एक बंगले वाले कुत्ते से ,बोला एक गलियों का कुत्ता
तू भी कुत्ता,मैं भी कुत्ता ,फिर हममे क्यों अंतर इत्ता
तेरी किस्मत में बंगला क्यों,मेरी किस्मत में सड़कें क्यों
तू खाये दूध और बिस्किट ,तो मुझको जूँठे टुकड़े क्यों
तेरी इतनी सेवा श्रुषमा ,तू सबको लगे दुलारा सा
मेरा ना कोई ठांव ठौर ,मैं क्यों फिरता आवारा सा
तू सोवे नरम बिस्तरों में ,मैं मिट्टी,कीचड़ में सोता
हम दोनों स्वामिभक्त हममे ,फिर नस्लभेद ये क्यों होता
क्या पूर्व जनम में दान किये थे तूने कुछ हीरे मोती
जो मुझको दुत्कारा जाता और तेरी खूब कदर होती
तेरी भी टेढ़ी पूंछ रहे ,मेरी भी टेढ़ी पूंछ सदा
तू भी भौंके ,मैं भी भौंकूं ,तू भी कुत्ता,मैं भी कुत्ता
हंस बोला बंगले का कुत्ता ,तू क्यों करता है मन खट्टा
है खुशनसीब ,तू है स्वतंत्र ,ना तेरे गले बंधा पट्टा
मैं रहता बंद कैद में हूँ ,घुटता हूँ,मन घबराता है
तू है स्वतंत्र ,आजादी से ,जिस तरफ चाहता,जाता है
जब मेरा तन मन जलता है ,मैं इच्छा दबा दिया करता
तू मनचाही साथिन के संग ,स्वच्छ्न्द विहार किया करता
मैं बंधा डोर से एकाकी ,ना कोई सगा ,साथिन ,साथी
बस बच्चे ,साहब या मेडम,है कभी प्यार से सहलाती
तू डाल गले में पट्टा और बंध कर तो देख चेन से तू
तब ही सच जान पायेगा ये ,है कितना सुखी,चैन से तू
मेडम जब लेती गोदी में ,दो पल वो सुख तो होता है
तुझ सा स्वच्छ्न्द विचरने को ,लेकिन मेरा मन रोता है
बेकार सभी सुख सुविधाएं,सच्चा सुख है आजादी का
मैं बदनसीब है गले बंधा,मेरे एक पट्टा चाँदी का
मैं खेल न सकता मित्रों संग ,ना हो सकता गुथ्थमगुत्था
एक गलियों वाले कुत्ते से ,बोला ये बंगले का कुत्ता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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