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बुधवार, 20 अप्रैल 2016

सब अपने में मस्त यहां

         सब अपने में मस्त यहां

नहीं किसी को,पड़ी किसी की ,सब अपने में मस्त यहां
अपने अपने मोबाइल पर ,चिपके ,रहते  व्यस्त   यहां
कई  रोजमर्रा की चीजें  ,रोज न मिलती मुश्किल से ,
बढ़ी हुई  मंहगाई  इतनी  ,हर कोई है   त्रस्त  यहां
सुबह उठे ,दफ्तर को भागे ,थके ,शाम को घर लौटे,
रोज रोज इस दिनचर्या का ,हर कोई  अभ्यस्त यहां
नकली हँसी ओढ़ कर सबको ,हमने जीते देखा है ,
पर अपनी अपनी चिंता से ,सब के सब है ग्रस्त यहां
काम धाम चाहे कम आये ,चमचागिरी में माहिर हो,
रहता उनके सर, साहब का ,सदा कृपा का हस्त यहां
बिगड़ी है क़ानून व्यवस्था ,अस्मत लुटती सड़कों पर ,
चौकीदार कर रहे चोरी ,चोर दे रहे  गश्त   यहां
युग बदला ,हम भी  बदलेंगे ,एक किरण आशा की है,
अच्छे दिन आने वाले है,यही सोच , आश्वस्त  यहां

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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