या कभी अपनी माँ के लिए ,
एक नयी साडी भी लाता है
तूने मुझपर चांदी का छतर चढ़ाया है
पर क्या कभी तुझे अपने पिताजी की ,
जीर्णशीर्ण छतरी बदलने का भी ख्याल आया है
तेरे माता पिता ,
जो है जीवित देवता,
उनकी उपेक्षा कर रहा है
और मुझ पत्थर की मूरत से ,
कृपा की अपेक्षा कर रहा है
मैं तो पत्थर की मूरत हूँ ,
न तेरा चढ़ावा मेरे काम का है,
न मैं तेरा चढ़ाया परशाद खाऊंगा
अरे मूरख ,अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा कर ,
अगर वो प्रसन्न होंगे ,
मैं अपने आप प्रसन्न हो जाऊँगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वो भगवान का बड़ा भक्त था
पूजापाठ और सेवा में रहता अनुरक्त था
रोज नहा धोकर ,मंदिर जाता था
बड़े विधिविधान से पूजा कर ,भजन जाता था
भगवान की मूरत पर,चढ़ावा चढाता था
नवरात्रों में भंडारा करवाता था
ख़ुशी खुशी सब खर्चा ,खुद ही उठाता था
देख कर के उसकी सेवाभाव का प्रदर्शन
एक दिन अचानक,प्रकट हो गए भगवन
बोले वत्स,तू जो ये मंदिर में ,
इतनी सेवाभाव दिखाता है
बोल क्या चाहता है ?
भक्त बोल प्रभु ,आपने ही मुझे बनाया है
आज मै जो कुछ हूँ,आपकी ही माया है
ये जो थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ा ,
मैं आपका अभिनंदन कर रहा हूँ
ये सब तुम्हारा ही दिया हुआ है ,
तुम्ही को अर्पण कर रहा हूँ
पूजा कर रहा हूँ,आपके गुण गा रहा हूँ
अपने निर्माता के प्रति ,
अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ
आपका आशीर्वाद और कृपा चाह रहा हूँ
भगवान बोले वत्स ,
तू मंदिर में मुझे रोज माथा नमाता है
पर ये भूल जाता है
मैंने तो पूरे संसार का निर्माण किया है ,
पर तेरा एक और निर्माता है
वो तेरे पिता और माता है
क्या तूने कभी अपने ,
उन निर्माता का भी ख्याल किया है
जिन्होंने तुझे जनम दिया है
रोज रोज मंदिर में मुझे पूजता है
क्या अपने बूढ़े माँ बाप के पास बैठ ,
दो मिनिट भी उनके हालचाल पूछता है
मेरी पत्थर की मूरत पर, परशाद चढाता है
और उन्हें दाने दाने को तरसाता है
तूने कितनी ही बार मुझ पर पोशाक चढ़ाई
पर क्या अपने पिताजी के लिए ,
एक कमीज भी बनवाई
तुझे पता भी है कि उनके कपड़े,
कितने पुराने और बदरंग हो रहे है
वो कितने फटेहाल है और तंग हो रहे है
तूने रोज रोज मुझ पर कितने रूपये चढ़ाए है
क्या अपने माँ बाप को ,जेब खर्च के लिए ,
सौ रूपये भी पकड़ाए है
मातारानी की मूरत पर कितनी चूनर चढाता है
क्या कभी अपनी माँ के लिए ,
एक नयी साडी भी लाता है
तूने मुझपर चांदी का छतर चढ़ाया है
पर क्या कभी तुझे अपने पिताजी की ,
जीर्णशीर्ण छतरी बदलने का भी ख्याल आया है
तेरे माता पिता ,
जो है जीवित देवता,
उनकी उपेक्षा कर रहा है
और मुझ पत्थर की मूरत से ,
कृपा की अपेक्षा कर रहा है
मैं तो पत्थर की मूरत हूँ ,
न तेरा चढ़ावा मेरे काम का है,
न मैं तेरा चढ़ाया परशाद खाऊंगा
अरे मूरख ,अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा कर ,
अगर वो प्रसन्न होंगे ,
मैं अपने आप प्रसन्न हो जाऊँगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति स्वर्गीय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएं