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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

सर्दी में दुबकी कवितायें


छुपा चंद्रमुख ,ओढ़े कम्बल ,कंचन बदन शाल में लिपटा 
ना लहराते खुले केश दल ,पूरा  तन आलस में  सिमटा 
तरस गए है दृग दर्शन को ,सौष्ठव लिए हुए उस तन के 
मुरझाये से ,दबे पड़े है , विकसित पुष्प ,सभी यौवन के 
बुझा बुझा सा लगता सूरज ,सभी प्रेरणा लुप्त हुई है 
सपने भी अब  शरमाते है ,और भावना  सुप्त हुई है 
सभी तरफ छा रहा धुंधलका ,डाला कोहरे ने डेरा है 
मन ना करता कुछ करने को ,ऐसा आलस ने  घेरा है 
आह ,वाष्प बन मुख से निकले,बातें नहीं,उबासी आती 
हुई पकड़ ऊँगली की ढीली ,कलम ठीक से लिख ना पाती 
ठिठुर गए उदगार,शब्द भी, सिहर सिहर आते है  बाहर 
 सर्दी में मेरी कविताये,दुबकी है  कम्बल के  अंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

डर और प्यार


जो विकराल ,भयंकर होते ,और दरिंदगी जो करते है 
या फिर भूत,पिशाच,निशाचर,इन सबसे हम सब डरते है 
बुरे काम से डर लगता है ,पापाचार  डराता हमको 
कभी कभी थप्पड़ से ज्यादा ,झूंठा प्यार डराता हमको 
माँ तो लेती पक्ष ,डराती है पर पापा की नाराजी 
दफ्तर में अफसर का गुस्सा ,या निचलों की मख्खनबाजी 
स्कूल में एक्ज़ाम डराता ,करना घर में काम डराता 
महबूबा का मीठा गुस्सा ,बदनामी का नाम डराता  
बुरी चीज ही हमे  डराये ,ऐसा ही ना होता हरदम 
कुछ प्यारी और अच्छी चीजों से भी डर कर रहते है हम  
परमपिता अच्छे है भगवन,पर हम उनसे भी डरते है 
देख रहे वो ,उनके डर से ,पाप कर्म कुछ कम करते है 
सबको अच्छी लगे मिठाई,आलू टिक्की,चाट पकोड़ी 
डाइबिटीज और केलोस्ट्राल के ,डर से हम खाते है थोड़ी 
इतनी अच्छी होती पत्नी, हर पति प्यार उसे करता है 
शेर भले ही कितना भी हो ,पर वो पत्नी से डरता है 
कभी बरसता ,हद से ज्यादा ,पत्नीजी का अगर प्यार है 
तो डर है निश्चित ही उस दिन ,पति होने वाला हलाल है 
बहुत अधिक दुख से डर लगता,बहुत अधिक सुख हमे डराता 
सचमुच बड़ा समझना मुश्किल,है डर और प्यार का  नाता 

घोटू  

बीते दिन

         
बीत गए दिन गठबंधन के 
अब तो लाले है चुम्बन के 
सभी पाँचसौ और हज़ारी ,
नोट बन्द है ,यौवन धन के 
ना उबाल है ना जूनून है 
एकदम ठंडा पड़ा खून है 
मात्र रह गया अस्थिपंजर ,
ऐसे हाल हुए इस तन  के 
मन का साथ नहीं देता तन 
सूखा सूखा सा हर मौसम 
रिमझिम होती थी बरसातें ,
बीते वो महीने सावन के 
बिगड़ी आदत जाए न छोड़ी 
इत  उत ताके ,नज़र निगोड़ी 
लेकिन तितली पास  न फटके ,
सूखे पुष्प देख  उपवन   के 
मन मसोस कर अब जीते है 
और ग़म  के आंसू  पीते   है
राधा,गोपी घास न   डाले ,
तट सूने है वृन्दावन  के 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सर्दी और बर्फ़बारी

         

उनने तन अपना ढका जब ,श्वेत ऊनी शाल से,
             लगा इस पहाड़ों पर बर्फ़बारी हो गयी     
बादलों ने चंद्रमा को क़ैद जैसे कर लिया ,
         हुस्न के दीदार पर भी ,पहरेदारी हो गयी 
जिनकी हर हरकत से मन में जगा करती हसरतें ,
                वो नज़र आते नहीं तो बेकरारी हो गयी  
हिलते डुलते जलजलों के सिलसिले अब रुक गए,
      दिलजले आशिक़ सी अब हालत हमारी हो गयी  
  
 'घोटू '      

पुराने नोटों की अंतर पीड़ा

    

एक वो भी जमाना था,हम सभी के थे दुलारे 
प्यार  करते  थे  हमें सब, चाहते बांहे पसारे 
झलक हल्की सी हमारी ,लुभाती सबका जिया थी 
छुपा दिल सा,साड़ियों में ,हमें रखती गृहणियां थी 
उनके पहलू में कभी बंध ,कभी ब्लाउज में दुबक कर 
बहुत हमने मौज मारी ,और उठाया मज़ा छक  कर 
वक़्त ने पर एक दिन में ,हुलिया  ऐसी बिगाड़ी 
एक पिन में हुई पंक्चर ,हेकड़ी सारी  हमारी 
मार ऐसी पड़ी हम पर ,जीने के लाले पड़े है 
कल तलक रंगीन थे हम,आजकल काले पड़े है 
हाँ,कभी हम नोट होते ,पांच सौ के और हज़ारी 
शान कल तक थी रईसी ,बन गए है अब भिखारी 
आज हम आंसू बहाते ,और दुखी है इसी गम से 
लोग लाइन में लगे है, छुड़ाने को पिंड  हम से 
पसीने और खून की हम ,कभी थे  गाढ़ी कमाई 
और बुरा जब वक़्त आया ,सभी ने  नज़रें  चुराई 
आदमी की जिंदगी में ,ऐसा भी है  समय  आता 
आप जिनसे प्यार करते ,तोड़ देते वही  नाता 
बात नोटों की नहीं है,हक़ीक़त यह जिंदगी की 
चवन्नी हो या हज़ारी,  बुरी गत होती सभी की 
जमाने की रीत है ये ,और ये ही सृष्टि क्रम है 
मैं,अहम्,अपना पराया,सब क्षणिक है और भ्रम है 
हाथ ले, यमपाश कोई, मिटाने  अस्तित्व आता 
साथ कुछ जाता नहीं है,सब यहीं पर छूट जाता 
चाहते सब नवागत को ,पुराने को भूल जाते 
व्यर्थ ही हम दुखी होकर ,हृदय को अपने जलाते  
इसलिए बेहतर यही है ,रखें ये संतोष  मन में 
हो गए है अब रिटायर ,कभी हम भी थे चलन में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

मटर के दानो सी मुस्कान

 

माँ ,जो सारा जीवन,
सात बच्चों के परिवार को ,
सँभालने में रही व्यस्त 
हो गयी काम की इतनी अभ्यस्त 
बुढापे में ,बिमारी के बाद ,
जब डॉक्टर ने कहा करने को विश्राम 
बच्चे ,काम नहीं करने देते ,
और उसका मन नहीं लगता 
बिना किये काम 
हर बार ,हर काम के लिए ,
हमेशा आगे बढ़ती है 
और मना करने पर ,
नाराज़ हो,लड़ती है 
सर्दियों में जब कभी कभी ,
मेथी या बथुवे की भाजी आती है 
तो वो उन्हें सुधार कर ,
बड़ा संतोष पाती है 
 परसों ,पत्नी जब पांच किलो, 
मटर ले आयी 
तो माँ मुस्कराई 
झपट कर मटर की थैली ली थाम 
बोली वो कम से कम ,कर ही सकती है ,
मटर छीलने का काम 
वो बड़ी  खुश थी ,यह सोच कर कि ,
घर के काम में उसका भी हाथ है 
उसने जब मटर की  फली छीली,
तो मटर की फली से झांकते हुए दाने ,
ऐसे नज़र आये जैसे वो मटर नहीं,
ख़ुशी छलकाते ,माँ के मुस्कराते दांत है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

तुम जियो हज़ारों साल


जब  आप जन्मदिन मनाते है    
लोग शुभकामनाये देते हुए ,
अक्सर ये गीत गाते है 
कि तुम जियो हज़ारों साल 
और हर साल के दिन हो पचास हज़ार 
आप अपने शुभचिंतकों का करते शुक्रिया है 
पर क्या आपने कभी गौर किया है 
कि गलती से भी ऊपरवाला ये भूल कर ले 
आपके दोस्तों की दुआ कबूल कर ले 
तो आपकी क्या हालत होगी 
हज़ारों साल की उम्र ,कितनी मुसीबत होगी 
पचास हज़ार दिन का सिर्फ एक साल भर 
होता है तीनसौ पेंसठ दिनों के ,
एक सौ सेतींस वर्षों के बराबर 
और ऐसे हज़ारों वर्ष जीने की कल्पना मात्र ही,
मन में सिहरन भर देती है 
बैचैन और परेशान कर देती है 
आज जब सत्तर या अस्सी तक की उम्र में ही,
शरीर शिथिल है ,बीमारियां घेरे है 
हमारे अपने ही ,पूछते नहीं,मुंह फेरे है 
हम उनके लिए बन जाते भार  है 
तो ऐसे हालात मे जीना ,कितना दुश्वार है
परेशानियां सहना है ,घुटना तिल तिल है 
अरे ऐसे जीवन का तो पचास हज़ार दिन वाला ,
एक साल भी जीना मुश्किल है 
जिसे शुभकामना समझ रहे आप है 
अरे इतने लम्बे जीवन की दुआ ,
वरदान नहीं  एक अभिशाप है 
हम तो बस ये चाहते है ,
जब तक जिये स्वस्थ रहें
खुश और मस्त रहे 
स्वाभिमान से रहे तने 
किसी पर बोझ न बने 
हमेशा छोटों का प्यार ,
और बड़ों का आशिर्वाद रहे बना 
बस जन्मदिन पर चाहिए ,
सब की ये शुभकामना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
  

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

नोटबंदी या अनुशासनपर्व


नोटबंदी  या अनुशासनपर्व

जब से आयी है ये नोटबन्दी
फिजूल खर्चों पर ,लग गयी है पाबन्दी
हम सबकी होती ,ऐसी ही आदत है
कि हमारे पास होती ,पैसों की जितनी भी सहूलियत है
हम उतना ही खर्च करते है खुले हाथ से
कभी मुफलिसी से,कभी शाही अंदाज से
पर जब से हुई है नोटबन्दी
पड़ने लगी है नए नोटों की तंगी
बैंकों के आगे ,लगने लगी है कतारें लम्बी
थोड़ा सा ही पैसा ,मुश्किल से हाथ आता है
जिसको जितना मिलता है,वो उसी से काम चलाता है
पैसों की तंगी ने एक काम बड़ा ठीक किया है
हमने सीमित साधनो से,घर चलाना सीख लिया है
अब हमें मालूम पड़ने लगा है ,भाव दाल और आटे का
डोमिनो का पिज़ा भूल ,स्वाद लेते है मूली के परांठे का
मजबूरी में ही सही ,लोगो की  समझदारी बढ़ गयी है
शादी की दावतों में,पकवानों की फेहरिश्त सिकुड़ गयी है
दिखावे और लोकलाज के बन्धन हट गए है
कई शादियों में तो बराती ,चाय और लड्डू  से ही निपट गए है
पत्नी की साड़ियों में   छुपा हुआ धन हो गया है उजागर
घर की आर्थिक स्थिति गयी है सुधर
भले ही बैंकों की कतारों में खड़े रहने का सितम हुआ है
पर हिसाब लगा कर देखो ,
पिछले माह घर का खर्च कितना कम हुआ है
भले ही हम हुए है थोड़े से परेशान
पर हमारे खर्चों पर लग गयी है लगाम
हालांकि मन को थोड़ी खली है
पर हमने मितव्ययिता सीख ली है
मोदीजी ,हमें आपके इस कठिन फैसले पर गर्व है
ये नोटबन्दी नहीं,   हमारे देश  और घर घर की ,
अर्थव्यवस्था का,अनुशासन पर्व है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 30 नवंबर 2016

असमंजस

 
असमंजस 

प्रेमिका ने प्रेमी से फोन पर कहा 
प्रियतम ,तुम्हारे बिन न जाता रहा 
मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ,
 तुम्हे दिलोजान से चाहती हूँ 
तुम्हारे हर कृत्य  में ,तुम्हारी ,
सहभागिनी होना चाहती हूँ 
इसलिए मेरे सनम 
मेरे साथ बाँट लो अपनी ख़ुशी और गम 
अगर तुम हंस रहे हो ,
तो अपनी थोड़ी सी मुस्कराहट देदो 
अगर उदास हो तो गमो की आहट दे दो 
अपने कुछ आंसू,मेरे गालों पर भी बहने दो
मुझे हमेशा अपना सहभागी रहने दो  
अगर कुछ खा रहे तो ,
उसका स्वाद ,मुझे भी चखादो 
अगर कुछ पी रहे तो थोड़ी ,
मुझे भी पिला दो 
हम दो जिस्म है मगर रहे एक दिल 
अपने हर काम में करलो मुझे शामिल 
प्रेमिका की बात सुन प्रेमी सकपकाया 
उसकी समझ में कुछ नहीं आया 
बोला यार ,मैं क्या बताऊँ,
बड़े असमंजस में पड़ा हूँ 
बताओ क्या करू,
इस समय मैं टॉयलेट में खड़ा हूँ 

घोटू 

हम भूल गये

                
                हम भूल गये  
                         
हो गए आधुनिक हम इतने,संस्कृती पुरानी भूल गए 
मिनरल वाटर के चक्कर में,गंगा का पानी  भूल  गए 
पिज़ा बर्गर पर दिल आया ,ठुकराया पुवे ,पकोड़ी को,
यूं पोपकोर्न से प्यार हुआ ,कि हम  गुड़धानी  भूल गए 
एकल बच्चे के  फैशन में, हम भूल गए  रक्षाबन्धन ,
वो भाई बहन का मधुर प्यार ,और छेड़ाखानी भूल गए 
वो रिश्ते चाचा ,भुआ के, हर एक को आज नसीब नहीं,
परिवारनियोजन के मारे , मौसी  और मामी भूल गए 
मोबाइल में उलझे  रहते,मिलते है तो बस 'हाय 'हेल्लो',
रिश्ते  नाते ,भाईचारा ,वो प्रीत  निभानी  भूल गए 
हुंटा ,अद्धा, ढईया ,पोना ,ये सभी पहाड़े ,पहाड़ हुए,
केल्क्युलेटर के चक्कर में ,वो गणित पुरानी भूल गए 
जीवन की क्रिया बदल गयी,बदलाव हुआ दिनचर्या में,
रातों जगते,दिन में सोते वो सुबह सुहानी भूल गए 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी माया ,ना कभी किसी के साथ गयी ,
बस चार दिनों की होती है, जीवन की कहानी भूल गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

मेरी कवितायें

 
मेरी कवितायें,
जलेबी की तरह ,
टेडी,मेड़ी ,अतुकांत है 
पर चख कर देखो,
इनमे कुछ बात है 
ये चासनी से भरी हुई है 
इनमे मिठास है
 
ये गोल गोल छंद नहीं,
रस में डूबे हुए ,गुलाबजामुन है 
जो एक नया स्वाद भर देंगे जीवन में  

जब भी जीवन में ,शीत  का मौसम सताये 
इन्हें गरम गरम पकोड़ियों की तरह ;
प्यार की चटनी के साथ खा लेना ,
बड़ी स्वादिष्ट लगेगी,मेरी कवितायें 

ये तो मन की विभिन्न भावनाओं की ,
मिली जुली भेलपुरी है 
बड़ी चटपटी और स्वाद से भरी है 

या इन्हें आलूबड़ा समझ कर ,
रोज रोज की ऑफिस और घर की 
भागदौड़ के पाव के बीच में खा लेना 
अपनी क्षुधा मिटा लेना 

ये तवे पर सिकती हुई ,आलूटिक्कीयाँ है ,
जिनकी सौंधी सौंधी खुशबू तुम्हे लुभाएगी 
ये गरम गरम और चटपटी ,
तुम्हे बहुत भायेगी 

ये गोलगप्पे की तरह ,फूली फूली लगती है 
पर बड़ी हलकी है 
इनमे थोड़ी सी खुशियां,
और थोड़ी सी परेशानियों का खट्टा मीठा पानी ,
भर कर के खाओगे 
बड़ी तृप्ति पाओगे 

ये कोकोकोला की तरह झागीली नहीं है ,
कि ढक्कन  खोल कर बोतल से पियो,
ये तो प्याऊ का पानी है ,
अपने हाथों की ओक से ,
अंजलि भर भर पीना 
मिटा देगी  तुम्हारी तृषणाये 
मेरी कवितायें   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हर दुःख का उपचार समय है


हृदयविदारक समाचार है जब से आया 
मुश्किल से भी ,कुछ ना खाया 
चाय हो या दूध,चपाती 
नीचे गले उतर ना पाती 
पिछले कुछ दिन ऐसे बीते 
यूं ही आंसू पीते पीते 
झल्ली गम की ,
बीच गले में एक बन गयी 
भूख थम गयी 
एसा सदमा
 हृदय में जमा 
हिचकी भर भर रोते जाते 
दुःख के आंसू सूख न पाते 
साथ समय के धीरे धीरे 
कम हो जाती मन की पीरें 
चलता गतिक्रम वही  पुराना 
खाना ,पीना,.हंसना ,गाना 
फिर से वही पुरानी लय है 
हर दुःख का उपचार समय है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई नहीं चाहता बंधना

 
























कोई नहीं चाहता बंधना ,परवारिक बन्धन में 
फटी जीन्स से फटे हुए से,रिश्ते है फैशन में 

छोड़ ओढ़नी गयी लाज का पहरा फैशन मारी 
अब शादी और त्योंहारों पर ही दिखती है साडी 
वो भी नाभि,कटि दर्शना ,बस नितंब पर अटकी 
अंग प्रदर्शित करती नारी, संस्कार  से  भटकी 
खुली खुली सी चोली  पहने ,पूरी पीठ दिखाए 
अर्धा स्तन का करे प्रदर्शन और उस पर इतराये 
ना आँखों में शरम हया है,ना घूंघट प्रचलन में 
कोई नहीं चाहता  बंधना परिवारिक बन्धन में 
चाचा,चाची ,ताऊ ताई ,रिश्ते सब  दूरी  के 
अब तो दादा दादी के भी रिश्ते मजबूरी के 
गली मोहल्ले,पास पड़ोसी ,रिश्ते हुए सफाया 
मैं और मेरी मुनिया में है अब संसार समाया 
ऐसी चली हवा पश्चिम की ,हम अपनों को भूले 
 पैसे चार कमाए क्या बस  गर्वित होकर फूले
हुए सेल्फिश,सेल्फी खींचें अहम भर गया मन में 
फटी जीन्स से,फटे हुए  से,रिश्ते  अब फैशन में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'







रविवार, 13 नवंबर 2016

मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं अब हूँ कंगाल बिचारी


मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं  अब हूँ कंगाल बिचारी 


मेरी कुछ भी खता नहीं थी ,फिर भी मुझको गया सताया 
बुरे वक़्त के लिए बचाया ,पैसा  कुछ भी  काम न आया 
बूँद बूँद कर बचत  करी थी,कभी इधर से ,कभी उधर से 
तनिक बचाई घर खर्चों से ,बिदा मिली कुछ माँ के घर से 
कुछ उपहार मिली भैया से ,जब उसको राखी बाँधी थी 
पति से छुपा रखी कुछ पूँजी ,लेकिन क्या मैं अपराधी थी 
नए पांच सौ और हज़ार के ,कडक नोट में बदल रखी थी 
वक़्त जरूरत काम आएगी ,अब तक सबसे रही ढकी थी 
आठ नवम्बर ,आठ  बजे  पर ,ऐसी  आयी  रात   घनेरी 
मोदीजी के एक कदम ने  ,सारी  पोल  खोल दी   मेरी 
मेरे सारे  अरमानो   पर,,वज्रपात  कुछ  बरपा    ऐसा 
सारा धन हो  गया उजागर , कागज मात्र  रह गया पैसा 
चोरी छुपे बचाये पैसे  ,गिनने की  वो ख़ुशी खो  गयी 
मालामाल हुआ करती थी  ,पल भर में  कंगाल हो गयी 
अब मैं ,मइके में जाकर के ,खुला खर्च  ना कर पाउंगी 
अब  बेटी को ,चुपके चुपके , गहने  नहीं दिला पाउंगी 
छोटी मोटी  हर जरुरत पर ,हाथ पसारूँगी ,पति आगे 
'सेल' लगी तो जा न पाऊँगी ,बिना पति से पैसा  मांगे 
भले देश हित में मोदीजी, तुमने  अच्छा कदम उठाया 
लेकिन बचत प्रिया गृहणी को  ,पैसे पैसे को तरसाया 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी मेरी ,बचत तो नहीं थी धन काला 
फिर क्यों इतनी बेदर्दी से  ,अलमारी से उसे निकाला 
बैंको की लम्बी लाइन में ,लग कर पड़ा जमा करवाना 
ज्यादा पैसे अगर हुए तो ,  देना  पड़  सकता  जुर्बाना  
पैसा था जब तलक गाँठ में ,तब तक थी गर्वीली,सबला 
मुझसी  सीधी सादी गृहणी, आज हो गयी ,फिर से अबला 
रूपये रूपये ,मोहताज हो गयी ,देखो कैसी है लाचारी  
मोदीजी ,तुम्हारी  मारी, अब मैं  हूँ   कंगाल  बिचारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

शुद्ध यदि जो भावना है


ह्रदय निर्मल ,शुद्ध यदि जो भावना है 
सफलता की पूर्ण  तब सम्भावना है 
खोट यदि ना जो तुम्हारे प्यार में हैं 
कलुषता कोई  नहीं  आचार  में  है
किसी का कोई बुरा सोचा    नहीं  है 
तुम्हारा व्यवहार भी ओछा नहीं  है 
मानसिकता में नहीं  संकीर्णता  है 
विचारों  में यदि  इन जो  जीर्णता है 
प्रयासों   में तुम्हारे , सच्ची लगन है 
सादगी है सोच में ,निःस्वार्थ  मन है 
लाख विपदाएं तुम्हारी राह रोके 
लोग  कितना ही सताएं  और टोके 
चाँद सूरज ,खुद करेंगे ,पथ प्रदर्शित 
करोगे तुम ,कीर्ती और यश सदा अर्जित 
प्रगति का पथ ,तुम्हारे ही हित बना है 
सफलता की पूर्ण तब सम्भावना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 





सेल्फी


आत्मनिर्भरता कहो या स्वार्थ 
आप कुछ भी निकालो अर्थ 
 पर सीधीसादी ,सच्ची है बात 
कि 'सेल्फी ' याने अपना हाथ,जगन्नाथ 
मनचाही मुद्रा ,ख़ुशी और मस्ती 
या साथ में हो कोई बड़ी हस्ती 
अपने मोबाइल से क्लिक करे  एक बार 
वो पल बन जाएंगे एक यादगार 

घोटू 
 

सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

प्रदूषण-बद से बदतर

प्रदूषण-बद से बदतर

कुछ खेत जले ,फैला धुंवा ,बढ़ गया प्रदूषण का स्तर
दिवाली की आतिशबाजी ,और वाहन का धुवा दिनभर
उस पर डकार खाये तुमने ,है चार परांठे मूली  के ,
निश्चित ही होने वाला है ,पॉल्यूशन अब ,बद से बदतर

घोटू
 

धुवाँ धुंवा आकाश हो गया

 

धुंवा धुंवा आकाश हो गया

कहीं किसी ने फसल काट कर,अपना सूखा खेत जलाया
आतिशबाजी  जला किसी ने ,दिवाली  त्योंहार  मनाया
हवा हताहत हुई इस तरह ,मुश्किल  लेना  सांस हो गया
                                           धुवा धुंवा आकाश हो गया
बूढ़े बाबा ,दमा ग्रसित थे ,बढ़ी सांस की  उन्हें  बिमारी
दम सा घुटने  लगा सभी का, हवा हो गयी इतनी भारी
जलने लगी किसी की आँखे ,कहीं हृदय  आघात हो गया
                                          धुंवा धुंवा आकाश हो गया
ऐसा घना धुंधलका छाया ,दिन में लगता शाम हो गयी
तारे सब हो गए नदारद , शुद्ध  हवा बदनाम  हो गयी
अपनी ही लापरवाही से ,अपनो को ही  त्रास हो गया
                                     धुंवा धुंवा आकाश हो गया
हवा हुई इतनी  जहरीली  ,घर घर फ़ैल गयी बिमारी
छेड़छाड़ करना प्रकृति से ,सचमुच हमें पड़ रहा भारी
ऐसी आग लगी मौसम में ,कितना बड़ा विनाश हो गया
                                         धुंवा धुंवा आकाश हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

जादूगर सैंया

पहले कहते चख लेने दो ,
फिर कहते  हो छक लेने दो,
ऊँगली पकड़,पकड़ना पोंची ,
            कला कोई ये तुमसे  सीखे 
कभी मुझे ला देते जेवर ,
कभी कलाकन्द,मीठे घेवर ,
पल में मुझे पटा लेते हो ,
             क्या दिखलाऊँ तेवर तीखे 
तुम रसिया हो,मन बसिया हो,
मेरे प्रियतम और पिया हो ,
मेरा जिया चुराया तुमने ,
            तुम मालिक हो मेरे जी के 
तुम बिन साजन,ना लगता मन,
रहे तड़फता मेरा जीवन 
तुम्हारे बन्धन में बंध कर,
            सारे बन्धन  लगते फीके 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

दो पन्नो से ज्यादा ...

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???




दो बहने


एक हरी नाजुक पत्ती थी ,
खुली हवा में इठलाती थी 
नीलगिरी के पर्वत पर वह ,
मुस्काती थी,इतराती थी 
हराभरा सुन्दर प्यारा था ,
उसका रूप बड़ा मतवाला 
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हो गया काला 
उस काया में अरमानो का ,
अब भी रक्त जमा लगता है 
जो कि गरम पानी में घुलमिल,
चाय का प्याला बनता है 
उसका स्वाद बड़ा प्यारा है,
रोज मोहती है सबका मन 
औरो को सुख देना ,उसने,
बना लिया है अपना जीवन 
और उसकी एक और बहन थी,
हरी भरी ,नाज़ुक ,सुन्दर सी 
लोग उसे मेंहदी कहते थे ,
पाने प्यार किसी का तरसी 
उसकी भी तक़दीर वही थी ,
गयी इश्क़ में वो भी मारी 
प्यार उसे भी रास न आया ,
यूं ही कुचली गयी बिचारी 
वो टूटी ,उसका दिल टूटा ,
हाल हुआ यों दीवानो सा 
गुमसुम पिसी पिसी काया में,
रक्त  छुपा है अरमानो का 
उसकी दबी कामना अब भी ,
साथ किसी का जब पाती है 
गोर हाथों में रच कर के ,
रंग गुलाबी ले आती है  
हरी भरी इन दो बहनो  को,
साथी मिल ना पाया मन का  
तो औरों को सुख देना ही ,
लक्ष्य बना इनके जीवन का 
 परम सनेही ,दोनों इनका ,
संग सभी को सुख पहुंचाता 
एक चुस्ती फुर्ती देती है ,
स्वाद रोज जिसका मन भाता 
और दूसरी ,हाथों में  सज,
सुंदरता की शान बढ़ाती 
शादी और सभी पर्वों पर ,
हाथ सुहागन के रच जाती 
इनका जो जीवन अपूर्ण था ,
उसे पूर्ण ये कर लेती है 
होठों या  हाथों पर  लग कर ,
मन में खुशियां भर लेती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैंने उमर काट दी बाकी


मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 
अगर खुदी में रहता खोया 
तनहाई  में करता  रोया 
डूबा रह  पिछली यादों में 
यूं ही घुटता  ,अवसादों में 
अपना सब सुख चैन गमाता 
बस,अपने मन को तड़फाता 
मैंने सोचा ,इससे बेहतर 
हालातों से समझौता कर 
तू जीवन का सुख ले हर पल,
बिना किये कोई गुस्ताखी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताकाझांकी 
मैंने अपना बदल नज़रिया 
बड़े चैन का जीवन जिया 
खुश रह बाकी उमर बिताई 
हर बुराई में थी अच्छाई 
फिर कुछ सच्चे दोस्त मिल गए 
बीराने  में पुष्प  खिल  गए 
उनके संग में सुख दुःख बांटे 
दूर  किये  जीवन सन्नाटे 
सबसे हिलमिल प्रेम जताया ,
बिना किये कुछ टोकाटाकी 
मैंने उमर काट दी बाकी 
इधर उधर कर ताका झांकी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलते फैशन


पहले हमारे पेंट ,
जब कभी गलती से फट जाते थे 
हम उसे रफू करवा कर ,काम में लाते थे 
जमाना कितना बदल गया है 
आजकल फटी जीन्स पहनने का ,
फैशन चल गया है 
वैसे ही ,पहले रिश्ते ,
यदि गलतफहमियों से फट जाते थे 
तो आपस में समझौते से ,रफू किये जाते थे 
लोग ,एक दूसरे का,
उमर भर साथ निभाते थे 
आजकल फटी जीन्स की तरह ही 
चल रहा है ,फटे हुए रिश्तों का चलन 
हो रहा  है परिवारों का विभाजन 
और यही बन गया है आज का फैशन 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

करवा चौथ पर



उनने करवा चौथ मनाई ,पूरे दिन तक व्रत में रह कर 
करी चाह ,पति दीर्घायु हो ,तॄष्णा और क्षुधा सह सह कर 
उनका चन्दा जैसा मुखड़ा ,कुम्हला गया ,शाम होने तक,
चंद्रोदय के इन्तजार में ,बेकल दिखती थी रह रह कर 
चाँद उगा,छलनी से देखा मेरा मुख,फिर पीया  पानी,
उनकी मुरझाई आँखों से ,प्यार उमड़ता देखा बह कर 
तप उनका,मैंने फल पाया ,ऐसा अपना स्वार्थ दिखाया ,
खुद की लंबी उमर मांग ली ,सदा सुहागन रहना,कह कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

करो संगत जवानों की

  

बुढापे में अगर तुमको,जोश जो भरना है जी में,
तरीका सबसे  अच्छा है ,करो सगत जवानों की 
रहेगी मौज और मस्ती,उंगलिया सब की सब घी में,
तुम्हारे चेहरे पर छा जायेगी ,रंगत  जवानों  की 
करेगी बात हंस हंस कर  ,हसीना नाज़नीं  तुमसे,
भले अंकल पुकारेगी ,तो इसमें हर्ज ही क्या है,
तुम्हारी सोच बदलेगी,जवां समझोगे तुम खुद को,
रखेगी,सजसंवर कर 'फिट',तम्हे सोहबत जवानों की 
चढ़े परवान पर फिर से ,तुम्हारा जोश और जज्बा ,
तुम्हारे तन की रग रग में,जवानी फिर से दौड़ेगी ,
सफेदी सर की तुम्हारे,हो काली ,लहलहायेगी,
लौट फिर तुम में आएगी,वही हिम्मत जवानों की 
उमर के फासले की जब झिझक मिट जायेगी तो फिर,
तुम्हारे अनुभवों  का लाभ ,पायेगी नयी  पीढ़ी ,
कभी तुम उनसे सीखोगे,कभी वो तुमसे सीखेंगे ,
तुम्हारा दिल भी खुश होगा ,यूं पा उल्फत जवानों की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापा-एक सोच


जवानी  में तो  यूं  ही, सुहाना  संसार  होता है 
उमर के साथ जो बढ़ता ,वो सच्चा प्यार होता है 
बुढापा कुछ नहीं ,एक सोच है ,इसको बदल डालो ,
पुराना जितना , उतना  चटपटा  अचार होता है 
न चिता काम की,फुरसत ही फुरसत ,मौज मस्ती है,
यही तो वो उमर है ,जब चमन  ,गुलजार होता है 
ताउमर ,काम कर मधुमख्खियों सा,भरा जो छत्ता ,
बची जो शहद ,चखने का ,यही त्योंहार होता है 
अपनी तन्हाई का रावण जला दो,मिलके यारों से,
जला दीये दिवाली के,दूर अन्धकार होता है 
प्रभु में लीन होने से, पूर्व का पर्व  ये  सुन्दर,
हमारी जिंदगी में  ,सिर्फ बस एक बार होता है 
यूं तो दिलफेंक कितने ही ,दिखाते दिलवरी अपनी,
निभाता साथ जीवन भर ,वही दिलदार होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

नवरात्र में


नवरात्र में 
पत्नी के हाथ में 
जब दो दो डंडे नज़र आये 
तो घोटू कवि  घबराये 
और बन कर बड़े भोले 
अपनी पत्नीजी से बोले 
देवी ,जो भी भड़ास हो मन में 
निकाल लो इन नौ  दिन में
जितने चाहे डंडे बजा लो 
और पूरा जी भर के मज़ा लो  
पर इन नौ दिनों के बाद 
करना पडेगा इन डडों का त्याग 
क्योंकि तुम्हारे हाथों में जब होते है डंडे 
होंश मेरे ,पड़ जाते है ठन्डे 
इसलिए ये बात मै स्पष्ट कहना चाहता हूँ 
बाकी दिन मैं शांति के साथ रहना चाहता हूँ 
बात सुन मेरी भड़क गयी पत्नी 
और दोनों हाथों में ,डंडे ले तनी 
बोली लो ,अभी मिटाती हूँ तुम्हारे मन की भ्रान्ति 
पर ये तो बतलाओ ,कौन है ये कलमुंही शान्ति 

घोटू 

रविवार, 9 अक्टूबर 2016

चीनी सालों होश में आओ....

चीनी सालों होश में आओ वर्ना होश में ला देंगे
तेरी माँ की माँ को भी हम नानी याद दिला देंगे

गया ज़माना बात-बात पर हमको आँख दिखाते थे
और हिन्दुस्तानी हम सीधे सादे चुपचाप रह जाते थे

अब तो आँख दिखा के देखो सीधे आँख फोड़ देंगे
अग्नि पृथ्वी सारी मिसाइलें बीजिंग तक घुसेड देंगे

छोडो अरुणांचल-सिक्किम पर घडी-घडी दावा करना
जब देखो अपने धन-बल का रोज़ - रोज़ हौवा करना

अच्छा होगा इज्ज़त से हिमालय के उस पार ही रहना
अच्छा होगा अपनी छोटी सी चार फुटी औकात में रहना

वर्ना यहीं से बैठे - बैठे हम खोपड़ी तुम्हारी खोल देंगे
तुम चीनियों को हम शरबत जैसा पानी में घोल देंगे

इतराते हो जिस दीवार पे मिनटों में ध्वस्त हो जायेगी
हिरोशिमा-नागासाकी से भी भयानक तबाही हो जायेगी

पूरी दुनिया में अब भारत की शान का परचम लहराता है
बाप तुम्हारा अमरीका भी अब यहाँ आके दम हिलाता है

ताकतवर होने पर भी हम छोटे देशों को नहीं डराते हैं
शांतिप्रियता और भाईचारे के लिए हम "चर्चित" कहलाते हैं

- विशाल चर्चित

शनिवार, 24 सितंबर 2016

दीवान की दीवानगी


एक गोकुल था जहाँ कान्हा बजाता बांसुरी,
निकल कर के घर से आती,भागी भागी गोपियाँ 
यहाँ भी आते निकल ,दीवाने सब व्यायाम के ,
सवेरे दीवानजी की,बजती है जब  सीटियां 
फर्क ये है कि वहां पर ,वो रचाते रास थे ,
और यहाँ  होता  सवेरे ,योग और व्यायाम है 
वहां जुटती गोपियाँ थी,यहाँ सीनियर सिटिज़न ,
दीवान की दीवानगी का ,ये सुखद अंजाम है 

घोटू 

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

प्रियतमा तुम ,मै पिया हूँ


गीत मै  हूँ ,रागिनी तुम ,
भाव मै हूँ,भंगिमा  तुम 
साज मै ,संगीत हो तुम,
चाँद मै हूँ,पूर्णिमा  तुम 
राह मै हूँ,तुम हो मंजिल,
नाव मै हूँ,तुम हो साहिल
मै अगर तन,प्राण तुम हो,
तुम हो धड़कन ,मैं अगर दिल 
मैं हूँ ऊँगली ,अंगूठी तुम,
मै हूँ चूड़ी ,तुम खनक हो 
वृक्ष हूँ मैं , छाँव हो तुम ,
फूल हूँ मै ,तुम महक हो 
सूर्य हूँ मैं ,तुम उषा हो,
मैं हूँ बदली,नीर हो तुम 
मैं हूँ मजनू,तुम हो लैला,
मै हूँ रांझा,हीर हो तुम 
मै  क्षुधा हूँ ,तुम हो भोजन ,
तुम्हो पानी,प्यास हूँ मै 
तुम ख़ुशी,आल्हाद हूँ मै ,
आस तुम,विश्वास हूँ मै 
तुम हो नदिया,मै समंदर,
प्रेरणा तुम,कर्म हूँ मै 
दान तुम,संकल्प हूँ मै ,
आस्था तुम,धर्म हूं मै 
यज्ञ हो तुम,आहुति मै ,
तुम हो बाती ,मै दिया हूँ 
एक दूजे में बसे हम,
प्रियतमा तुम,मैं पिया हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आस मत दो

आस मत दो

गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो
मिलन का सुख यदि मुझे दे नहीं सकते ,
तो जुदाई का मुझे तुम त्रास मत दो
है अलग यदि रास्ते ,मेरे तुम्हारे ,
इस सफर में संग ना चल पाएंगे हम
मोड़ शायद कोई तो ऐसा मिलेगा ,
जहाँ फिर से अचानक टकराएंगे हम
जानता हूँ ,फूल तो दोगे  नहीं तुम,
चुभे मन को ,कोई ऐसी फांस मत दो
गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो
लाख हम चाहें ,करें कोशिश कितनी,
मेल लेकिन हर किसी से हों न  पाता
अड़चने आ रोकती पथ,मिल न पाते,
यह मिलन का योग लिखता है विधाता
बता कर मजबूरियां ,मत सांत्वना दो,
मिलेंगे अगले जनम में,आस मत दो
गर मुझे अपना बना सकते नहीं तुम ,
तो परायेपन का भी अहसास मत दो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

हम पुलिस है

जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर 
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है 
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

हम पुलिस है


जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

रविवार, 18 सितंबर 2016

पश्चाताप

पश्चाताप

मैंने गर्वोन्वित हो सबको किया तिरस्कृत ,
     मेरे माँ और बाप,बहन भाई थे अच्छे
जैसा मैंने किया ,मिला मुझको भी वैसा ,
     मुझको नहीं पूछते ,बिलकुल,मेरे बच्चे
मैंने कितने मन्दिर और देवता पूजे ,
      मातृदेवता,पितृदेवता भूला  गया मैं
वो जो हरदम ,मेरे आंसू रहे पोंछते,
      उनकी धुंधलाई आँखों को रुला गया मै
तीर्थयात्राएं की ,अन्नक्षेत्र खुलवाये ,
     जगह जगह पर मैंने करवाये भंडारे
लेकिन घर के एक कोने में गुमसुम बैठे ,
    जो मिल जाता ,खा लेते ,माँ बाप बिचारे
दीनो को कम्बल बंटवा ,फोटो खिंचवाए ,
     फटी रजाई ,माँ की लेकिन बदल न पाया
सच तो ये है ,मैंने जैसा ,जो बोया था ,
      आज बुढापे में,वैसा ही फल है पाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चन्दन और पानी

चन्दन और पानी

तुमने अपने मन जीवन में ,
जबसे मुझे कर लिया शामिल
जैसे चन्दन की लकड़ी को,
गंगाजल का साथ गया मिल
कभी चढूं विष्णु चरणों पर
कभी चढूं शिव के मस्तक पर
अपनेजीवन करू समर्पित,
प्रभु पूजन में ,घिस घिस,तिल तिल 
सुखद सुरभि  मै फैलाऊंगा
शीतलता ,तन पर  लाऊंगा
औरों को सुख देना ही तो,
मेरा मकसद,मेरी मंजिल

घोटू

हमारी धृष्टता

हमारी धृष्टता

बड़ी अजीब होती है आदमी की प्रवत्तियाँ
वह कभी भी ,अपनी घरवाली से सन्तुष्ट होता,
उसे सदा ललचाती ,औरों की स्त्रियां
उसके लालच की पराकाष्टा ,
तब स्पष्ट नज़र आती है
जब वह मन्दिर में जा ,
देवताओं को पूजता है
वहाँ पर भी ,पराई स्त्री का ,
लालच ही उसे सूझता है
गणेशजी को मोदक चढ़ा ,
उनके गले में फूल की माला टांगता है
और बदले में उनसे उनकी पत्नी,
रिद्धि और सिद्धि माँगता है
भगवान विष्णु के आराधन में ,
विष्णु सहस्त्रनाम सुमरता है
और उनसे उनकी पत्नी ,
लक्ष्मी जी की याचना करता है
करता है शिवजी की भक्ति
और मांगता हूँ उनसे उनकी शक्ति
आपको कैसा लगेगा ,
सच सच बतलाइये आप
आपके सामने ही कोई आपकी ,
पत्नी या प्रेमिका का करे जाप
पर ये बेझिझक ,कृष्ण के सामने ही ,
कृष्ण के मन्दिर में जपता  है 'राधे राधे'
किसी और की पत्नी की चाहत ,
कोई अच्छी बात नहीं है ,
ये कोई उसको समझा दे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बच्चों के संस्कार

बच्चों के संस्कार

सूरज को हो सकता ,शनिदेव सा बेटा ,
    ऋषि की संताने भी राक्षस हो सकती है
और हिरणकश्यप सुत ,प्रहलाद हो सकता ,
   बाप के दुश्मन की ,जो करता  भक्ति  है
आदम के कुछ बेटे ,बन जाते है गांधी ,
    और बिगड़ जाते कुछ ,बन जाते बगदादी
बच्चों को संस्कार ,कब ,कैसे मिलजाएं,
     कोई संत बन जाता और कोई अपराधी
कौनसी संताने ,कब कैसी निकलेगी ,
    नहीं कोई अंदाजा ,इसका कर सकता है
कभी जन्म राशि का ,लालन और पालन का ,
     शिक्षा और संगत का ,बड़ा असर पड़ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

श्री गणेश उचावः

श्री गणेश उचावः

एक रिटायर हुए सज्जन
कर रहे थे गणपति बप्पा का आराधन
'हे बप्पा ,मै अब हो रहा हूँ रिटायर
अपनी संतानो पर रहूंगा निर्भर
तू उन्हें इतनी सदबुद्धि दे
कि वो अपने माँ बाप का ख्याल रखे
गणपति बप्पा बोले वत्स ,
ये संसार का नियम सदा से चला आता है
ज्यादा दिनों तक किसी का रहना ,
किसी को भी नहीं सुहाता है
तुम्ही मुझे बप्पा बप्पा कह कर
बड़े प्रेम से पूजते हो पर
डेढ़ दिन या तीन दिन ,
या ज्यादा से ज्यादा दस दिन में
मुझे विसर्जित देते हो कर
माँ का भी, नवरात्रों में ,
नौ दिन तक ही करते हो पूजन
और फिर कर देती हो ,
उसका भी विसर्जन
तो जब हम देवताओं के साथ ,
आदमी का ऐसा  व्यवहार है
तो ज्यादा दिन टिकने पर ,
अगर होता तुम्हारा तिरस्कार है
तो तुम्हे इसके लिए रहना होगा तैयार
क्योंकि बड़ा प्रेक्टिकल होता है ये संसार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 14 सितंबर 2016

जलवे -फैशन के

        जलवे -फैशन के

 चूनर दुपट्टा भई ,दिखती है कहीं कहीं,
 जोवन को ढकती नहीं ,काँधे पर लटकती है
घूंघट भी घट घट के,लुप्त हुआ मस्तक से ,
लजीली जो नज़रें थी,  इत उत  भटकती  है
घाघरा घना घना ,अब मिनी स्कर्ट बना ,
खुली खुली टांगो से ,शरम  हया  घटती  है
कुर्ती और ब्लाउज अब ,बांह हीन सब के सब ,
फैशन की कैंची से ,सब चीजें  कटती  है
२   
पीठ के प्रदर्शन का,चला ऐसा  फैशन है ,
खुली पीठ ,लज्जा के बन्धन को तोडा है
सिमटा सा सकुचाया ,गला भला ब्लाउज का,
फैशन के चक्कर में,हुआ बहुत चौड़ा  है
चोली की पट्टी अब ,खुले आम दिखती सब ,
झुकने पर दिखलाता ,यौवन भी थोड़ा है
सत्तर प्रतिशत जल तन में ,उतना ही खुला बदन
फैशन के जलवों ने , कहीं का न छोड़ा  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

रिटर्न गिफ्ट

रिटर्न गिफ्ट

मेरे प्रिय श्रीमान
आप अक्सर कहते है ,
कि मैंने पिछले जनम में ,
किये थे मोती  दान
तभी इस जन्म में ,आप जैसा ,
प्यार करने वाला पति पाया है
आपका ये कथन ,निश्चित ही सच होगा ,
पर उन मोतियों के बदले ,
रिटर्न गिफ्ट देने का ,मौका अब आया है
आप उन मोतियों के बदले ,
इस जन्म मे मोतियों के आभूषणों का ,
उपहार दे दो
मुझे खुशियों का संसार  दे  दो
प्रियतम , यदि इस जन्म में ,
आप मुझ पर मोती लुटाएंगे
तो मुझे विश्वास है कि अगले जन्म में भी,
आप मुझको ही , पत्नी के रूप में पायेगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 3 सितंबर 2016

अवमूल्यन

अवमूल्यन

अपने जमाने में ,
मात्र पांच सौ रूपये महीने की पगार से ,
अपने पूरे परिवार को पालनेवाला पिता ,
 अपने बेटे के साथ
पांच सितारा होटल में डिनर के बाद
जब वेटर को पांच सौ रूपये की ,
टिप देते हुए देखता है 
तो शंशोपज में पड़  जाता है कि ,
अपने बेटे की सम्पन्नता पर अभिमान करे
या अपने अवमूल्यन का करे अहसास

घोटू

अंतिम पीढ़ी

अंतिम पीढ़ी

प्रियजन ,
हम हैं ,मानव प्रजाति के ,
वो लुप्तप्रायः होते हुए संस्करण
जिन्होंने बचपन में झेला है ,
अपनी पिछली पीढ़ी का कठोर,
अनुशासन और बन्धन
और अब झेल रहे है ,अगली पीढ़ी के ,
व्यंगबाण और प्रताड़न
हमारी पीढ़ी के ,
बस ,अब भग्नावशेष ही पड़े है
और हम अब,
विलुप्त होने की कगार पर खड़े है

घोटू

स्वागत है आहान तुम्हारा

    स्वागत है आहान तुम्हारा

तुम्हारी प्यारी किलकारी ,गुंजा रही घर
तुमने आ आहान ,हृदय,आल्हाद दिया भर
देख तुम्हारी क्रीड़ाएं ,खुश है घर सारा
परिवार में ,स्वागत है ,आहान ,तुम्हारा
इस बाहेती परिवार की नवआकृति तुम
अक्षय और तृप्ती की ,उत्कृष्ट कृति  तुम
तुम्हारी चंचल क्रीड़ाएं ,मोह रही मन
मूल तुम्हारा भारत में ,पर हो अमरीकन
तुमने आकर ,घर भर में खुशियां फैलादी
बना दिया ,प्यारी रेणु अम्मा को दादी
हम सब खुश है,मन में खुशियां इतनी ज्यादा
पुलकित रहते ,तुम्हारे ,आध्यात्मिक दादा
सुना आजकल ,क्लिनिक से जल्दी घर आते
खुश है इतने ,दो रोटी है ज्यादा खाते
देख सुखद परिणाम ,ब्याह का,प्रेरित होकर
शायद तुम्हारे चाचू भी ,ले शादी कर
तुम दिल्ली में आये ,तुमने रौनक ला दी
भुवा दादियों को सोने की चेन दिलादी
देते आशिर्वाद सभी हम ,अंतरतर से
जग के सब सुख तुम्हारी झोली में बरसे
बढे बनो,सबके जीवन में खुशियां भर दो
 परिवार  का नाम और भी रोशन करदो
रहो खेलते ,खुशियों से ,यूं ही जीवन भर
तुमने आ आहान ,ह्रदय आल्हाद दिया भर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

एक सच ये भी

        एक सच ये भी

भले ही इन इमारतों की बढ़ती हुई ऊंचाई ने ,
मुझकोमेरे अदनेपन का अहसास करवाया है
और इन अट्टालिकाओं ने ऊंचा उठ कर के ,
सुबह सुबह की मेरी धूप को भी खाया  है
ये सच है कि मेरा मुकाम उनसे नीचा है ,
और वो ऊंचे से महलों में वास करते है
मगर मैं उनसे सर उठा के बात करता हूँ
और वो मुझसे सर झुका के बात करते है ,
 
२ 

सुना है आजकल वो बन गए है शुगरमिल ,
डाइबिटीज है, काफी शुगर बनाते है
मगर वो हो गए कंजूस इस कदर से है,
जरा भी बोली मे ,मिठास नहीं लाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

कब आएगी ?

        कब आएगी ?

लेटे लेटे ,मैं तो करता यूं ही प्रतीक्षा,
किन्तु नींद को जब आना है ,तब आएगी

सूरज अस्त हो गया ,तारे नज़र आ रहे ,
धीरे धीरे पसर रही रजनी  काली है
कृष्णपक्ष का चाँद दे रहा है संदेसा ,
रात अमावस की जल्दी आनेवाली है
मौन और स्तब्ध ,दिशाएँ सब की सब है
गहन तिमिर है और सब तरफ सन्नाहट है
धक् धक् करती धड़कन के स्वर ऐसे लगते ,
जैसे कोई के  पदचापों की  आहट  है
मैं बेचैन बहुत हूँ,बाहुपाश में लेकर ,
कब वो मेरी आंखों में आ बस जायेगी
लेटे लेटे मैं तो करता यूं ही प्रतीक्षा ,
किन्तु नींद तो जब आना है तब आएगी

यूं ही मौन ,अकेला ,निश्चल पड़ा हुआ हूँ,
मन्द हवा के झोंकों सी आती है यादे 
जीवन भर के कितने ही  खट्टे मीठे पल ,
कुछ यौवन के प्यारे से वो पल उन्मादे
बार बार पलकें झपका कर कोशिश करता ,
भूल जाऊं,पर रह रह कर वो तड़फाते है
करवट लेता हूँ तो कुछ ऐसा लगता है ,
बिस्तर में कुछ कांटे है ,चुभ चुभ जाते है
कब वह ठगिनी ,चुपके से आकर ,सहलाकर ,
मेरी पलको को,मेरा मन बहलाएगी
लेटे लेटे ,मैं तो करता ,यूं ही प्रतीक्षा,
किन्तु नींद को जब आना है ,तब आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

बदलती परम्पराएं

       बदलती परम्पराएं

मेरे देश को,जाने नज़र लगादी किसने
टूट रहे परिवार ,लगे है रिश्ते ,रिसने
आयी पश्चिम से जबसे ये हवा नयी है
परिवार की ,परंपराएं ,बदल गई   है
अच्छे अच्छे संस्कार ,तब पाते थे हम
मातपिता औरगुरु को शीश नमाते थे हम
वह सुन्दर परिवेश,बड़ा सुखमय प्यारा था
पूरे गाँव ,मोहल्ले में , भाईचारा  था
मिलजुल करके ,सब सारे त्योंहार मनाते
एक  दूसरे के सुख दुःख में हाथ बंटाते
पर अब रिश्ते ,गुब्बारों से फूट रहे है
परिवार,तिनके तिनके हो,टूट रहे है
इतना अधिक विषैला हुआ वायुमण्डल है
खिला हुआ उपवन ,बन रहा ,मरुस्थल  है
परम्परागत सभी मान्यता नष्ट हो रही
नवपीढ़ी की सदबुद्धि है भ्रष्ट हो रही
बिगड़ रहा माहौल ,इस तरह है तूफानी
बात ,बाप की नहीं मानता ,बेटा ज्ञानी
उसका बेटा  ,परम्परा जब ये जानेगा
तो फिर उसकी बात भला वो क्यों मानेगा
क्षतविक्षत परिवार इस तरह हो जायेगे
क्या निज संस्कृति को हम कभी बचा पाएंगे ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

'लिव इन रिलेशनशिप '

'लिव इन रिलेशनशिप '

ना तुम लैला ,ना मै मजनू ,
ना तुम शीरी,मै  फरहाद
मंहगाई में जीना मुश्किल,
इसीलिये हम रहते साथ
'लिव इन रिलेशनशिप'याने कि ,
रिश्ता संग संग रहने का
एक दूजे संग ,हाथ बटा कर,
सुख दुःख  सारे सहने का
यूं भी लड़की ,रहे अकेली,
तो जीना अति मुश्किल है
बहुत भेड़िये ,घूमा करते ,
जिनकी नीयत कातिल है
इनसे बचने का ये भी ,
आसान तरीका लगता है
एकाकीपन से बच जाते ,
और खर्चा भी बंटता  है
लड़का वर्किंग,लड़की वर्किंग,
थके हुए जब घर आते
एक दूसरे का थोड़ा सा ,
साथ,सहारा पा जाते
कई बार यूं संग संग रहना,
शौक नहीं,मजबूरी है 
यूं भी परख ,एक दूजे की,
करना बहुत जरूरी है
यह तो एक रिहर्सल सी है,
आने वाले जीवन की
आपस की 'अंडरस्टेंडिग '
और मिल जाने की,मन की 
ऐसे साथी ,समझ सके जो ,
एक दूसरे के जज्बात
आपस में यदि,दिल मिल जाते,
तो फिर बन जाती है बात
घरवाले,कोई के पल्ले,
बांधे,इससे ये अच्छा
ऐसा जीवन साथी ढूंढो ,
प्यार करे तुमसे सच्चा
कई बार कुछ बातें होती,
जो करवाते है  हालात
मंहगाई में जीना मुश्किल ,
इसीलिये हम रहते साथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 24 अगस्त 2016

वह सुबह कभी तो आएगी

      वह सुबह कभी तो आएगी

कोई भी आदमी ,सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता ,
गलतियां हर एक से हुआ करती है
पर जो काम किया करते है ,
उन्ही से तो होती गलती है
कमी, किसमे नहीं होती,
कौन शतप्रतिशत नम्बर पाता है
पर साठ प्रतिशत से अधिक नंबर पानेवाला ,
भी 'फर्स्ट क्लास'कहलाता है
अल्लाह मियां भी कभी कभी गलती कर देता है
किसी किसी को पांच की जगह ,
छह उँगलियाँ दे देता है
 गलतियां निकालना बड़ा सरल होता है,
ये बात जग जाहिर है
और अकर्मण्य ,जो खुद कुछ नहीं करते,
दूसरे  गलती निकालने में ,होते माहिर है
आपको ,अपनी की हुई गलतियां,नज़र नहीं आती,
जब तक कि कोई आलोचक न हो
पर वो आलोचनाएं ,सुधारक नहीं होती है ,
 जो स्वस्थ न हो 
और पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो
ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान ही मत दो,
वरना पछतायेंगे
कीचड़ में पत्थर फेंकोगे तो
छींटे आप पर ही आएंगे
अगर कोई रिएक्ट नहीं करेगा ,
तो वो अपने आप ही चुप हो जाएंगे
केंकड़ों की तरह ,एक दुसरे की टांग खींच,
किसी को भी ,गड्ढे से निकलने से रोकना ,
गलत है
कोई आगे बढ़ना चाहता है ,
तो उसकी राह में रोड़े अटका कर ,
आगे न बढ़ने देना  गलत है
प्रगति  को गति  तब  मिलती है,
जब सब मिल कर ,देश को आगे धकेले
कोई भी चना ,भाड़ नहीं फोड़ सकता,अकेले
आओ ,हम सब एक जुट होकर ,
देश को प्रगतिपथ पर बढ़ा दे
वैमनस्यता की कुछ लकीरे ,
जो जाने अनजाने खिंच गयी है ,
 प्यार के 'इरेजर'से उन्हें मिटा दे
भाईचारे की फसल को ,
अगर सब मिल कर ,प्यार से सींचेंगे ,
तभी तो समृद्धि की फसल लहलहायेगी
वह सुबह कभी तो आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

वह सुबह तो आएगी

      वह सुबह तो आएगी

कोई भी आदमी ,सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता ,
गलतियां हर एक से हुआ करती है
पर जो काम किया करते है ,
उन्ही से तो होती गलती है
कमी, किसमे नहीं होती,
कौन शतप्रतिशत नम्बर पाता है
पर साठ प्रतिशत से अधिक नंबर पानेवाला ,
भी 'फर्स्ट क्लास'कहलाता है
अल्लाह मियां भी कभी कभी गलती कर देता है
किसी किसी को पांच की जगह ,
छह उँगलियाँ दे देता है
 गलतियां निकालना बड़ा सरल होता है,
ये बात जग जाहिर है
और अकर्मण्य ,जो खुद कुछ नहीं करते,
दूसरे  गलती निकालने में ,होते माहिर है
आपको ,अपनी की हुई गलतियां,नज़र नहीं आती,
जब तक कि कोई आलोचक न हो
पर वो आलोचनाएं ,सुधारक नहीं होती है ,
 जो स्वस्थ न हो 
और पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो
ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान ही मत दो,
वरना पछतायेंगे
कीचड़ में पत्थर फेंकोगे तो
छींटे आप पर ही आएंगे
अगर कोई रिएक्ट नहीं करेगा ,
तो वो अपने आप ही चुप हो जाएंगे
केंकड़ों की तरह ,एक दुसरे की टांग खींच,
किसी को भी ,गड्ढे से निकलने से रोकना ,
गलत है
कोई आगे बढ़ना चाहता है ,
तो उसकी राह में रोड़े अटका कर ,
आगे न बढ़ने देना  गलत है
प्रगति  को गति  तब  मिलती है,
जब सब मिल कर ,देश को आगे धकेले
कोई भी चना ,भाड़ नहीं फोड़ सकता,अकेले
आओ ,हम सब एक जुट होकर ,
देश को प्रगतिपथ पर बढ़ा दे
वैमनस्यता की कुछ लकीरे ,
जो जाने अनजाने खिंच गयी है ,
 प्यार के 'इरेजर'से उन्हें मिटा दे
भाईचारे की फसल को ,
अगर सब मिल कर ,प्यार से सींचेंगे ,
तभी तो समृद्धि की फसल लहलहायेगी
वह सुबह कभी तो आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

मगर मस्ती नहीं करता

       मगर मस्ती नहीं करता

मै हरदम मस्त रहता हूँ,मगर मस्ती नहीं करता
मटर तो खूब खाता पर , मटरगश्ती  नहीं करता
हुआ अभ्यस्त जीने का ,मैं रह कर व्यस्त अपने में,
जबर तो लोग कहते पर  ,जबरजस्ती नहीं करता
न तो चमचागिरी आती,न मै मख्खन लगा पाता ,
स्वार्थ के वास्ते ,मैं आस्था ,सस्ती नहीं करता
अगर जो तनदुरस्ती है ,हजारों ही नियामत है ,
इसलिए चुस्त मै रहता ,तनिक सुस्ती नहीं करता
खुदा ही एक हस्ती है,जो मेरे मन में बसती है,
किसी भी और की लेकिन ,परस्ती मैं नहीं करता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लेकिन वक़्त गुजर जाता है

          लेकिन वक़्त गुजर जाता है

रोज सवेरे सूरज उगता ,और शाम को ढल जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता,लेकिन वक़्त गुजर जाता है 
मुझको कोई काम नहीं है, फिर भी रहता बड़ा व्यस्त हूँ
कई बार बैठे  ठाले  भी ,मै हो जाता  बड़ा पस्त  हूँ
दिनचर्या वैसी बन जाती, जैसी आप बना लेते है
छोटी  छोटी बातों में भी,ढेरों खुशियां पा लेते  है
अगर किसी से मिलो मुस्करा,तो अगला भी मुस्काएगा
अगर किसी को गाली दोगे ,गाली में उत्तर आएगा
बुरा मान कर ,किसी बात का,खुद का चैन चला जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता लेकिन वक़्त गुजर जाता है
कभी किसी से ,कोई अपेक्षा ,अगर रखोगे,पछताओगे
हुई न पूरी ,अगर अपेक्षा,अपने मन को तड़फाओगे
जिन्हें बदलना ना आता हो,उन्हें बदलना ,बड़ा कठिन है
बेहतर है तुम खुद को बदलो,यह आसान और मुमकिन है
जीवन मंथन से जो निकले ,गरल ,उसे शिव बन कर पी लो
जितनी भी अब उमर बची है ,नीलकण्ठ बन कर ही जी लो
सुख का अमृत पीने वाला ,तो हर कोई मिल जाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता ,लेकिन वक़्त गुजर जाता है
बार बार जब हृदय टूटता ,असहनीय पीड़ा होती है
लोगों का व्यवहार बदलता ,देख आत्मा भी रोती है
कभी पहाड़ सा दिन लगता है,लम्बी लम्बी लगती रातें
यादों के जब बादल छाते ,होती आंसू की बरसातें
धीरे धीरे भूल गया हूँ  ,मेरे संग अब तक जो बीता
छोड़ पुरानी बातें कल की ,मैं हूँ सिर्फ आज में जीता
पर दुनियादारी बन्धन से ,छुटकारा कब मिल पाता है
मैं कुछ भी ना करता धरता ,लेकिन वक़्त गुजर जाता है
चेहरे पर आ रही नज़र अब ,बढ़ती हुई उमर की आहट
छोटी छोटी बातों में भी, अक्सर  होती है  घबराहट
होती कभी सवार सनक कुछ,कभी कभी जिद पर आता मन
लोग बात ये बतलाते है ,ये है सठियाने के लक्षण
तन की उमर अधिक जब बढ़ती,तो मन बच्चा हो जाता है
कभी कभी गुमसुम चुप रहता ,तो फिर कभी मचल जाता है
उगते और ढलते सूरज में,कभी नहीं बनता नाता है
मैं  कुछ भी ना करता धरता ,फिर भी वक़्त गुजर जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 14 अगस्त 2016

मै ऑरेंज काउंटी में रहता हूँ

मै ऑरेंज काउंटी में रहता हूँ

सुबह सुबह,व्यायाम के कई आयाम
 कसरत और प्राणायाम
ठहाके मार कर खिलखिलाना
सब के संग ताली बजाना
कभी किसी का जन्मदिन मनाना
बुढ़ापे में ख़ुशी का अहसास कराना
सुबह सुबह इतने लोगों से मिलते हाथ है
कि सुहाना हो जाता प्रातः है
मन में एक विश्वास जग जाता है
कि हम साथ साथ है
ख़ास कर इस उम्र में ,जब बच्चे,
अपना अपना घर बसा कर दूर हो जाते है
तब अकेलापन दूर करने,
ये दोस्त ही तो साथ आते है
सब के साथ मिल कर ,सुबह सुबह,
जीवन में भर जाती उमंग है
ये मेरी दिनचर्या का ,एक सुहाना ढंग है 
फिर जब बड़े से स्विमिंगपूल में ,
अकेला स्नान करता हूँ
खुद को बिलगेट्स समझता हूँ
फिर मन्दिर में कर देवदर्शन
मन ख़ुशी से भर जाता  है मन 
एक तरफ स्कूल के भारी बेग से लदा ,
बस पकड़ने को भागता बचपन
दूसरी तरफ पाश्च्यात धुनों पर 'जुम्बो 'कर,
पसीना बहाता हुआ  यौवन
तो तीसरी तरफ व्यायाम और प्राणायाम
करते हुए वृद्ध जन
जीवन की इन तीनो अवस्थाओं का संगम,
एक साथ नज़र आता है
कल,आज और कल को एक साथ देख ,
आनन्द आता है 
जब सुबह इतनी सुहानी होती है ,
तो दिन भी ख़ुशी से गुजर जाता है
जहाँ आठ सौ घरों में ,बसता एक परिवार है
मिलजुल कर मनाये जाते ,सारे त्योंहार है
जरूरत पड़ने पर
सब एक दूसरे की सहायता को तत्पर
प्यार की हवाये बहती है ,
और मै भी ,इन हवाओं के साथ बहता हूँ
मुझे ख़ुशी है कि मै ऑरेंज कॉउंटी में रहता हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'




 

आजादी-दो चतुष्पदी

आजादी-दो चतुष्पदी

पहले हम जो गाली देते ,तो जुबान गन्दी होती थी
खुलेआम,अंटशंट कहने पर ,थोड़ी पाबन्दी होती थी
लेकिन आई 'फेसबुक'जब से ,व्हाट्सएप का मिला तन्त्र है
बिना जुबान किये गन्दी अब,हम गाली देने स्वतंत्र है

जब शादी का बन्धन बंधता ,तो हम हो जाते गुलाम हैं
एक इशारे पर पत्नी के ,नाचा करते सुबह शाम  है
खुश होते यदि बीच बीच में ,थोड़ी आजादी मिल जाती
किन्तु क्षणिक ,कुछ दिन में पत्नी, मइके से वापस आजाती

घोटू 


गुरुवार, 11 अगस्त 2016

जान निकाला नहीं करो

जान निकाला नहीं करो

बार बार जाने की कह कर ,जान निकाला नहीं करो
यूं ही प्यार के  मारे है हम,   हमको मारा  नहीं करो
अभी अभी आये बैठे हो, थोड़ा सा तो सुस्ता लो
करो प्यार की मीठी बातें ,कुछ पीयो,थोड़ा खा लो
भग्नहृदय हम ,यूं ही तोड़ा,हृदय हमारा नहीं करो
बार बार जाने को कह कर ,जान निकाला नहीं करो
मेरे पहलू में आ बैठो,थोड़ा मुझको अपनाओ
थोड़ा सा सुख मुझको दे दो,थोड़ा सा सुख तुम पाओ
तन्हाई में मेरी,अपनी, शाम गुजारा नहीं करो
बार बार जाने की कह कर ,जान निकाला नहीं करो
कभी कभी तो आते हो ,आते ही कहते जाने की
रत्ती भर भी फ़िक्र नहीं है ,तुम को इस दीवाने की
यूं ही तड़फा तड़फा कर के ,हमसे किनारा नहीं करो
बार बार जाने की कह कर,जान निकाला नहीं करो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बढ़ती उमर हुए हम टकले



बढ़ती उमर हुए हम टकले

ज्यों ज्यों बढ़ती उमर हमारी ,अजब मुसीबत हो जाती है
या तो फसल सिरों की पकती ,या फिर गायब हो जाती है
पक कर होते बाल श्वेत जो , तो उनको रंग भी सकते है
लेकिन हम बेबस होते जब ,सर से वो उड़ने  लगते है
बढ़ती हुई उमर जब हम पर ,अपना कसने लगे शिकंजा
कोई हमको टकला कहता ,कोई हमको कहता गंजा
बाल किसी के कम उड़ते है ,और किसी के उड़े अधिक है
कुछ कर्मो की,कुछ पुश्तैनी ,पर ये क्रिया स्वाभाविक है
बहुत पुरानी उक्ति है ,खल्वाट क्वचित ही निर्धन होते
घोटमोट और मुंड़ेमुँडाये ,अक्सर विद्वतजन है होते
जो कि भाल से ले कपाल तक ,एक तरह दिखते सपाट है
ओज और अनुभव से उनका,आलोकित होता ललाट  है
पत्नी आगे ,नाक रगड़ते ,वो गंजे  होते आगे  से
पत्नी जिनका सर सहलाती ,चाँद निकलती ,बडभागे से
कुछ लोगों के बाल उड़ा करते है ,मंहगाई के मारे
परिवार का बोझ उठाते ,गंजे होते ,कुछ बेचारे
कुछ के बाल उडा  करते है,अनुभवों वाली गर्मी से
कुछ गुस्से में पागल होकर,बाल नोचते ,हठधर्मी से
कुछ के पीछे छुपती चंदिया ,आगे  होते बाल घनेरे
 अभी जवानी  कायम,रहती गलतफहमियां उनको घेरे
पर सच ये है ,साथ पर तो  ,अक्सर सब होजाते टकले
उम्र उजागर हो जाती है ,इस गम में हो जाते पगले
और लोग इस पागलपन को ,ही अक्सर कहते सठियाना  
 कन्याएं जब अंकल कहती ,तब होता मन का पछतांना
रह रह कर वो काली जुल्फें ,सबको  बहुत याद आती है
ज्यों ज्यों बढ़ती उमर हमारी,अजब मुसीबत हो जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अगर मै भगवान होता

अगर मै भगवान होता

अगर मै भगवान होता
लालची और फरेबी फिर ,ना कोई इंसान होता
अगर मै भगवान होता
किसी को जरूरत न होती,करे  मेरा रोज पूजन
मंजीरे और ढोल के संग ,शोर करके ,करे कीर्तन
क्योंकि हल्लागुल्ला मुझको,नहीं बिकुल भी सुहाता
शांति मुझको बड़ी प्रिय है ,शोर मेरा सर  दुखाता
मै  बड़ा नाराज होता ,चीख यदि  गुणगान होता
अगर मैं भगवान होता
लोग मेरी मूर्तियों पर ,चढाते  रहते  मिठाई
नाम ले परशाद का सब ,फिर उन्होंने ही उड़ाई
एक भी दाना, हक़ीक़त में ,न चख पाया कभी मै
किन्तु जो चढ़ती मिठाई ,अगर चट करता सभी मैं
 झिझकते सब ,चढ़ावे का ,अगर ये अंजाम होता
अगर मै भगवान होता
सुनते है भगवान रहते ,शेषशैया ,समंदर में
सर्प और पानी से लेकिन ,बहुत ही रहता हूँ डर मैं
इसलिए मैं जागता रहता,जरा भी नहीं सोता
पड़ती कोई को जरूरत,प्रकट मैं तत्काल होता
लक्ष्मीजी ने भले ही,मचाया तूफ़ान होता
अगर मै भगवान होता
सच है ये मेरी कृपा से ,लोगों के भण्डार भरते
लोग कुछ रूपये चढ़ा कर,मेरा है अपमान करते
कुछ चढाने का दे लालच,कामना दिन रात करते
मुर्ख है वो सभी ,रिश्वतखोर  जो मुझको समझते
ऐसे लोगो का कभी भी ,नहीं कोई काम होता
अगर मैं भगवान होता
लोग चोरी किया करते और नेता लूटते है
सभी शोशागिरी दिखला ,रोज मुझको पूजते है
नाम मेरा लेके कितनो की दुकाने चल रही है
टिकिट मेरे दर्शनों पर,बात मुझको खल रही है
देखता हूँ जब ये सब कुछ,मैं बहुत हैरान होता
अगर मैं भगवान होता
अगर मैं भगवान होता,आप माने या न माने
नाम पर मेरे खुली जो,बन्द करवाता  दुकाने
नाम लेकर धर्म  का जो ,रोज करवा रहे दंगे 
चक्र ऐसा चलाता कि नज़र आते ,सभी नंगे
बदल जाती मान्यताएं,खड़ा एक तूफ़ान होता
अगर मैं  भगवान होता
लोग जिम्मेदारियां अपनी मुझे क्यों सौंपते है
कभी होता कुछ बुरा तो दोष मुझ पर थोंपते है
अच्छा हो,करनी हमारी,बुरा हो तो हरी इच्छा
लोग हर दिन और हर पल ,लिया करते है परिच्छा
सभी जिम्मेदारियां लेना नहीं आसान होता
अगर मैं भगवान होता
दीनदुखियों के सभी दुःख,जो अगर मैं हर न पाता
ठेकेदारों को धरम  के ,गर उजागर  कर न पाता
लूट मेरे नाम पर जो हो रही ,ना  रोक पाता
तो भला क्या लाभ होता, मेरा बनने में विधाता
छोड़ कुर्सी,स्तिफा  दे ,तुरन्त अन्तरध्यान होता
अगर मैं भगवान होता

मदन मोहन बाहेती' घोटू '



 

यार ,तुम्हे कब अकल आयेगी

यार ,तुम्हे कब अकल आयेगी

यार,तुम्हे कब अकल  आएगी
यूं ही भावना के चक्कर में,टूटे रिश्ते निभा रहे हो
वो गलती पर गलती करते,तुम माफ़ी दे भुला रहे हो
तुम इसको कर्तव्य समझते,वो कमजोरी माना करते
तुम भावुक,वो प्रेक्टिकल है,अपना मतलब साधा करते
ख़ुशी ख़ुशी यूं लुटते लुटते ,उमर तुम्हारी निकल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
पड़ी सभी को अपनी अपनी ,बड़ी स्वार्थी है ये दुनिया
इतनी सीमित सोच बची है,बस मैं हूँ और मेरी मुनिया
तुम उस युग में पले बड़े हो,जब परिवार एक रहता था
एक दूजे के प्रति समर्पण ,श्रद्धा और विवेक  रहता  था
एकल परिवार का ये युग,परम्परायें  बदल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
तुमको  पाला  ताईजी  ने ,चाची ने  है कपड़े  बदले
दादीजी ने तुम्हे मनाया ,जब भी तुम जिद पर आ मचले
तुमने अपने बड़े भाई के ,छोटे हुए  वस्त्र है  पहने  
भर जाती पूरी कलाई थी , राखी जब बांधे थी बहने
आत्मीयता पहले जैसी ,अब तुमको ना मिल पायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी
अब छोटा परिवार,सोच भी ,उतनी ही संकीर्ण हो गया
रिश्तेदारी ,अपनेपन का ,तानाबाना  जीर्ण  हो गया
लेकिन छूट नहीं सकते है ,तुमसे संस्कार तुम्हारे
कोई को कुछ भी पीड़ा हो,तुम हो आगे ,हाथ पसारे
शायद तुम न कभी बदलोगे,सारी दुनिया बदल जायेगी
यार,तुम्हे कब अकल आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

ज्ञान की बात

ज्ञान की बात

अगर आटा आज जो गीला सना
दुखी हो क्यों कर रहे मन अनमना
आड़ी तिरछी आज बनती रोटियां,
गोल  रोटी भी  कल  लोगे  बना

मुश्किलें तो आएगी और जायेगी
जिंदगी की जंग चलती   जायेगी
खुश न हो,बीबी अगर मइके गयी,
चार दिन में लौट कर फिर आएगी

कभी दुःख है तो कभी फिर हर्ष है
यूं ही  जीवन में सदा    संघर्ष   है
एक तारीख को भरा ,इतरा रहा,
तीस तक हो जाता खाली पर्स है

सेक लो रोटी,तवा जब गर्म है
अवसरों का लाभ,अच्छा कर्म है
मज़ा देते सिर्फ पापड़ कुरकुरे,
देर हो जाती तो पड़ते  नर्म   है

घोटू

पति पत्नी-संगत का असर

पति पत्नी-संगत का असर

एक दूजे का एक दूजे पर  ,ऐसा मुलम्मा चढ़ता है
हो जाती सोच एक जैसी और प्यार चौगुना बढ़ता हो 
एक दूजे की बातें और इशारे वो ही  समझते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से लगते है
अलग अलग दो कल्चर के,प्राणी मिल रहते बरसों संग
नो निश्चित एक दूसरे पर,चढ़ जाता एक दूजे का रंग
उनके चेहरे के हाव भाव ,उनकी बोली और चाल ढाल
एक जैसी ही हो जाती है ,जैसे एक सुर और एक ताल
वो एकाकार हुआ करते, इस तरह आदतें मिल जाती
उनको ही मालूम होता है ,किसको है क्या चीजें भाती 
यूं तो कहते ,ऊपरवाला ,खुद जोड़ी बना भेजता है
पर ये जोड़ी ,जब जुड़ जाती,आ जाती बहुत एकता है
एक दूसरे की छवि मन में ,ऐसी बसती ,कहीं कहीं
धीरे धीरे होने  लगता ,चेहरा, मोहरा, आकार वही
इतने सालों का मेलजोल,इतना तो असर दिखाता है
बूढ़े बुढ़िया का प्यार हमेशा ,कई गुना बढ़ जाता है
बच्चे अपने में मस्त रहे, ये आश्रित एक दूसरे पर
इसलिए बुढापे में तू तू ,मैं मैं भी कम होती अक्सर
आदत पड़ती संग रहने की,मन ना लगता एक दूजे बिन
 करते है याद ,जवानी की ,बातें,किस्से और बीते दिन
साथ साथ दुःख और पीड़ा में ,साथ साथ ही थकते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से   लगते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 8 अगस्त 2016

पत्र पुष्प में खुश हो जाते

हरीभरी दूर्वा चुनचुन कर ,लाया हूँ मैं ख़ास
                         प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास 
हे गणेश,गणपति गजानन
हराभरा कर दो मम जीवन
अगर आपका वरदहस्त हो,
खुशियों से महके घर,आंगन
भोग चढायेगा मोदक का,ये तुम्हारा दास
                      प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास    
हे भोले बाबा शिव शंकर
मै बिलपत्र चढ़ाऊँ तुम पर 
आक,धतूरा ,भाँग चढ़ाऊँ ,
प्रभूजी कृपा करो तुम मुझपर
मनोकामना पूरी होगी ,मन में है विश्वास
                       प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास 
शालिग्राम ,विष्णू,नारायण
तुलसी पत्र करूं  मै अर्पण
पत्र पुष्प से खुश हो कर के ,
इतनी कृपा करो बस भगवन
मेरे घर में ,लक्ष्मी मैया का हो हरदम वास
                          प्रभूजी,तुम्हे चढ़ाऊँ घास
देव ,तुम्हे प्यारी हरियाली
तुम दाता हो,दो खुशहाली
हरे हरे नोटों से भगवन ,
भर दो,मेरी झोली खाली
मेरी सारी परेशानियां ,झट हो जाए खलास
                      प्रभूजी,तुम्हे चढाऊँ घास

घोटू
            

अहंकार से बचो

        अहंकार से बचो

अहंकार से बचो ,महान मत समझो खुद को,
वरना गलतफहमियां तुमको ले डूबेगी
सारी दुनिया मुर्ख,तुम्ही बस बुद्धिमान हो,
ऐसी सोच तुम्हे बस दो दिन ही सुख देगी
'अहम् ब्रह्म 'का ही यदि राग अलापोगे तुम,
धीरे धीरे सब अपनों से कट जाओगे
कभी आत्मगर्वित होकर इतना मत फूलो,
अधिक हवा के गुब्बारे से फट जाओगे
मेलजोल सबसे रखना ,हिलमिल कर रहना ,
इससे ही जीवन जीने में आसानी है
एक दूसरे के सुख दुःख में साथ निभाना ,
अच्छा है,क्योंकि हम सामाजिक प्राणी है
तुम रईस हो,बहुत कमाए तुमने पैसे ,
पास तुम्हारे दौलत है ,हीरा मोती है
इसका मतलब नहीं ,करो बेइज्जत सबको,
हर गरीब की भी  अपनी इज्जत होती है
तुम्हारा धन कुछ भी काम नहीं आएगा ,
वक़्त जरूरत में कोई आ, ना पूछेगा
अगर किसी का साथ न दोगे ,यूं ही अकड़ में,
मुश्किल पड़ने पर कोई भी साथ न देगा
इसीलिये सबसे हिलमिल कर रहना अच्छा ,
यही सफलता की सच्ची कुंजी होती है
सबके सुख दुःख में तुम अपना हाथ बटाओ ,
मिलनसारिता बहुत बड़ी पूँजी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

तुमने अगर कहा कुछ होता, मै कुछ कहता ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा ,तो मैं भी चुप हूँ
ना तुम हारे ,ना मै जीता ,बात बराबर ,
शायद इससे ,तुम भी खुश और मैं भी खुश हूँ
इसमें ना तो कोई कमी दिखती तुम्हारी ,
ना ही जाहिर होती कुछ मेरी लाचारी
यूं ही शांति से बैठे हम तुम ,सुख से जीएं ,
क्यों आपस में हमको करनी ,मारामारी
तुम मुझको गाली देते ,मैं  तुमको देता ,
हम दोनों की ही जुबान बस गन्दी होती
बात अगर बढ़ती तो झगड़ा हो सकता था,
कोर्ट कचहरी में जा नाकाबन्दी  होती
कुछ तुम्हारे दोस्त  साथ तुम्हारा देते  ,
मेरे मिलने वाले  ,मेरा साथ निभाते
रार और तकरार तुम्हारी मेरी होती,
लेकिन दुनियावाले इसका मज़ा उठाते
हो सकता है कि कुछ गलती मेरी भी हो,
हो सकता है कि कुछ गलती हो तुम्हारी
तुम जो तमक दिखाते  बात बिगड़ सकती थी ,
मैं भी अगर बिगड़ता ,होती मारामारी
इसीलिये ये अच्छा होता है कि जब जब ,
गुस्से की अग्नि भड़के तो उसे दबाओ
सहनशीलता का शीतलजल उस पर छिड़को,
एक छोटी सी चिगारी को मत भड़काओ
क्रोध छोड़ ,शान्ति रखना सबके हित में है,
तुम भी सदा रहोगे खुश और मैं भी खुश हूँ
तुमने खुद पर किया नियंत्रण ,कुछ ना बोले ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा तो मैं भी चुप हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रविवार, 7 अगस्त 2016

साठ के पार

              साठ के पार

क्या हुए साठ के पार यार ,संसार बदलने  लगता है
तुम्हारे अपने लोगों का  ,व्यवहार बदलने लगता  है
रहते थे व्यस्त कभी दिन भर ,ऊंचे पद पर थे हम अफसर
दिन भर चमचों से घिरे हुए ,सुनते आये 'यस सर,यस सर '
पर हुए रिटायर तो लगता ,हम गिरे अर्श से धरती पर
 दिन भर बैठे कुछ काम नहीं ,इस तरह हुआ जीना दुर्भर 
वो सजी धजी ,प्यारी प्यारी,स्टेनो की मुस्कान नहीं
बच्चों के लिए मिठाई के ,डब्बे का नामोनिशान नहीं
ना सुख सरकारी गाडी का ,ना सुख नौकर ,चपरासी का
सब काम स्वयं ही निपटाना ,लगता है फंदा फांसी का
वो दीवाली पर ड्राई फ्रूट,फल ,वो डब्बे उपहारों के
रह रह कर हमे सताते है अब सूखे दिन त्योंहारों के
वो लन्च मंगाना मीटिंगों में,वो ट्रेवल भत्ता ,नकली बिल
अब चमचाहीन हुआ जीवन ,जीना लगता कितना मुश्किल
बस सूखी सी कोरी पेंशन,और वो भी तनख्वाह की आधी
होता इंसान रिटायर तो ,सचमुच हो जाती बरबादी
पहले दफ्तर से जब आते ,बीबीजी प्यार लुटाती थी
गरम चाय के साथ  पकोड़े ,दौड़ दौड़ कर लाती थी
अब कुछ मांगो ,कहती मुझको,करने देते आराम नहीं
रहते हो पड़े निठल्ले से ,करते रत्ती भर काम नहीं
ये अकड़ जाएंगे हाथ पैर ,तुम सैर सवेरे किया करो
चिपके रहते हो टी वी से ,सब्जी भाजी ,ला दिया करो
पहले उनको दे पाते थे ,कुछ घण्टे,प्यार उमड़ता था
वो हमपर मिटमिट जाती थी,जब प्यार का जादू चलता था
 पर अब हर दिन ,चौबीस घण्टे ,जब हम है उनके आसपास
मुश्किल से ही अब कभी कभी ,वो डाला करती हमे घास
कुछ असर उम्र का भी है ये,आ गया इस तरह ठंडापन
किस तरह गुजारें वक़्त ,नहीं कुछ भी करने में लगता मन
बच्चे भी बड़े हो गए है,देखी  अनदेखी  करते है
वो देते हमपर ध्यान नहीं,और कन्नी काटा करते है
यह साठ बरस की उमर एक,नदिया सी रेखा जीवन की
जिसके इस पार मौज मस्ती ,उस पार पोटली उलझन की
जब कि हम होते परिपक्व ,हममें मिठास है आ जाता
सुमुखियाँ जब अंकल कहती ,मन में खटास है छाजाता
हो जाते सपने तार तार ,जब प्यार बदलने लगता है
क्या हुए साठ के पार यार ,संसार बदलने लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

चना अकेला भाड़ न फोड़े

    चना  अकेला भाड़ न फोड़े

नहीं केले  ,कभी भी, अकेले लगा करते ,
लड़ी में बंध  के,सदा ,साथ साथ बढ़ते है
रसीली लीचियाँ भी गुच्छे में गुंथी रहती ,
पेड़ों पर आम के  गुच्छे दिखाई पड़ते  है
भले ही काले हो या फिर हरे या कैसे भी,
झुण्ड के झुण्ड में अंगूर साथ है सब ही
साथ रहने से ही इनमे मिठास आता है ,
और बढ़ता है इन सभी का जायका तब ही
पंछी को देखो सदा ,रहा करते झुंडों में ,
संग रहती है मधुमख्खिया,बनता है शहद
एक एक फूल से जाकर के रस मधुर लाना ,
कौन करता है अकेले में इतनी जद्दोजहद
एक ही पेड़ पर फल साथ साथ है  लगते ,
एक संयुक्त सा परिवार उनका होता है
एक फल देखा अनन्नास का ही ,है केवल,
कँटीली खाल का है,और अकेले होता है
बड़ी ही शक्ति ,संगठन में है हुआ करती,
अकेला हो जो चना,भाड़ कभी ना फोड़े
इसलिए अच्छा है हम मिल के रहे आपस में,
एक दूजे का कभी भी हम साथ ना छोड़े

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब से मइके चली गयी तुम

 जब से मइके चली गयी तुम

जब से मइके चली गयी तुम
सारा घर है गुमसुम ,गुमसुम,
मुझको ऐसा लगता हर क्षण
जैसे बदल गए हो  मौसम
ना बसन्त की खुशबू महके
ना गरमी में ,ये तन दहके
ना सरदी में होती सिहरन
ना सावन में होती रिमझिम
साँसे चुप चुप आती,जाती
आपस में किस से टकराती
ना पायल बजती खनखन
ना बाहों के बंधते  बन्धन
हुई ताड़ सी ,लम्बी रातें
मुश्किल से हम काट न पाते 
वो पल मस्ती के,मदमाते
याद करे ,रह रह विरही मन
जब मेरे संग होती तू ना
लगता सब कुछ सूना,सूना
 तेरी यादों के मरूथल में ,
मृगतृष्णित हो,भटके है मन
जब से मइके चली गई तुम
सारा घर है गुमसुम गुमसुम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दास्ताँ -चार दिन की

दास्ताँ -चार दिन की

पहला दिन
--------------
चेहरे पर चमक है
बातों में खनक है
आजाद पंछी सी ,
ख़ुशी और चहक है
कौन ऐसी ख़ुशी की,
हुई बात नयी  है
क्या बताएं यार ,
बीबी मइके गयी है
दूसरा दिन 
-------------
रोज की दिनचर्या
हुई अस्तव्यस्त है
दिखते कुछ त्रस्त पर,
कहते हम मस्त  है
मन में परेशानियां ,
कही अनकही  है
क्या कहें,दो दिन से ,
बीबी मइके गयी है
तीसरा दिन
--------------
रात,दिवस तन्हाई,
बुरी हो गयी है गत
काटने घर दौड़े ,
देवदास सी हालत
पति को अकेला यूं,
छोड़ कर सताती है
पता नहीं औरतें,
मइके क्यों जाती है
चौथा दिन
-------------
कल तक जो थे ढीले ,
आज हुए फुर्तीले
चमक रहा है चेहरा ,
 चहक रहे ,रंगीले
लगते है बेसब्रे ,
हालत ,मतवाली है
पत्नीजी ,मइके से
आज आने वाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

रविवार, 31 जुलाई 2016

बदलाव

बदलाव

चुगते थे कबूतर जो दाना ,आकर के अटारी पर मेरी,
वो स्विमिंग पूल के तट पर जा ,निज प्यास बुझाया करते है
जो आलू परांठा खाते थे, घर के मख्खन की डली  डाल ,
वो डबल चीज डलवा कर के ,पीज़ा मंगवाया करते है
पहले माबाप जो कहते थे ,उससे शादी हो जाती थी ,
अब चेटिंग,डेटिंग कर के ही ,दुल्हन को लाया करते है
पहले मन्दिर में जाते थे ,श्रद्धा से भेट चढाते थे ,
अब तो रिश्वत का दस प्रतिशत ,मन्दिर में चढ़ाया करते है
पहले सुख देकर औरों को ,सन्तोष हृदय को मिलता था,
औरो की ख़ुशी से अब जलते ,और खुद को जलाया करते है
पहले जब शैतानी करते थे ,बच्चे , हम समझाते थे
हम बूढ़े क्या हो गए हमे,बच्चे समझाया  करते   है
बदलाव उमर में क्या आया ,बदलाव जमाने में आया ,
वो याद जमाने आ आ कर ,मन को तडफाया करते है
वो दिन भी हमने देखे थे,ये दिन भी हमने देख लिए ,
हम बीते दिन की यादों से मन को बहलाया करते  है

घोटू

हाथी पादा

               हाथी पादा

सब इन्तजार में बैठे थे ,हाथी  पादेगा ,पादेगा
इतना विशाल प्राणी है तो वो वातावरण गुंजा देगा
लेकिन जब हाथी ने पादा,तो बस हल्की सी फुस निकली
लोगों की सभी अपेक्षाएं,ना पूर्ण हुई,बेदम  निकली
कुछ लोग बोलते है ज्यादा ,वो निरे ढपोल शंख होते
जो शोर शराबा दिखलाते, अंदर से बड़े  रंक  होते
निकले बरात भी शानदार ,अच्छा हो अगर बैंडबाजा
तो नहीं जरूरी होता है,सुन्दर होंगे दूल्हे राजा
शोशेबाजी को मत देखो,केवल बातों पर मत जाओ
तुम करो परीक्षा ,ठोक पीट, तब ही तुम उसको अपनाओ

घोटू

कुछ चोर तुम्हारे है मन में

          कुछ चोर तुम्हारे है मन में

ना आता नृत्य तुम्हे ,बतलाते टेडापन है आंगन में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ चोर तुम्हारे है मन में

तुम  ही हो केवल दूध धुले ,तुम्हारी सोच अनूठी है
तुम ही हो सच्चे हरिश्चन्द्र ,ये सारी दुनिया झूंठी है
बाकी सारे है कामचोर  ,कर्तव्यनिष्ठता बस तुम में
सब के सब ही है नालायक ,है बची शिष्टता बस तुम में
इतना जो अहम पाल रख्खा,एक दिन तुम को ना ले डूबे
ऐसा ना हो इस चक्कर में, रह जाए धरे  सब मनसूबे
तुम तोड़फोड़ कर उलझ रहे हो जोड़तोड़ की उलझन में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ तुम्हारे है मन में
कुछ कमियां सब में होती है ,कोई कितना भी अच्छा हो
जरूरत पर झूंठ बोल देता ,कोई  कितना भी सच्चा हो
थे बड़े युधिष्ठिर धर्मराज ,क्या झूंठ न उनने बोला था
अश्वत्थामा हो गया हतः ,सुन हृदय  द्रोण का डोला था
औरों की गलती ढूंढ ढूंढ ,कब तक मन को बहलाओगे
कर देखो आत्मनिरीक्षण तुम,खुद में सौ कमियां पाओगे
तब शायद तुम भी सोचोगे ,जीते आये हो किस भ्रम में
तुम सबको चोर समझते हो ,कुछ चोर तुम्हारे है मन में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तू तड़ाक

                       तू तड़ाक

वो तू तड़ाक पर उतर गए,मैंने जो उनको 'तू' बोला
बोले बेइज्जत किया हमे ,तुमने जो हमको 'तू 'बोला
मै बोला कहता 'आप'अगर,तो भी  तुम बुरा मान जाते
है आप पार्टी से नफरत  ,तुम कोंग्रेस  के  गुण  गाते
मै तुम्हे नहीं कह सकता तुम,यह तुच्छ शब्द ,तुम हो महान
मै नहीं चाहता था किंचित ,करना तुम्हारा हनन ,मान
जो प्रिय है उसको 'तू' कहते ,मैं अपनी माँ को' तू 'कहता
अपने बच्चों को 'तू' कहता ,उस परमेश्वर को 'तू' कहता
इसलिए तुम्हे 'तू' कह मैंने ,दिखला अपना सब प्यार दिया
ईश्वर वाला संबोधन दे  ,है  तुम्हारा सत्कार किया
और बिन सोचे और समझे ही,तुम बैठ गए हो बुरा मान
तुम आदरणीय और प्यारे ,लगते हो मुझको श्रीमान

घोटू

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

कविता की बरसात

      कविता की बरसात

बात बचपन की करें क्या ,वो जमाना और था
जवानी में, सर पे ,जिम्मेदारियों का जोर था
हुए चिता मुक्त हम जब बच्चे सेटल  हो गए
साठ  से ऊपर हुए और  हम रिटायर  हो गए
आजकल स्वच्छन्द होकर जी रहे हम जिंदगी
थोड़ा सा आराम,मस्ती,कुछ खुदा की  बन्दगी
कोई पाबन्दी नहीं,खुद पर खुदी का राज  है
उम्र भर की कमाई का खा रहे हम ब्याज है
भावनाएं जब घुमड़ती है हृदय  आकाश में
बरसती है ,बन के कविता ,एक नए अंदाज में
बरसते बूंदों में रिमझिम,हृदय के जज्बात है
इसलिए ही कविता की हो रही बरसात  है

मंडन मोहन बाहेती'घोटू'


जाने क्या क्या बातें आती

जाने क्या क्या बातें आती

मेरे मन में जाने क्यों क्यों,जाने क्या क्या बातें आती
कोई मुदित कर देती मन को,कोई चुभन देती,तड़फाती

कुछ यादें रंगीन पलों की,कुछ यादें संगीन पलों की
कुछ ऐसी ही,इधर उधर की,कुछ गम्भीर हुए मसलों की
कुछ बचपन की नादानी की ,कुछ उस यौवन तूफानी की
कुछ शादी वाले बन्धन की ,और कुछ अपनी मनमानी की
कुछ मस्ती की,कुछ पत्नी के साथ बिताये मधुर क्षणों की
कुछ अपने से बेगानो की ,कुछ बेगाने से अपनों की
कभी हृदय प्रमुदित होता है ,कभी आँख ,आंसू बरसाती
मेरे मन में जाने क्यों क्यों ,जाने क्या क्या बातें आती

कभी गाँव वाले उस घर की ,कुछ उसकी छत,कुछ आंगन की
कुछ बारिश में ,छप छप करते,नाव तैराते ,उस बचपन की
कुछ अ ,आ  इ ई से लेकर ए बी सी डी  पढ़ने तक की
कुछ कॉलेज की,कुछ दफ्तर में ,इतना ऊपर बढ़ने तक की
वाह वाह करते चमचों की ,कुछ गाली देते निंदक की
चलचित्रों सी ,आँखों आगे ,घटनाएं आती अब तक की
कोई हंसाती,कोई रुलाती,और कोई दिल को तड़फाती
मेरे मन में ,जाने क्यों क्यों,जाने क्या क्या,बातें आती
 
जीवन के इस ढलते पल मे ,कौन हमारा ,कौन तुम्हारा
सभी व्यस्त ,अपने अपने में ,यादें ही है एक सहारा
यूं ही बस  यादों में डूबे ,कितना वक़्त गुजर जाता है
कभी नींद सी आ जाती है,मन सपनो से भर जाता है
वो दिन भी अब दूर नहीं है  ,थोड़े दिन के बाद एक दिन
यादों में खोये हम तुम भी ,बन जाएंगे  याद एक दिन
सबकी यही नियति होनी है ,पर ये बात समझ ना आती
मेरे मन में ,जाने क्यों क्यों ,जाने क्या क्या बातें आती

मदनमोहन बाहेती'घोटू'

हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या सिर्फ इसलिए कि बूढ़े ,जितने बुजुर्ग थे तुम्हारे
बरसों  से  करते  आये  है , ये  आडम्बर  सारे  सारे
ये पारिवारिक परम्परा ,निभने की आवश्यकता है
आस्था से नहीं निभाया तो ,कोई अनिष्ट हो सकता है
तार्किक बुद्धि से सोचो तो ,ये सब लगते है  बचकाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम अगर कहीं जाने को है और बिल्ली रस्ता काट गयी
तुम कहते हो कि रुक जाओ ,यह शकुन हुआ है सही नहीं
जो पड़ा सामने  एकाक्षी  या दिया किसी ने अगर  छींक
तुमको वापस रुकना  होगा ,ये शकुन हुआ है नहीं ठीक
ये तो नित की घटनाएं है ,होती  रहती  है  अनजाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
तुम कहते मन्दिर जाओ पर,यदि सच्ची श्रद्धा ना मन में
तो फिर ढकोसला होता है ,क्या रख्खा है उस पूजन में
ये कृपा  उसी परमेश्वर    की  ,सबके भंडार भर रहे  है
हम उस  पर चढ़ा चंद रूपये ,उसका अपमान कर रहे है
कुछ करते हम दिनचर्या सा ,और कुछ करते है दिखलाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम बात तुम्हारी ना सुनते ,टोका करते तुम नित्य हमें
हर बात तुम्हारी मानेंगे ,बस बतला दो  औचित्य  हमें
हम तर्क करें तो बहसबाज ,जो तुम कहते हो वही सही
पर दिल,दिमाग जो ना माने ,वो बात हमे मंजूर नहीं
हम वो सब करने को राजी ,जो सत्य  हमारा दिल जाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

आत्मकेंद्रित

आत्मकेंद्रित

एक तरफ तो 'अहंब्रह्म 'का पाठ पढाते हो
स्वाभिमान से जीवन जीना ,हमे सिखाते हो
कहते हो सब ख्याल रखें जो अपना अपना
तब ही होगा पूर्ण ,प्रगति का अपना सपना
और अगर जो कोई अपनी सोचे  हरदम
बुरा मान कर,उसे 'आत्मकेंद्रित'कहते हम
करो ब्रह्म पर आत्मा केंद्रित 'ब्रह्मज्ञान'है
करो आत्म पर आत्मा केंद्रित 'आत्मज्ञान'है
आत्मज्ञान जो मिला ,स्वयम को तुम जानोगे
खुद को समझा ,परमब्रह्म 'को पहचानोगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बड़ा है काम मुश्किल का

बड़ा है काम मुश्किल का

चमन में फूल बन खिलना ,बड़ा है काम मुश्किल का 
कभी  मंडराते  है  भँवरे ,कभी  तितली  सताती  है
कभी मधुमख्खियां आकर  ,किया रसपान करती है ,
कभी  बैरन  हवाएं  आ,   सभी खुशबू  चुराती   है 
कभी आ तोड़ता माली, चुभाता  सुई सीने में ,
कभी बन कर के वरमाला ,बनाया करते रिश्ते हम
कभी गजरे में गूँथ कर के ,सजाते रूप गौरी का,
मिलन की सेज पर बिछ कर,मसलते और पिसते हम
कभी अत्तार भपके में,तपा ,रस चूस सब लेता ,
कभी मालाओं में लटके ,सजाते रूप महफ़िल का
कभी हम शव पे चढ़ते है,कभी केशव पे चढ़ते है ,
चमन के फूल बन खिलना ,बड़ा है काम मुश्किल का

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

मैया,मोबाइल मंगवा दे

घोटू के पद

मैया,मोबाइल मंगवा दे
बहुत जमाना बदल गया है,स्मार्ट फोन तू लादे
तीन चार जीबी का रोम हो,सोलह की मेमोरी
तेरह मेगापिक्सल से मैं ,फोटू  लूँगा   तोरी
गोल्डन रंग का बेककवर हो,और हो दो सिमवाला
रोज सेल्फी ,पोस्ट करूंगा,खुश होंगे  नंदलाला
अगर एक पर एक फ्री का ,कहीं चल रहा ऑफर
तो बस उसका ही मैया तू ,फिर कर देना ऑर्डर
एक राधा को भेंट करूंगा ,दूजा खुद रख लूँगा
दिन भर व्हाट्सएप पर चेटिंग ,बातें खूब करूंगा
दाऊ को छूने ना दूंगा ,तू उसको समझा दे
मैया ,मोबाइल मंगवा दे

घोटू 

यह तो कहने की बातें है

यह तो कहने की बातें है

यह तो कहने की बातें है ,बिन गर्मी प्यार नहीं होता ,
मैंने तो बरफ़ के टुकड़ों को,आपस में चिपकते देखा है
ना अकलमन्द कोई होता है अक्लदाढ़ के आने से,
कितने ही अकल भरे करतब,बच्चों को करते देखा है
तन की ताक़त से भी ज्यादा,मन की शक्ति आवश्यक है ,
कितने अपँग ,लाचारों को,  मंजिल  पर पहुँचते देखा है
दफ्तर में दहाड़ा जो करते ,घर पर बनते भीगी बिल्ली,
कितने रौबीले  साहबों को,बीबी से  डरते  देखा  है
सागर का जल तो खारा है,मीठा जल होता नदियों का ,
फिर भी सागर से मिलने को,नदियों को उमड़ते देखा है
वो ऊपरवाला एक ही है,अल्लाह बोलो चाहे इश्वर ,
मजहब के नामपे बन्दों को  ,आपस में झगड़ते देखा है
ना बरसे तो त्राहि त्राहि ,ज्यादा बरसे तो तबाही है ,
हर चीज की अति जब होती ,तो काम बिगड़ते देखा है
तक़दीर मेहरबां जब होती ,धन छप्पर फाड़ बरसता है,
परसु बन जाता परसराम ,तक़दीर संवरते  देखा है
दुःख ,पीड़ा और तकलीफों में,अपने ही साथ निभाते है ,
फिर भी कुछ अपनो को अपनों से नफरत करते देखा है
जिन बच्चों पर सब कुछ वारा ,उनने ही किया तिरस्कृत है,
माँ बापों को उनके खातिर , दिन रात तड़फते देखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


अच्छा लगता है

अच्छा लगता है

कैसे भी मन को समझाना अच्छा लगता है
वादे कर  सबको भरमाना , अच्छा लगता है
जहाँ नेह,आदर मिलता है,स्वागत होता है ,
उस घर में ही ,आना जाना ,अच्छा लगता है
मै हूँ, तुम हो, ये हो, वो हो,  या कोई भी हो,
सबको ही फोटो खिंचवाना ,अच्छा लगता है
भीड़ इकट्ठी करने में ,मुश्किल तो होती है,
पर उनसे ,ताली बजवाना ,अच्छा लगता है
ऐसा लगता ,भरा हुआ है घी और शक्कर से ,
औरों की थाली का खाना ,अच्छा लगता है
मतलब हो या ना हो,कुछ की आदत होती है ,
उन्हें फटे में ,टांग अड़ाना ,अच्छा लगता है
आजादी का मतलब हमको छूट मिल गयी है ,
एक दूसरे पर गलियाना,अच्छा लगता है
कुश्ती अब न अखाड़े में,मोबाइल पर होती ,
फेसबुकों पर जा भिड़ जाना,अच्छा लगता है
कुछ को सुख मिलता है औरों को तड़फाने में ,
जले घाव पर ,नमक लगाना,अच्छा लगता है
एक जमाना था जब गाने मीठे लगते  थे ,
अब हल्ला गुल्ला ,चिल्लाना ,अच्छा लगता है
फल अच्छे ,दो चार दिनों में पर सड़ जाते है ,
नीबू का आचार पुराना ,अच्छा लगता है
अपने ही जब साथ छोड़ देते है अपनों का ,
तो  लोगों को ,हर बेगाना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 23 जुलाई 2016

अब तक यह जीवन बीत गया

अब तक यह जीवन बीत गया

मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते ,अब तक यह जीवन बीत  गया
घर में यदि होते कुछ बरतन ,तो आपस में टकराते  पर ,
उनके टकराने से आता  है  जीवन में  संगीत  नया
सोचो यदि तुम चुपचाप रहो ,और मैं भी दिन भर चुप बैठूं ,
हम दोनों गुमसुम मौन रहें,तो अपनी क्या हालत होगी
इसके विपरीत लड़ेंगे हम,और एक दूजे पर चीखेंगे ,
आनन्द पड़ोसी लेंगे ,घर में रोज महाभारत  होगी
इससे तो ज्यादा बेहतर है ,जब तुम बोलो तो मैं सुनलूँ ,
मै कुछ बोलूं तो तुम सुन लो,तुम जीती,मैं भी जीत गया 
 मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो ,
इक दूजे को कहते ,सुनते,अब तक ये जीवन बीत गया
मियां बीबी में कहा सुनी, और छोटे मोटे ये झगड़े ,
जब चलते है तो वैवाहिक ,जीवन का आनंद आता है
ये रूठा रूठी ,मान मनोवल, प्यार बढ़ाया करते है ,
झगड़े के बाद समर्पण का ,सुख भी दूना हो जाता है
मैं कभी मान लूँ निज गलती,तुम कभी मानलो निज गलती,
तब ही घर में गूंजा करता ,संगीत,मिलन का गीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे को कहते सुनते, अब तक ये जीवन बीत गया
बीबी यदि जो जिद नहीं करे ,तो फिर वह बीबी ही कैसी  ,
तुम भाव खाव ,फिर मान जाव,इसमें तुम्हारा पतिपन है
तुम ना ना कर उसकी मानो,वो ना कह माने  तुम्हारी ,
इस नोकझोंक में ख़ुशी ख़ुशी ,कट जाता सारा जीवन है
तुम कभी समर्पण कर देते ,वो कभी समर्पण कर देती,
सुख मिलता ,एक दूजे में हम,जब खोजा करते मीत नया
मैं तुम्हे बहुत कुछ कहता हूँ,तुम मुझे बहुत कुछ कहती हो,
एक दूजे की कहते सुनते ,अब तक ये जीवन बीत गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक

        किन्तु  सठियाया नहीं हूँ आजतक

पार कर ली उम्र मैंने साठ  की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
पहले जैसी ताजगी तो ना रही ,किन्तु मुरझाया नहीं हूँ आजतक 
वृद्धि अनुभव की हुई है इसलिए , लोग कहते हो गया मै वृद्ध हूँ
निभाने कर्तव्य अपना आज भी ,पहले जैसा पूर्ण ,मै कटिबद्ध हूँ
बड़ी कंकरीली डगर थी उम्र की ,राह में ठोकर लगी,कांटे मिले
कभी कोई ने दुलारा प्यार से ,तो किसी की डाट और चांटे मिले
झेलता झंझावतें तूफ़ान की ,नाव अपनी मगर मै खेता गया
 कभी धारा के चला विपरीत मै ,कभी धारा साथ मैं बहता गया
कई भंवरों में फंसा ,निकला मगर ,डूब मै पाया नहीं हूँ आजतक
पार करली उम्र मैंने साठ  की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
सौंप दी पतवार तुमको इसलिए ,क्योंकि तुममे लगन थी,उत्साह था
 देख कर जज्बा तुम्हारे जोश का ,करके कुछ दिखलानेवाली चाह का
इसका मतलब कदाचित भी ये नहीं,हो गए है  पस्त मेरे  हौंसले
उतर सकता आज भी मैदान में ,वही फुर्ती और पुराना जोश ले
पोटली ,यह पुरानी तो है मगर ,अनुभव के मोतियों से है भरी
नहीं मन में मैल या दुर्भाव है ,इसलिए ही बात करता हूँ खरी
पीढ़ियों के सोच की यह भिन्नता,मैं समझ पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की ,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक
प्रगति तुमने की,करो ,करते रहो ,प्रगति का पोषक हमेशा मैं रहा
संस्कृति ,संस्कार से भटके अगर,उसका आलोचक हमेशा मैं  रहा
तुम्हारी हर सफलता में खुश हुआ ,तुम्हारी पीड़ा लगी दुखदायिनी
किसी ने टेढ़ी नज़र तुमपर करी ,उस तरफ थी भृकुटियां मेरी तनी
कौन माली ,भला खुश होगा नहीं ,देख फलते ,फूलते उद्यान को
भूलना लेकिन न तुमको चाहये ,बागवाँ के किये उस अहसान को
है बड़ी मजबूत इस तरु की जड़ें,तभी हिल पाया नहीं हूँ आजतक
पार कर ली उम्र मैंने साठ की,किन्तु सठियाया नहीं हूँ आजतक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                   

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

आओ ,जीमें

आओ ,जीमें
तुम भी खाओ ,मैं भी खाऊं ,लेकिन धीमे धीमे
आओ,जीमें
बहुत खिलाई है लोगों को ,हमने हलवा पूरी
पर क्या करते ,आवष्यक था  ,थी थोड़ी मजबूरी 
अब वसूल करना सब खरचा ,हमको हुआ जरूरी
बीबी बच्चों की हसरत  भी करनी  हमको  पूरी 
अब तो हम इस पोजिशन में है ,पाँचों ऊँगली घी में
आओ,जीमें
खानपान में ,बड़ी चौकसी ,लेकिन रखनी होगी
खाने की हरचीज संभल  कर,हमको चखनी होगी
जल्दी जल्दी अगर खा लिया ,पेट  बिगड़  सकता  है
ज्यादा गरम खा लिया तो फिर ,मुंह भी जल सकता है
तीखी नज़रें रखे है हम पर  ,विजिलेंस की टीमें
आओ जीमें
जब तक खानपान आसन पर ,बैठें ,मौज उडाले
ख्याल रखें ,उतना ही खाएं,जितना सहज पचाले
पता नहीं कब ,नज़र किसी की ,लगे,जाय कट पत्ता
इसीलिये हम ,मजे उठाले,जब तक हाथ में  सत्ता
इतना जमा करें कि  जीवन ,कट जाए मस्ती में
आओ ,जीमें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पति के जन्मदिवस पर

पति के जन्मदिवस पर

अगर आज का दिन ना होता ,
जन्म आपका ना हो पाता
तो फिर कोई पुरुष दूसरा ,
शायद मेरा पति कहलाता
हो सकता है तुम सा हंसमुख ,
और रंगीन मिजाज न होता
अपनी पत्नी को खुश रखने ,
का तुम सा अंदाज न होता
हो सकता है नहीं नाचता ,
तुम सा ,एक इशारे भर पर
और तुम सा शायद ना रखता ,
मुझे बिठा कर ,अपने सर पर
तो फिर थोड़े से ही दिन में ,
जब चल जाता मेरा जादू
अपनी सारी भूल हेकड़ी ,
वो आ जाता मेरे काबू
'यस सर ' जो सुनता दफ्तर में ,
पर घर पर 'यस मेडम'कहता
छोटे मोटे हर कामो में ,
मुझ पर सदा आश्रित  रहता
तुम जैसे आज्ञाकारी पति तो,
अब मिलते ही है मुश्किल से
जो पत्नी की ख़ुशी देख कर,
खुश होते है सच्चे दिल से
तुम कितने प्यारे ,भोले हो ,
मेरी मन माला के मोती
वो अच्छा भी हो सकता था ,
लेकिन तुमसी बात न होती
हो सकता है कि वह थोड़ा ,
चालू और उच्श्रंखल  होता
ताक झाँक कर दिल बहलाता ,
 मन का थोड़ा चंचल होता
तो मै ऐसी नाथ ,नाथती ,
कर ना पाता ,बात फालतू
और धीरे धीरे बन जाता ,
तुम्हारी ही तरह पालतू
निज कमाई ,सारी की सारी ,
सीधा मुझको ला पकड़ाता
मेरा सच्चा अर्द्धांगी बन ,
काम काज में हाथ  बटाता
तुम जैसा सीधा ,शरीफ ना,
यदि वो टेढ़ा मेढ़ा  होता
तो फिर त्रियाचरित दिखला कर,
मैंने उसे उधेड़ा  होता
तुम सा भोलाभाला  ना हो ,
कोई सिरफिरा जो मिल जाता
तो महीने दो महीने में ही ,
दे तलाक ,मै करती टा टा
ज्यादा ही बिगड़ैल किसम का,
यदि मिल जाता जीवनसाथी
तो दहेज़ के उत्पीड़न का ,
ठोक मुकदमा,जेल भिजाती
उसके साथ ,सात फेरे खा,
मै जीवनभर उसे घुमाती
शादी से तौबा कर लेता ,
उसको ऐसा पाठ पढ़ाती
 मेरा कहना नहीं मानता ,
सुख से सांस नहीं ले पाता
यदि जो कोई पुरुष दूसरा ,
यदि जो मेरा पति बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नारी ,तेरे रूप अनेक

नारी ,तेरे रूप अनेक

सुबह सुबह भ्रमण और व्यायाम
फिर योग क्रियाएं और प्राणायाम
दुबली पतली,अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत
 चिरयौवना , नारी तेरे रूप अनेक
एक हाथ में बच्चे की ऊँगली थामे
दूसरे हाथ से देती उसे कुछ खाने
बस पकड़ाने भागती,टांग स्कूल का बेग
ममतामयी माँ,नारी तेरे रूप अनेक
घर की सफाई और सुन्दर सजाना
स्वादिष्ट नाश्ता और भोजन बनाना
सबको खिलाना और करना घर की देख रेख
कुशल गृहणी ,नारी तेरे रूप अनेक
बूढ़े सास ससुर की सेवा और सम्भाल
घर के  सदस्यों का रखना पूरा ख्याल 
 मृदुल व्यवहार करती हुई,कुशल  और नेक
आदर्श बहू ,नारी तेरे रूप  अनेक
हर समस्या में पति को सही सलाह देना
परिवार हित में ,सदा उचित निर्णय लेना
तन मन से  पूर्ण समर्पण  ,निष्ठां  और विवेक
सच्ची सलाहकार ,नारी तेरे रूप अनेक
रात को सजीधजी ,रम्भा सी रमणी
पति की परमप्रिया ,प्रेममयी पत्नी
पति पर अपना प्यार लुटाती हुई विशेष
अभिसारिका,नारी तेरे रूप अनेक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है
जब रेडियो  पर हर बुधवार
बिनाका गीतमाला सुनता था सारा परिवार
फिर आये विविध भारती के  फ़िल्मी गाने
सुनने लगे हम सब ,होकर दीवाने
फिर गले में लटकाने  वाला ट्रांजिस्टर आया
नयी क्रांति लाया
फिर 'टू इन वन '
ने बदल डाला जीवन
छोटे छोटे कैसेटों में कितने ही गीत
लेते थे दिल को जीत
और फिर जब टीवी आया तो घरों  की,
छतों पर ,एंटीना सर उठाने लगे  
'कृषिदर्शन  से चित्रहार तक ,
सब टीवी से चिपके नज़र आने लगे
ये उन  दिनों बात है
जब टेलीफोन के काले चोगे ,
आदमी का स्टेटस दिखाते थे
डायल के छिद्रों में ,उँगलियों से ,
नंबर घुमाते घुमाते ,हम थक जाते थे
फिर भी मुश्किल से ही लाइन मिल पाती थी
टेलीफोन की घंटी  आवाज ,कितना लुभाती थी
फिर पेजर
 कुछ दिनों आया नज़र
पर जब से मोबाइल आया है
सबके मन भाया  है
ऐसी क्रांति छा  गई  है
कि दुनिया मुट्ठी में आ गई है
रोज रोज  परिवर्तन ,
जिंदगी को संजोते गए
दुनिया तरक्की करती गई ,
और हम बूढ़े होते गए
ये उन दिनों की बात है
जब गाँव में जगह जगह लाल डब्बे ,
मुंह खोले नज़र आते थे
जिनमे चिट्ठी डाल ,हम अपने
परिचितों को  संदेशे पहुंचाते थे
उनदिनों एक बहुप्रतीक्षित इंसान ,
रोज रोज आता था
खाकी वस्त्र पहने ,वो डाकिया कहलाता था
जब वो प्रेमपत्र और संदेशे लाता था
दिल को कितना आनंद पहुंचाता था
वो लिफ़ाफ़े में खुशबू  भरे खत
वो पैगामे मोहब्ब्त
जिन्हे बार बार चूम ,पढ़ा जाता था
मन को कितना सुहाता था
ये उन दिनों की बात है
जब न मोबाइल होता था
न ईमेल होता था
न व्हाट्सएप था ,
न चेटिंग का खेल होता था
दिन भर में पचासों बार
अपनी महबूबा को दिखलाना प्यार
और मोबाईल पर लाइव तस्वीर का दीदार
इतनी जानी पहचानी सी लड़की से ,
जब होता है विवाह
तो प्यार और हनीमून का सारा थ्रिल ,
हो जाता है तबाह
हम खुशनसीब है कि हम,
 उस जमाने में पैदा हुए थे
जब रेडिओ की सुई सेट करके ,
गाने सुने जाते थे
जब हम चूड़ी का बाजा बजाते थे
 जब कि छत पर चढ़ कर,
 एंटीना सेट किया जाता था
जिससे  साफ़ पिक्चर नज़र आता था
जब फोन का डायल घुमाते ,
थक जाया करती थी उँगलियाँ
जब पोस्टमेन का लाया लिफाफा ,
जीवन में भर देता था रंगीनियाँ
 आज भी मै जब वो पुराने ,सहेजे हुए ,
प्रेमपत्र पढ़ता हूँ तो नथुनो में ,
वो पुराने प्रेम की महक भर जाती है
वो भूली हुई दास्ताँ ,फिर से ज़िंदा हो जाती  है
और ये जब भी पढ़ता हूँ,बार बार  होता है
मुझे फिर से अपने प्यार  की याद आती है
वरना आज के युग में तो ,कल की की हुई चेटिंग ,
आज डिलीट हो जाती  है

मदन मोहन 'बाहेती 'घोटू'

मुझको कभी 'डिलीट' न करना

              मुझको कभी 'डिलीट' न करना

 मीठे मीठे ख्वाब दिखा कर ,देखो मुझको 'चीट 'न करना
मुझ से आँख फेर मत लेना,बेगानो  सा  'ट्रीट '  न करना
मुझे नहीं 'ईमेल' भेजना  ,और भले ही 'ट्वीट' न  करना
फेस 'फेसबुक'पर दिखला कर ,'व्हाट्सएप'पर'ग्रीट 'न करना
बचपन वाली प्यार मोहब्ब्त ,फिर से  भले 'रिपीट ' न करना
लेकिन अपनी 'मेमोरी' से ,मुझको कभी  'डिलीट' न  करना 

घोटू

बुधवार, 6 जुलाई 2016

भगवान का ज्ञान

     भगवान का ज्ञान

वो भगवान का बड़ा भक्त था
पूजापाठ और सेवा में रहता अनुरक्त था
रोज नहा धोकर ,मंदिर जाता था
बड़े विधिविधान से पूजा कर ,भजन जाता था
भगवान की मूरत पर,चढ़ावा चढाता था
नवरात्रों में भंडारा करवाता था
ख़ुशी खुशी सब खर्चा ,खुद ही उठाता था
देख कर के उसकी सेवाभाव का प्रदर्शन
एक दिन अचानक,प्रकट हो गए भगवन
बोले वत्स,तू जो ये मंदिर में ,
इतनी सेवाभाव दिखाता है
बोल क्या चाहता है ?
भक्त बोल प्रभु ,आपने ही मुझे बनाया है
आज मै जो कुछ हूँ,आपकी ही माया है
ये जो थोड़ा बहुत चढ़ावा चढ़ा ,
मैं आपका अभिनंदन कर रहा हूँ
ये सब तुम्हारा ही दिया हुआ है ,
तुम्ही को अर्पण कर रहा हूँ
 पूजा कर रहा हूँ,आपके गुण गा रहा हूँ 
अपने निर्माता के प्रति ,
अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ
आपका आशीर्वाद और कृपा चाह रहा हूँ
भगवान बोले वत्स ,
तू मंदिर में मुझे रोज माथा नमाता है
पर ये भूल जाता है
मैंने तो पूरे संसार का निर्माण किया है ,
पर तेरा एक और निर्माता है
वो तेरे पिता और माता है
क्या तूने कभी अपने ,
उन निर्माता का भी ख्याल किया है
जिन्होंने तुझे जनम दिया है
रोज रोज मंदिर में मुझे  पूजता है
क्या अपने बूढ़े माँ बाप के पास बैठ ,
दो मिनिट भी उनके हालचाल पूछता है
मेरी पत्थर की मूरत पर, परशाद चढाता है
और उन्हें दाने दाने को तरसाता है
तूने कितनी ही बार मुझ पर पोशाक चढ़ाई
पर क्या अपने पिताजी  के लिए ,
एक कमीज भी बनवाई
तुझे पता भी है कि उनके कपड़े,
कितने पुराने  और बदरंग हो रहे है
वो कितने फटेहाल है और तंग हो रहे है
तूने रोज  रोज मुझ पर कितने रूपये चढ़ाए है
क्या अपने माँ बाप को ,जेब खर्च के लिए ,
सौ रूपये भी पकड़ाए है
मातारानी की मूरत पर कितनी चूनर चढाता है
क्या कभी अपनी माँ के लिए ,
एक नयी साडी भी लाता है
तूने मुझपर चांदी का छतर चढ़ाया है
पर क्या कभी तुझे अपने पिताजी की ,
जीर्णशीर्ण छतरी बदलने का भी ख्याल आया है
तेरे माता पिता ,
जो है जीवित देवता,
उनकी उपेक्षा कर रहा है
और मुझ पत्थर की मूरत से ,
कृपा की अपेक्षा कर रहा है
 मैं तो पत्थर की मूरत  हूँ ,
न तेरा चढ़ावा मेरे काम का है,
न मैं तेरा चढ़ाया परशाद खाऊंगा  
अरे मूरख ,अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा कर ,
अगर वो प्रसन्न होंगे ,
मैं अपने आप प्रसन्न हो जाऊँगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 4 जुलाई 2016

गाँव की बारिश

       

जब भी बारिश होती ,गाव याद आता है ,
जहां कबेलू वाले घर में हम थे  रहते 
रिमझिम रिमझिम अगर बरसता थोड़ा पानी ,
तो फिर छत से पानी के परनाले  बहते 
घर के आगे एक ओटला,नीचे नाली,
जो वर्षा के पानी से भर कर बहती थी 
आसपास दो पेड़ बड़े  से थे पीपल के,
प्राणदायिनी हवा सदा बहती रहती थी
और पास ही मंदिर केंद्र आस्था का था ,
सुबह शाम घंटाध्वनि और आरती होती 
शनिवार को हनुमान पर चढ़ता चोला ,
शुक्रवार को जलती  थी माता की ज्योति 
दिन में भजन कीर्तन करती कुछ महिलाएं,
जन्माष्ठमी पर  अच्छी सी झांकी सजती थी 
सावन में शंकर जी को नित जल चढ़ता था,
सात दिनों तक कथा भागवत भी  बंचती थी
आते तीज त्यौहार ,गाँव की रौनक बढ़ती ,
घर घर में पुवे   पकवान  बनाए जाते 
सभी सुहागन मिलजुल कर पूजा करती थी,
मेंहदी से सबके ही हाथ रचाए  जाते 
पूरा गाँव उन दिनो होता परिवार था ,
सुख दुःख में सब ,एक दूजे का हाथ बटाते 
आती कोई बरात ,गाँव में होती शादी,
उसका स्वागत करने में सब ही जुट जाते
धोबन माँ,नाइन  चाची और भंगन भाभी,
सबसे आपस में रिश्ते थे बनते रहते    
जब भी बारिश होती गाँव याद आता है ,
जहां कबेलू वाले घर में हम थे रहते 
गीली मिट्टी पर पैरों के चिन्ह छापना ,
याद आती  उछलकूद ,पानी की छपछप
पर अब इन बंगलों ,फ्लैटों वाले शहरों में ,
छत से बहते परनाले दिखना है दुर्लभ 
तब मिट्टी के चूल्हे थे,लकड़ी जलती थी,
गीली लकड़ी ,धुवें से  घर भर जाते थे 
लगती थी जब झड़ी बड़ी सीलन हो जाती ,
गीले कपड़े जल्दी नहीं सूख पाते थे 
बहती नाली में कागज की नाव तैराते ,
उसके पीछे भगने का आनंद अजब था 
गरम गुलगुले और पकोड़े घर घर तलते ,
और मकई के भुट्टों का भी स्वाद गजब था
खुली खुली सी एक धर्मशाला होती थी, 
कोई शादीघर या बैंकेट हॉल नहीं था 
शादी हो कि सगाई,जनेऊ ,गंगाजली हो,
सभी गाव के आयोजन का केंद्र वही था 
एक सामूहित भोज,न्यात जिसको कहते थे ,
पंगत में जीमा करते सब साथ बैठ कर 
लड्डू,चक्की सेव,जलेबी पुरसी जाती,
और रायता पीते थे ,दोनों में भर कर 
हरियाली अम्मावस पर पिकनिक होती थी ,
और पेड़ों पर झूले सभी झूलते रहते 
जब भी बारिश होती गाँव याद आता है,
जहां कबेलू वाले घर में हम थे रहते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तू भी कुत्ता,मैं भी कुत्ता

           

एक बंगले वाले कुत्ते से ,बोला एक गलियों का कुत्ता 
तू भी कुत्ता,मैं भी कुत्ता ,फिर हममे क्यों अंतर इत्ता 
तेरी किस्मत में बंगला क्यों,मेरी किस्मत में सड़कें क्यों 
 तू खाये दूध और बिस्किट ,तो मुझको जूँठे टुकड़े क्यों 
तेरी इतनी सेवा श्रुषमा ,तू सबको लगे दुलारा  सा 
मेरा ना कोई ठांव ठौर ,मैं क्यों फिरता आवारा  सा 
तू सोवे नरम बिस्तरों में ,मैं मिट्टी,कीचड़ में सोता 
हम दोनों स्वामिभक्त हममे ,फिर नस्लभेद ये क्यों होता 
क्या पूर्व जनम में  दान किये थे तूने कुछ हीरे मोती 
जो मुझको दुत्कारा जाता और तेरी खूब कदर होती 
तेरी भी टेढ़ी  पूंछ रहे ,मेरी भी टेढ़ी  पूंछ  सदा 
तू भी भौंके ,मैं भी भौंकूं ,तू भी कुत्ता,मैं भी कुत्ता 
हंस बोला बंगले का कुत्ता ,तू क्यों करता है मन खट्टा 
है खुशनसीब ,तू है स्वतंत्र ,ना तेरे गले बंधा पट्टा   
मैं रहता बंद कैद में हूँ ,घुटता हूँ,मन घबराता है 
तू  है स्वतंत्र ,आजादी से ,जिस तरफ चाहता,जाता है 
जब मेरा तन मन जलता है ,मैं इच्छा दबा दिया करता 
तू मनचाही साथिन के संग ,स्वच्छ्न्द विहार किया करता 
मैं बंधा डोर से एकाकी ,ना कोई सगा ,साथिन ,साथी 
बस बच्चे ,साहब  या मेडम,है कभी प्यार से सहलाती 
तू डाल गले में पट्टा और बंध कर तो देख चेन से  तू 
तब ही सच जान पायेगा ये ,है कितना सुखी,चैन से तू 
मेडम जब लेती गोदी में ,दो पल वो सुख तो होता है 
तुझ सा स्वच्छ्न्द विचरने को ,लेकिन मेरा मन रोता है 
बेकार सभी सुख सुविधाएं,सच्चा सुख है आजादी का 
मैं बदनसीब है गले बंधा,मेरे एक   पट्टा चाँदी का     
मैं खेल न सकता मित्रों संग ,ना हो सकता गुथ्थमगुत्था 
एक गलियों वाले कुत्ते से ,बोला ये बंगले का  कुत्ता 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

छेड़छाड़

           

किसी के साथ कभी छेड़खानी मत करना ,
हमेशा  इसका   तो अंजाम बुरा होता है 
सूखते   घावों को मत छेड़ो,लगेगें  रिसने,
छेड़खानी  का  हर काम  बुरा  होता  है 
शहद के छत्ते को ,थोड़ा सा छेड़ कर देखो ,
काट,मधुमख्खियां बदहाल तुम्हे कर देंगी 
करोगे छेड़खानी ,राह चलती लड़की से,
भरे बाज़ार में ,इज्जत उतार रख देगी 
कोई सोते हुए से शेर को जो छेड़ोगे ,
तुम्हे पड़ जाएंगे ,लेने के देने ,रोवोगे 
 किसी कुत्ते को जो छेड़ोगे ,काट खायेगा ,
सांप को छेड़ोगे तो प्राण अपने खोवोगे 
भूल से भी किसी नेता  छेड़ मत देना ,
फ़ौज चमचों की ,वर्ना तुमपे टूटेगी यो ही 
सभी के साथ चलो,राग अपना मत छेड़ो,
तूती की ,सुनता ना ,नक्कारखाने में कोई 
किसी के साथ करी ,कोई छेड़खानी का ,
नतीजा कभी भी ,अच्छा न निकलता देखा 
हमने ,कुदरत से करी ,जब से छेड़खानी है ,
संतुलन  सारा है दुनिया का बदलता  देखा 
जबसे छेड़ा है हमने फैले हुए जंगल को ,
बदलने लग गया तबसे मिजाज ,मौसम का
छेड़खानी जो करी हमने  हवा पानी से,
बिगड़ पर्यावरण ने ,सबको दिया है धमका 
हवा गरम ही नहीं ,हो रही है  दूषित भी ,
प्राणवायु के श्रोत ,हो रहे है जहरीले 
आओ सम्पन्नं करें फिर से सम्पति वन की ,
उगाये अधिक वृक्ष और सुख से हम जी लें 
छेड़ना है तो फिर अपने जमीर को छेड़ें ,
आत्मा सोई है , छेड़ें , उसे जगाएं हम  
धरम के नाम पर जेहाद नहीं छेड़ें  हम , 
प्रेम और दोस्ती का राग छेड़ ,गायें हम 
   
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 30 जून 2016

बेवफा बाल

      

ये बाल बेवफा होते है 

कितना ही इनका ख्याल रखो 
कितनी ही साजसम्भाल  रखो 
कितनी ही  करो कदर इनकी 
सेवा सुश्रमा , जी भर  इनकी 
हम सर पर इन्हे चढ़ा रखते 
कोशिश कर इन्हे बड़ा रखते 
अपना ही जाया  ,जान इन्हे 
हम कहते अपनी शान  इन्हे 
 ये   अपना  रंग  बदलते है  
और साथ बहुत कम टिकते है 
जैसे ही उमर गुजरती है ,
ये साफ़ और सफा होते है 
ये बाल बेवफा होते है 
ये बालवृन्द ,सारे सारे 
होते  ही कब  है तुम्हारे 
ये  होते  है   औलादों  से 
रह जाते है बस  यादों से 
संग छोड़ कहीं ये उड़ जाते 
कुछ संग रहते कुछ झड़ जाते 
ये करते अपना रंग बदला 
करते हमको ,गंजा ,टकला 
अहसास उमर का करवाते 
मुश्किल से  साथ निभा पाते 
ना रखो ख्याल,उलझा करते ,
ये खफा ,हर दफा होते है 
ये बाल बेवफा होते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सच्ची कमाई

              

तू इतनी मै मै करता था और डींगें मारा करता था 
निज वर्चस्व दिखाने खातिर  ,ये नाटक सारे करता था 
महल दुमहले बना रखे थे  ,सुख के साधन जुटा रखे थे 
जमा करी अपनी दौलत पर ,सौ सौ पहरे बिठा  रखे थे 
छप्पनभोग लगी थाली में ,नित होता तेरा भोजन था 
खूब मनाता था रंगरलियां ,भोग विलास भरा जीवन था 
बहुत दम्भ में डूबा रहता ,मै ऐसा हूँ , मै हूँ  वैसा 
इतनी बड़ी सम्पदा मेरी ,कोई नहीं होगा मुझ जैसा 
झुकते थे सब तेरे आगे ,बड़ी शान शौकत थी तेरी 
इस माया के खातिर तूने ,करी उमर भर ,हेरा फेरी
दान धरम भी कभी किया तो,होता था वो मात्र दिखावा 
श्रदधा नहीं ,अहम होता था , ईश्वर के भी साथ छलावा 
आज देख ले ,क्या परिणीति है ,तेरे कर्मों की और तेरी 
बचा अंत में अब तू क्या है ,केवल एक राख की ढेरी 
घर की केवल एक दीवार पर ,तेरी फोटो टंगी हुई है 
सूखे मुरझाये  फूलों की,उस पर  माला , चढ़ी हुई  है
इस जीवन का अंत यही है ,तो बसन्त में क्या इतराना 
सच्ची एक कमाई होती ,सतकर्मों से नाम कमाना  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'