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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

सावन की बूँदा बांदी में

  सावन की बूँदा  बांदी  में

इस सावन की ,मन भावन की,प्यारी सी बूंदाबांदी में
मेह न मदिरा बरस रही है ,प्यारे मौसम बरसाती में बी
जल की बूँदें ,कुंतल से बह, गाल गुलाबी पर  ढलकेगी
कोमल ,मतवाले कपोल पर ,मादक सी मदिरा छलकेगी
प्यासे होठों से पी मधुरस ,अपनी प्यास बुझायेंगे  हम
भीग फुहारों में तेरे संग ,भीग प्रेमरस  जायेंगे हम
तेरे वसन ,भीग जब तेरे ,चन्दन से तन को चूमेंगे
देख नज़र से ,तेरा कंचन,हम भी ,पागल हो झूमेंगे
जाने क्या क्या,आस लगा कर ,रख्खी है  मन उन्मादी ने
इस सावन की ,मन भावन की,प्यारी सी बूंदाबांदी में

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

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